शरद पवार ने फिर सुरक्षा लेने से किया इनकार, क्यों ठुकराया गृहमंत्रालय के Z+ सिक्योरिटी का ऑफर?

रूपक प्रियदर्शी

31 Aug 2024 (अपडेटेड: Aug 31 2024 11:32 AM)

गृह मंत्रालय ने शरद पवार को जेड सिक्योरिटी देने का ऐलान किया लेकिन उन्होंने क्यों सरकारी सुरक्षा लेने से इनकार कर दिया.

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Maharashtra Politics: नरेंद्र मोदी पीएम बने तो उन्होंने विपक्ष के कई नेताओं का बड़ा सम्मान करना शुरू किया था. शरद पवार, गुलाम नबी आजाद ऐसे दो बड़े नेता थे. शरद पवार को मोदी सरकार ने भारत रत्न के बाद वाला सम्मान पद्म विभूषण दिया. माना गया कि मोदी पवार को अपने पाले में लाने या कांग्रेस से दूर रखने के लिए डोरे डाल रहे हैं. पवार ठहरे राजनीति के 50 साल पुराने खिलाड़ी. 

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बीजेपी को हुआ नुकसान!

नरेंद्र मोदी का खेल समझ गए. पद्म सम्मान पाकर भी टस से मस नहीं हुए. मोदी की बीच-बीच में तारीफ करते रहे लेकिन कभी बीजेपी से सटे नहीं.  बीजेपी ने इस बेरुखी का बदला लिया. पहले भतीजे अजित पवार को अलग किया. फिर एनसीपी छीन ली. पवार ने इसका बदला लोकसभा चुनाव में लिया. कांग्रेस-उद्धव ठाकरे के साथ मिलकर ऐसा खेल रचा कि बीजेपी गठबंधन का तेल निकल गया. 

लोकसभा चुनाव में हार से अमित शाह इतने तिलमिलाए कि सारा गुस्सा पवार पर निकाल दिया. महाराष्ट्र आकर पब्लिक रैली में करप्शन का सरगना कहकर बेइज्जती कर दी. शरद पवार ने उफ तक नहीं की. लेकिन अब जो किया है वो अमित शाह से लिया बदला है. 

शरद पवार को Z+ सिक्योरिटी का ऐलान

विधानसभा चुनाव से पहले अचानक अमित शाह के गृह मंत्रालय को चिंता होने लगी कि शरद पवार की सुरक्षा की. सरकारी फरमान जारी हुआ कि पवार को जेड प्लस सुरक्षा दी जाएगी. जेड प्लस मतलब CRPF कमांडोज वाला सिक्योरिटी कवर. एसपीजी के बाद सबसे मजबूत सिक्योरिटी कवर माना जाता है जेड प्लस को जिसमें परिंदा भी पर नहीं मार सकता. जेड प्लस सिक्योरिटी में एक कवर एनएसजी कवर का भी मिलता है. 

शरद पवार किसी सरकारी पद पर नहीं हैं. सांसद, विधायक, विपक्ष के नेता भी नहीं हैं. महाराष्ट्र के पूर्व सीएम, भारत सरकार के मंत्री रहे हैं. इस नाते ठीक ठाक सिक्योरिटी मिली हुई है. सरकार ने पवार को ऑफर किया कि 58 CRPF कमांडोज सुरक्षा में तैनात रहेंगे. घर के अंदर भी कमांडो तैनात होंगे. गाड़ी अपग्रेड की जाएगी. गाड़ी के अंदर भी दो कमांडो हिफाजत के लिए बैठा करेंगे.

सिक्योरिटी लेने से किया इनकार

सरकार के निर्देश पर CRPF अफसर सिक्योरिटी कवर लेकर पवार के घर पहुंच गए. पवार ने उनसे मुलाकात की और कह दिया कि नहीं चाहिए सरकार वाली जेड प्लस सिक्योरिटी. सरकार समय-समय पर जाने-माने लोगों की सुरक्षा की समीक्षा करती रहती है. किसी को सिक्योरिटी मिलती है. किसी की हटती है. किसी की बढ़ती है. किसी की घटती है. ऐसे ही समीक्षा में आया शरद पवार को लेकर थ्रे परसेप्शन. थ्रे परसेप्शन का मतलब खुफिया सूत्रों से सरकार को पता चलता है कि किसका कितना खतरा है. खतरा भांपते ही सरकार चौकन्नी हो जाती है. फिर ये नहीं देखा जाता है कि कौन सरकार का समर्थक है, कौन विरोधी. ये काम गृह मंत्रालय करता है जिसके चीफ अमित शाह हैं. 

ऐसी ही समीक्षा में सरकार ने माना कि पवार को सिक्योरिटी की जरूरत है क्योंकि थ्रेट परसेप्शन है. पवार ने खेल ये किया कि सरकार की थ्रेट परसेप्शन की थ्योरी नकार दी. कहा कि अपना थ्रेट परसेप्शन खुद देखेंगे. उसके बाद सुरक्षा लेने पर विचार करेंगे. उन्होंने गृह मंत्रालय से और जानकारी मांगी है. हालांकि अफसरों के समझाने से पवार इतने पर माने हैं कि दिल्ली वाले घर की आउटर बाउंड्री वॉल की हाइट ऊंची कर जाएगी. 

पहले भी कर चुके हैं मना

शरद पवार को शक हुआ कि सुरक्षा के पीछे सरकार की बदनीयती है. सरकार सुरक्षा नहीं दे रही है बल्कि जासूसी कराने के चक्कर में हैं. चुनाव आए हैं तो पवार के बारे में पक्की जानकारी सिक्योरिटी वाले ही दे सकते हैं कि कहां गए, किससे मिले,  कौन मिलने आया etc etc. सरकारी सिक्योरिटी होने से सबकी रजिस्टर में एंट्री होती रहती है. पवार को पहले भी सुरक्षा ऑफर की गई थी. तब भी उन्होंने जासूसी की आशंका से मना कर दिया था. 

पवार ने जो आशंका जताई है वैसी आशंका पहले भी सरकारी सुरक्षा को लेकर जताई जाती रही है. सरकारी सुरक्षा कुछ लोगों के स्टेट्स सिंबल होती है लेकिन पवार जैसे लोगों को जासूसी की गंध आती है. वो भी तब जबकि सरकार ऐसी पार्टी की है जिसने पार्टी ही नहीं, परिवार में भी दरार डालने का गंदा खेला हो.

माना जाता है कि 40-45 साल से महाराष्ट्र की राजनीति का पत्ता बिना शरद पवार के हिलता नहीं. आज भी नहीं हिल रहा है. पहले उन्होंने सुपर चाणक्य बनकर MVA गठबंधन से बीजेपी के गठबंधन को धूल चटाई. अब विधानसभा चुनाव में भी रिजल्ट दोहराने की तैयारी में हैं. शरद पवार अब सांसद, विधायक का चुनाव नहीं लड़ते. 4 बार सीएम रह लिए. देश के रक्षा मंत्री, कृषि मंत्री रहे. अब सीएम बनते नहीं, बनाते हैं. प्रधानमंत्री बने नहीं लेकिन राहुल गांधी को पीएम बनाने में जुटे हैं.

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