मध्यप्रदेश में आउटसोर्स कर्मचारियों को क्यों उतरना पड़ रहा सड़क पर? सरकार की अनदेखी से मामला हुआ गंभीर

अभिषेक शर्मा

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न्यूज़ हाइलाइट्स

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मप्र में आउटसोर्स कर्मचारी सड़क पर उतरने को हुए मजबूर.

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मप्र सरकार की नीतियों से परेशान होकर कर्मचारी कर रहे आंदोलन.

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आउटसोर्स कर्मचारियों को न्यूनतम वेतन के लिए भी करना पड़ रहा संघर्ष.

MP News: मध्यप्रदेश में सरकारी विभागों में ग्राउंड पर काम करने वाले अधिकतर आउटसोर्स कर्मचारियों ने आंदोलन का बिगुल फूंक रखा है. सड़क पर उतरकर वे आंदोलन करने को मजबूर हो गए हैं. हालत यह है कि श्रम मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल आंदोलनकारी कर्मचारियों से बचते भाग रहे हैं. ये आंदोलन कोई एक या दो दिन का नहीं है बल्कि ये पिछले पांच साल से मध्यप्रदेश में सक्रिय रूप से जारी है.

लेकिन हर बार सरकार दमनकारी तरीकों से इनके आंदोलन को कुचल देती है. कभी नौकरी से बाहर निकालने की धमकी देकर तो कभी पुलिस कार्रवाई की सख्ती कर आउटसोर्स कर्मचारियों को उनके आंदोलन करने के संवैधानिक हक से भी वंचित किया जा रहा है. आउटसोर्स कर्मचारी संघ के पदाधिकारी बताते हैं कि मध्यप्रदेश में साढ़े तीन लाख से अधिक सक्रिय आउटसोर्स कर्मचारी हैं जो सरकार के विभिन्न विभागों का 80 फीसदी काम संभाल रहे हैं.

भृत्य, सफाई कर्मचारी, कंप्यूटर ऑपरेटर, माली, ग्राउंड स्टाफ से लेकर कुछ जगहों पर लिपिक और सब इंजीनियर तक के पदों पर आउटसोर्स कर्मचारियों से काम कराया जा रहा है. लेकिन वेतन न्यूनतम कलेक्टर रेट का भी नहीं दिया जा रहा है. सालों से आउटसोर्स कर्मचारी वेतन को कम से कम कलेक्टर रेट के बराबर करने की मांग कर रहे हैं लेकिन किसी भी विभाग में आउटसोर्स कर्मचारियों को वह वेतन नहीं मिल रहा हैै जो दिल्ली, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों और केंद्र सरकार के आउटसोर्स कर्मचारियों को दिया जा रहा है.

पूरे देश में आउटसोर्स कर्मचारियों का वेतन सबसे कम एमपी में

आपको जानकर हैरानी होगी कि पूरे देश में सिर्फ मध्यप्रदेश वह राज्य है जहां पर आउटसोर्स कर्मचारियों को सबसे कम वेतन दिया जाता है. जबकि 80 फीसदी विभाग इन आउटसोर्स कर्मचारियों पर ही निर्भर है. मप्र आउटसोर्स कर्मचारी संघ के पदाधिकारी मनोज भार्गव बताते हैं कि पिछले 25 सालों से मध्यप्रदेश सरकार ने तृतीय और चतुर्थ श्रेणी वर्ग के कर्मचारियों की नियमित भर्ती नहीं की है, जिसकी वजह से मध्यप्रदेश में बड़े पैमाने पर सरकारी कामकाज आउटसोर्स कर्मचारियों के भरोसे ही चलाया जा रहा है. इसके बावजूद यहां पर आउटसोर्स कर्मचारियों को दो हजार से 11 हजार रुपए मासिक तक का ही वेतन दिया जा रहा है.

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जबकि सरकार के विभिन्न विभागों से आउटसोर्स कर्मचारियों को 15 हजार रुपए मासिक से लेकर 18 हजार रुपए मासिक तक का वेतन मंजूर किया गया है लेकिन आउटसोर्स करने वाली कंपनियां 18 प्रतिशत जीएसटी काटने के बाद कर्मचारियों के हक में दी जाने वाली सैलरी में भी अपना कट निकाल लेते हैं, जिसकी वजह से आउटसोर्स कर्मचारियों को दो हजार से 11 हजार रुपए मासिक ही मिल पाता है. यह खुलेआम सरकारी वेतन की लूटपाट है, जिसे सुनियोजित तरीके से मप्र सरकार के हर विभाग में अंजाम दिया जा रहा है लेकिन इस पर सरकार की ओर से अभी तक कोई सख्ती नहीं हुई है.

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