अब न्याय अंधा नहीं ? सुप्रीम कोर्ट में न्याय की देवी के आंखों से हटी पट्‌टी, तलवार की जगह 'संविधान'!

बृजेश उपाध्याय

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तस्वीर: न्यूज तक.
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न्यूज़ हाइलाइट्स

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न्याय की देवी का नया रूप सामने आने पर शुरू हो गई चर्चा.

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लंदन की एक अदालत के बाहर लगी प्रतिमा से सालों पहले हट चुकी है आंखों से पट्‌टी.

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न्याय की देवी का हजारों साल पुरान है इतिहास.

कहते हैं न्याय अंधा होता है. इस कहावत को अब बदल दिया गया है. अब न्याय अंधा नहीं बल्कि बराबरी के व्यवहार के साथ संतुलित है. अब ये बातें अचानक क्यों होने लगी हैं? दरअसल सुप्रीम कोर्ट की जज लाइब्रेरी में लगी न्याय की देवी की नई प्रतिमा की तस्वीरें सामने आ गई हैं. अब ये मूर्ति पहले के मुकाबले बदल गई है. सबसे बड़ा बदलाव है...आंखों से काली पट्टी हटा दी गई है. हाथों में तलवार भी नहीं है. 

सुप्रीम कोर्ट के सूत्रों के मुताबिक ये नई प्रतिमा पिछले साल बनवाई गई थी जिसे अप्रैल 2023 में जजेस लाइब्रेरी के पास स्थापित किया गया है. सूत्रों की मानें तो ये नई मूर्ति मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ के कहने पर लगी है. अब इसकी तस्वीरें सामने आई हैं. 

पहले और अब में अंतर 

पहले लगी प्रतिमा में आंखों पर बंधी बंध थी. एक हाथ में तराजू और दूसरे हाथ में तलवार था. आखों पर पट्टी कानून के सामने समानता का प्रतीक थी. आंखों पर पट्‌टी का भावार्थ ये था कि अदालतें बिना किसी भेदभाव के फैसला सुनाती हैं. वहीं, तलवार अधिकार और अन्याय को दंडित करने की शक्ति का सिंबल था. अब जो नई प्रतिमा लगी है उसमें आंखों से पट्‌टी हटा दी गई है. एक हाथ में बराबर पलड़े वाला तराजू और दूसरे हाथ में किताब है जिसे संविधान माना जा रहा है. 

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नई मूर्ति के क्या हैं मायने

तमाम मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो आंखों पर बंधी पट्‌टी को 'न्याय सबके लिए समान' है का प्रतीक माना जाता था. साथ ही इसकी व्याख्या दूसरे अर्थों में भी होने लगी मसलन कानून अंधा है. इसकी एक व्याख्या ये भी की जाने लगी कि न्याय के सामने हो रहे अन्याय के प्रति अंधा दिखना है. फिल्म बनी- अंधा कानून. न्याय-अन्याय के बीच इस व्याख्याएं बदलने लगीं. लेडी स्टेच्यू के हाथ में तलवार को दंड का प्रतीक माना जाता था जिसे हिंसा के रूप में लिया जाने लगा और व्याख्या की गई कि न्याय संविधान के अनुसार दिया जाता न कि शक्ति (तलवार) के दम पर. ऐसे में नई मूर्ति में बदलाव कर आंखों से पट्‌टी हटाई गई और ये दिखाया गया कि 'न्याय' सबको एक समान रूप से देखता है और संविधान के दम पर न्याय देता है. 

ब्रिटिश विरासत को पीछे छोड़ने की कवायद?

चूंकि न्याय की देवी ब्रिटिश काल में भारत लाई गई थी. धीरे-धीरे नंगे पांव खड़ी देवी के बाएं हाथ में तराजू, दाएं हाथ में तलवार और आंखों पर पट्‌टी वाली प्रतिमा लगभग सभी अदालतों में न्याय के प्रतीक के रूप में देखी जाने लगी. फिल्मों में भी अदालत का सीन दिखाते समय इस प्रतिमा को जज के टेबल पर कैमरे के फोकस में दिखाया गया. अब कहीं न कहीं ब्रिटेन से आए न्याय के इस सिंबल में बदलाव कर उस परंपरा को पीछे छोड़ने की कवायद की जा रही है. ध्यान देने वाली बात है कि हाल ही में भारत सरकार ने अंग्रेजी शासन के समय लागू इंडियन पीनल कोड (IPC) की जगह भारतीय न्याय संहिता (BNS) लागू किया था. 

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लंदन की इस अदालत में 1907 में हट गई थी पट्‌टी

लंदन की ओल्ड बेली कोर्टहाउस में लेडी जस्टिस की प्रतिमा पर आंखों पर पट्‌टी नहीं है. एक हाथ में तराजू और दूसरे हाथ में तलवार है. ये प्रतिमा 12 फुट ऊंची सोने के पत्ती वाली है. अदालतों में मुकदमें बढ़ने और जगह कम पड़ने पर इस नई बिल्डिंग को बनाया गया जिसे साल 1907 किंग एडवर्ड सप्तम हाथों उद्घाटन कराया गया.

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न्याय की देवी का का संबंध प्राचीन ग्रीक सभ्यता से 

अब सवाल ये कि भारत में न्याय की देवी की प्रतिमा ब्रिटिश शासन के समय आई पर दुनिया के अमेरिका, यूरोप, अफ्रीका, मध्य-पूर्व, दक्षिणी एशिया, पूर्वी एशिया समेत दूसरे देशों तक कैसे पहुंची? दरअसल इस न्याय की देवी का ताल्लुक दुनिया की सबसे प्रचीन कही जाने वाली मिस्र की सभ्यता से है. यानी लेडी ऑफ जस्टिस का इतिहास भी हजारों साल पुराना है. मिस्र में देवी 'मात' न्याय की देवी के रूप में प्रचलित थी. 

प्रचीन रोमन पौराणिक कथाओं में न्याय की देवी थीं जस्टिटिया. कहते हैं सम्राट ऑगस्टस इसे पेश किया था. सम्राट वेस्पासियन ने जस्टिसिया की छवि वाल सिक्के भी बनाए. उसमें जस्टिसिय को एक सिंहासन पर बैठे दिखाया गया. बाद सम्राटों ने खुद को न्याय का संरक्षक बताने के लिए लेडी जस्टिसिया को सिंबल के रूप में प्रयोग किया. ये परंपरा वहां से निकली और दूसरे देशों तक पहुंची.  आज भी दुनिया के अधिकांश देशों की अदालतों में देवी जस्टिसिया की मूर्ति देखने को मिलेगी. फर्क यही होगा कि कहीं बाल घुंघराले खुल तो कहीं बंधे हुए होंगे. 

 

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