जम्मू-कश्मीर में हो रहे चुनाव पर, पूर्व CM गुलाम नबी आजाद का ऐसा हाल कि चुनाव छोड़ घर बैठे, ऐसा क्यों?

रूपक प्रियदर्शी

30 Aug 2024 (अपडेटेड: Aug 30 2024 10:28 AM)

Jammu-Kashmir Election: 2 साल में गुलाम नबी की पार्टी की धज्जियां उड़ गईं. ज्यादातर नेता पार्टी छोड़कर कांग्रेस में लौट चुके हैं. 90 विधानसभा सीटों के लिए उम्मीदवार तक नहीं मिल रहे.

Democratic Progressive Azad Party (DPAP) Chairman Ghulam Nabi Azad. (Photo: PTI)

Democratic Progressive Azad Party (DPAP) Chairman Ghulam Nabi Azad. (Photo: PTI)

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Jammu-Kashmir Election: गुलाम नबी आजाद जब तक कांग्रेस में रहे, राजनीति में जलवा रहा. एक बार बीजेपी के बहकावे में फंसे तो  राजनीति निपटने के कगार पर आ गई है. 10 साल बाद जम्मू कश्मीर में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं. गुलाम नबी आजाद की पार्टी डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आजाद पार्टी यानी DPAP लुटी-पिटी हालत में चुनाव में उतरी है. जब सब कुछ हो रहा है तब गुलाम नबी आजाद ने जबर्दस्त यूटर्न मारा है. पार्टी वाले हैरान-परेशान है कि अचानक क्या हो गया. आइए आपको बताते हैं आखिर ऐसा क्या किया आजाद ने?

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चुनाव का स्वागत करने वाले लड़ने से कर रहे परहेज

जम्मू-कश्मीर में जब विधानसभा चुनाव का ऐलान हुआ था गुलाब नबी आजाद ने इसका स्वागत किया. चुनाव का स्वागत करने वाले आजाद अब चुनाव से ही पीछे हट रहे हैं. गुलाम नबी आजाद ने तबीयत ठीक नहीं हैं बताकर पार्टी वालों से कह दिया कि चुनाव प्रचार नहीं करेंगे. पार्टी वाले देख लें कि क्या करना है. चाहें तो अपने-अपने नामांकन वापस ले लें. उन्होंने कहा आप लोग खुद आकलन कर लें कि मेरे बिना आगे बढ़ सकते हैं या नहीं. आपको बता दें कि, गुलाम नबी आजाद खुद चुनाव नहीं लड़ रहे हैं.

राहुल गांधी को निशाना बना कांग्रेस से हुए थे अलग 

2022 में राहुल गांधी को भला-बुरा बोलकर गुलाम नबी आजाद ने कांग्रेस को ठोकर मारी थी. कांग्रेस छोड़कर रॉकेट की तरह उड़ना था लेकिन धम से गिरे जमीन पर. गुलाम नबी आजाद और उनकी पार्टी दोनों का हाल बुरा है. लोकसभा चुनाव में गुलाम नबी आजाद अपनी राजनीतिक जमीन और भविष्य दोनों की बुरी दुर्गति देख चुके हैं. विधानसभा चुनाव अब भी उनके लिए अवसर है नए सिरे से राजनीतिक जमीन बनाने का लेकिन आजाद हिम्मत नहीं जुटा पा रहे.

बीजेपी में शामिल होने की भी चली अटकलें 

2022 में मोदी सरकार से पद्म भूषण सम्मान मिला था. तब गुलाम नबी आजाद कांग्रेस के सीनियर नेता थे. राज्यसभा में विपक्ष के नेता होते थे. कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद की पीएम मोदी खूब तारीफ किया करते थे. उसी तारीफ से आइडिया निकला था पद्म भूषण सम्मान देने का. कांग्रेस ने मोदी की चाल समझ ली. पद्म भूषण सम्मान लेने से मना नहीं किया. बल्कि सोनिया गांधी ने खुद फोन करके गुलाम नबी आजाद को बधाई दी थी. पद्म भूषण के बाद बड़ा खेल हुआ. गुलाम नबी को कांग्रेस, राहुल गांधी में हजार खामियां नजर आने लगीं. फाइनली उन्होंने राहुल गांधी की ऐसी-तैसी करके कांग्रेस को लात मार दी. सरकार ने दूसरी मेहरबानी वन नेशन वन इलेक्शन वाली कमेटी में शामिल करके की.

कांग्रेस छोड़कर गुलाम नबी आजाद बीजेपी में जा सकते थे. बीजेपी को फायदा ये होता कि घाटी में उसे बड़ा बड़ा चेहरा मिल जाता. गुलाम नबी का फायदा ये था कि कांग्रेस छोड़ने का ज्यादा डैमेज नहीं होता. उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया. कांग्रेस भी छोड़ दी. बीजेपी में भी नहीं गए. अलग डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आजाद पार्टी नाम की पार्टी बनाई जिसके साथ किसी पार्टी का अलायंस नहीं हुआ.

आजाद का साथ छोड़ कांग्रेस में हुए शामिल कई नेता

2 साल में गुलाम नबी की पार्टी की धज्जियां उड़ गईं. ज्यादातर नेता पार्टी छोड़कर कांग्रेस में लौट चुके हैं. 90 विधानसभा सीटों के लिए उम्मीदवार तक नहीं मिल रहे. किसी तरह DPAP ने पहले चरण के चुनाव में 24 सीटों पर 13 उम्मीदवार उतारे हैं. अटकलें लग रही हैं कि दूसरे और तीसरे चरण के चुनाव के लिए उम्मीदवारों की अगली लिस्ट भी न निकलें. गुलाम नबी आजाद के साथ जो रह गए उनमें से अपने दो वफादारों गुलाम मोहम्मद सरूरी और जुगल किशोर शर्मा को भी टिकट नहीं दिया. अब ये बागी होकर निर्दलीय चुनाव में उतर गए हैं.

लोकसभा चुनाव से ही गुलाम नबी को जमीनी सच्चाई समझ में आने लगी. लोकसभा चुनाव में अकेले DPAP ने अनंतनाग-राजौरी और ऊधमपुर से लोकसभा उम्मीदवार उतारे थे. खुद तो चुनाव नहीं लड़े. जो लड़े उनकी जमानत जब्त हुई. 2 लोकसभा सीटों की 36 विधानसभा सीटों में से कहीं भी पार्टी फाइट में नहीं थी.

अलग-थलग पड़ गए है गुलाम नबी आजाद

गुलाम नबी आजाद ने कांग्रेस और राहुल गांधी को जो बुरा भला कहा उस पर कांग्रेस सॉफ्ट रही. विधानसभा चुनाव की सरगर्मी शुरू होने पर नेताओं ने मीडिया में बयानबाजी करके सिग्नल देना शुरू किया था कि किसी के लिए दरवाजे बंद नहीं हैं. बीजेपी को हराने के लिए कोई भी साथ आ सकता है. गुलाम नबी सिग्नल को समझे नहीं या समझने को तैयार नहीं हुए. उनकी पार्टी ने कांग्रेस के सिग्नल को रिजेक्ट कर दिया. बीजेपी ने भी गुलाम नबी को कोई ऑफर दिया नहीं. कुल मिलाकर बिलकुल अलग-थलग पड़ गए गुलाम नबी आजाद. आज नतीजा ये है कि पीक चुनावी सीजन में प्रचार करने नहीं निकलेंगे. उम्मीदवारों से कह दिया है कि चाहो तो नामांकन वापस ले लो.

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