राजस्थान में बीजेपी ने पहले लिस्ट जारी कर क्या एक नया संकट मोल लिया?
राजस्थान में बीजेपी ने प्रत्याशियों की अपनी पहली लिस्ट जारी कर दी है. कई नए चेहरों के साथ सांसदों को भी टिकट मिला है. पार्टी के लोकल नेता जो टिकट के प्रबल दावेदार थे, वे अब बागी रुख अख्तियार कर लिए है. उन्हें दरकिनार करना पार्टी के लिए कहीं भारी न पड़ जाए?
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राजस्थान के विधानसभा चुनावों के लिए भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने उम्मीदवारों की पहली लिस्ट लाने में कांग्रेस से बाजी मारी. पर बीजेपी का ये शुरुआती कदम ही अब उसपर भारी पड़ता नजर आ रहा है. वजह बन रहे हैं वे नेता जिनका टिकट कटा और अब उन्होंने पब्लिकली बगावती सुर छेड़ रखा है. पार्टी ने 41 सीटों पर नामों का ऐलान किया, जिसमें 29 जो पहले के विधायक रहे है, के टिकट कट गए है. वसुंधरा राजे के समर्थकों के साथ पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेता दरकिनार हुए है. क्या ये बागी बीजेपी का खेल बिगाड़ देंगे? कहीं ये 2024 के चुनाव के लिए बीजेपी का होमवर्क तो नहीं? आइए समझते हैं.
लिस्ट में वसुंधरा समर्थकों को हासिए पर डाला गया है
माना जा रहा है कि बीजेपी की पहली लिस्ट में कद्दावर नेता वसुंधरा राजे के समर्थकों की अनदेखी हुई है. राजपाल सिंह, अनीता सिंह, हंसराम और नरपत सिंह राजवी जैसे नेताओं के टिकट कटे हैं. कम से कम 10 से 12 ऐसी सीटें हैं, जहां विरोध सामने आ रहा है.
सांसदों का चुनाव लड़ना, मास्टर स्ट्रोक या डिजास्टर स्ट्रोक?
बीजेपी ने राजस्थान में भी सांसदों को टिकट देकर मैदान में उतारा है. वरिष्ठ पत्रकार विजय विद्रोही कहते हैं कि, एक सांसद के अंदर 8 विधानसभा सीटें हैं, तो क्या बीजेपी की रणनीति सात सांसदों के माध्यम से 56 सीटों को प्रभावित करना है? वे इस पर सवाल भी उठाते हुए कहते हैं कि, ‘अगर बीजेपी सांसदों की जीत को लेकर कॉन्फिडेंट है तो, उन्हें चुनाव ही क्यों लड़ना चाहिए. वे तो प्रचार कर के उससे ज्यादा प्रभाव छोड़ सकते हैं. बीजेपी के प्रदेश में 24 सांसद हैं. अगर उन्हें केवल 4 सीटों का टारगेट दिया जाए तो पार्टी बहुमत के आंकड़े तक पहुंच जाएगी. लेकिन मुझे लगता है कि सांसदों को टिकट देकर नरेंद्र मोदी 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले होमवर्क कर रहे हैं. वे इस चुनाव में ही 2024 की सियासत को भांपना चाहते हैं.’
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विजय विद्रोही आगे कहते हैं कि “ऐसा लग रहा है कि बीजेपी को उसकी जीत दिखा रहे चुनावी सर्वे पर भी भरोसा नहीं है. टिकट बंटवारे से लगता है कि विचारधारा या जाति-धर्म से कोई परहेज नहीं किया गया है. पुराने या उबाऊ चेहरों वाली बीजेपी की जगह नई बीजेपी को मैदान में लाने की कोशिश की गई है. सोशल इंजीनियरिंग की गई है और जिताऊ प्रत्याशी को उतारा गया है.” पर सवाल वहीं है कि बगावत ने अगर खेल बिगाड़ा तो कहीं ये बीजेपी के लिए लेने के देने पड़ने वाली बात न हो जाए.
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