जगन मोहन रेड्डी को क्या बीजेपी से दोस्ती पड़ी है भारी? चंद्रबाबू नायडू के पावर में आते ही YSRCP में मची है भगदड़

रूपक प्रियदर्शी

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 YSRCP chief YS Jagan Mohan Reddy
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न्यूज़ हाइलाइट्स

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जगन मोहन रेड्डी आंध्र की राजनीति में लगातार पिछड़ रहे हैं.

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पहले विधानसभा, फिर लोकसभा चुनाव में मिली बुरी हार.

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अब राज्यसभा के सांसद भी धीरे-धीरे छोड़ रहे उनका साथ.

Jagan Mohan Reddy: जगन मोहन रेड्डी ने करीब 10 साल की राजनीतिक पारी में दो-दो गलतियां कर दी. कांग्रेस से दुश्मनी कर ली. बीजेपी से दोस्ती कर ली. लोकसभा और विधानसभा चुनावों के बाद कांग्रेस ने तो जगन मोहन को नहीं छोड़ा लेकिन बीजेपी से पुरानी दोस्ती की बड़ी कीमत अब वे चुका रहे हैं. बीजेपी को साथ लेकर जगन मोहन रेड्डी का बैंड बजा रहे हैं चंद्रबाबू नायडू. वैसे भी चुनाव बाद जगन मोहन रेड्डी कैंप से सिर्फ बुरी-बुरी खबरें ही आ रही हैं. 

जगन मोहन रेड्डी की पार्टी YSRCP ने आंध्रप्रदेश के विधानसभा चुनाव में हारकर सत्ता गंवाई. 140 सीटें हारकर सिर्फ 11 विधायक बचा पाए. लोकसभा चुनाव में 18 सीटें हारकर सिर्फ 4 सांसद जिता पाए. जगन मोहन को बड़ा गुमान था कि लोकसभा में सांसद कम हुए तो क्या हुआ. राज्यसभा में तो 11 सांसद रहेंगे ही. लेकिन अब यहां भी बुरी नजर गई है. जगन मोहन रेड्डी को. YSRCP के राज्यसभा सांसदों में भगदड़ मची है. चुनाव से पलटी राजनीति में 11 में से 3 सांसदों ने पार्टी छोड़ दी है. अब रह गए हैं सिर्फ 8 सांसद लेकिन ये भी कब तक रहेंगे या नहीं, इसकी कोई गारंटी नहीं.

आंध्र प्रदेश में जगन मोहन रेड्डी के साथ वही खेला हो रहा है जो ओडिशा में नवीन पटनायक के साथ हुआ. नवीन पटनायक
और जगन मोहन रेड्डी 2024 के चुनाव से पहले तक बीजेपी के मुंहबोले मित्र की भूमिका निभाते रहे. एनडीए में शामिल हुए बिना गठबंधन धर्म का पालन करते रहे. बीजेपी और मोदी सरकार से दोस्ताना बनाए रखा. जैसे ही ओडिशा में नवीन पटनायक की हार हुई, ओडिशा से बीजेडी की राज्यसभा सांसद ममता मोहंता ने इस्तीफा दे दिया. बीजेपी में चली गईं. उन्ही के इस्तीफे से खाली हुई सीट पर उपचुनाव में उम्मीदवार बनाकर ममता मोहंता को बीजेपी ने दोबारा राज्यसभा सांसद बनवा दिया. बीजेडी को नुकसान, बीजेपी को एक सीट का फायदा हो गया. 

चंद्रबाबू नायडू के कमबैक से मचा है हाहाकार

आंध्र प्रदेश में खेल बीजेपी नहीं, टीडीपी के चंद्रबाबू नायडू का रचाया माना जा रहा है. जो नेता कभी टीडीपी से YSRCP में गए थे, उनकी घर वापसी के लिए चंद्रबाबू नायडू ने दरवाजे खोल दिए हैं. डूबते जहाज YSRCP से ज्यादा सुरक्षित लग रहा है टीडीपी का किला. सबसे लेटेस्ट इस्तीफा हुआ राज्यसभा सांसद रयागा कृष्णैया का. कृष्णैया ने राज्यसभा सदस्यता छोड़ दी है. उनका इस्तीफा राज्यसभा चेयरमैन जगदीप धनखड़ ने मंजूर भी कर लिया.

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कृष्णैया टीडीपी से ही YSRCP में आए थे. टीडीपी में थे तो विधायक थे. टीडीपी छोड़कर आए तो जगन मोहन ने राज्यसभा सांसद बनाकर प्रमोशन दिया. 2022 में सांसद बने. जून 2028 तक सांसद रह सकते थे लेकिन इतने में कृष्णैया का मन भर गया.

नायडू हमारे सांसदों को खरीद रहे- जगन

जगन की पार्टी आरोप लगा रही है कि नायडू हमारे सांसदों को खरीद रहे हैं. मतलब ये चर्चा सही हो सकती है कि कृष्णैया को भी वापस चंद्रबाबू नायडू ने बुलाया हो.  वैसे कृष्णैया ने पत्ते नहीं खोले हैं कि कहां जा रहे हैं लेकिन उन्होंने कहा कि फैसला पिछली जाति संगठनों से पूछकर लिया है. चर्चा है कि कृष्णैया बीजेपी में भी जा सकते हैं. कृष्णैया तेलंगाना में पिछड़ी जातियों के बड़े नेता माने हैं. जगन मोहन मना कर पार्टी में लाए थे. बदले में राज्यसभा में भेजा था.

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पिछले महीने YSRCP के दो राज्यसभा सांसदों-मस्तान राव और वेंकटारमन राव मोपीदेवी ने इसी पैटर्न पर इस्तीफा दिया था. दोनों टीडीपी में जा रहे हैं. मोपीदेवी का कार्यकाल जून 2026 तक था. मस्तान राव का कार्यकाल तो जून 2028 तक था. तीनों सांसदों के इस्तीफे के बाद उपचुनाव कराया जाएगा. विधानसभा चुनाव में बंपर बहुमत होने से तीनों खाली सीटों पर टीडीपी के सांसद जीत सकते हैं.

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चंद्रबाबू नायडू की तूफानी वापसी ने आंध्र की राजनीति बदली 

चंद्रबाबू नायडू ने लोकसभा और विधानसभा चुनावों में तूफानी वापसी की. विधानसभा की 175 में से 135 सीटें जीती. जनसेना पार्टी के 21 और बीजेपी के 8 विधायक मिलाने से विधानसभा में कुल बहुमत 164 का हो गया.  बची हुई 11 सीटें जगन मोहन की पार्टी के पास हैं. लोकसभा में भी 25 में से टीडीपी के 16 सांसद जीते. मामला गड़बड़ राज्यसभा में है. 

2019 में बुरी तरह हारने के बाद टीडीपी की हाजिरी राज्यसभा में जीरो चल रही है. YSRCP के जितने ज्यादा सांसद राज्यसभा से इस्तीफा देंगे, उतनी तादाद में टीडीपी के राज्यसभा सांसद जीत सकते हैं. राज्यसभा में टीडीपी की ताकत बढ़ना बीजेपी के ही फायदे की बात है. हालांकि राज्यसभा में एनडीए के सामने अब बहुमत का संकट रहा नहीं.

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