जिनका इलेक्शन एजेंट बन शुरू हुआ था अमित शाह का पॉलिटिकल करियर, कहानी लालकृष्ण आडवाणी की
1947 में भारत विभाजन के बाद आडवाणी दिल्ली आ गए. आडवाणी 1951 में भारतीय जनसंघ में शामिल हो गए. उन्होंने हिंदू राष्ट्रवादी विषयों पर जोर दिया और मतदाताओं के एक बड़े वर्ग को आकर्षित किया.
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News Tak: आज देश के पूर्व उप प्रधानमंत्री रहे लालकृष्ण आडवाणी का 96वां जन्मदिन है. भारत की और खासकर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की सियासत में आडवाणी महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं. आज बीजेपी जिस राम मंदिर को बनवाने का क्रेडिट लेती है, आडवाणी ने अपनी रथ यात्रा के दम पर इसे सियासत का केंद्र बिंदु बनाया था. आडवाणी ने राम मंदिर आंदोलन को ऐसा नेतृत्व दिया की पूरे उत्तर भारत में भाजपा एक तरह से स्थापित हो गई. एक्सपर्ट मानते हैं की आडवाणी का सांगठनिक कौशल अनमैचेबल है. वहीं आलोचक अक्सर यह भी कहते हैं कि आडवाणी हमेशा पीएम इन वेटिंग ही रह गए. आज जब आडवाणी ने इतने लंबे वर्षों तक सियासत कर ली हैं, तो उनकी इस यात्रा को कैसे देखा जाना चाहिए?
लालकृष्ण आडवाणी का जन्म अविभाजित भारत के कराची प्रांत में 1927 में हुआ था. यह अब पाकिस्तान का हिस्सा है. 1947 में भारत विभाजन के बाद आडवाणी दिल्ली आ गए. विभाजन के वक्त उन्होंने शरणार्थियों के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के राहत प्रयासों में सक्रिय रूप से भाग लिया. उनकी राजनीतिक यात्रा कम उम्र से ही शुरू हो गई थी. आडवाणी 1951 में भारतीय जनसंघ में शामिल हो गए. आडवाणी की सियासी समझ ने जनसंघ में उन्हें अलग पहचान दी. उन्होंने जनसंघ में विभिन्न दायित्वों को निभाया. पार्टी की विचारधारा के प्रति उनके समर्पण और लोगों से जुड़ने की उनकी क्षमता ने उन्हें जनसंघ में प्रमुख स्थान दिया. 1980 में जब भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का गठन हुआ, उसमें अडवाणी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. वे बीजेपी के महासचिव बने और बाद में इसके अध्यक्ष भी बने.
अडवाणी के नेतृत्व में पार्टी ने उल्लेखनीय मुकाम हासिल किये. उन्होंने कुशलतापूर्वक पार्टी की चुनावी रणनीतियों को तैयार किया. उन्होंने हिंदू राष्ट्रवादी विषयों पर जोर दिया और मतदाताओं के एक बड़े वर्ग को आकर्षित किया. उनके तीखे भाषणों और करिश्माई व्यक्तित्व ने जनता के बीच एक अलग पहचान बनाई.
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लालकृष्ण आडवाणी के सियासी सफर के बारे में न्यूज Tak ने वरिष्ठ पत्रकार विजय त्रिवेदी से बात की
विजय त्रिवेदी कहते हैं- ‘वर्तमान में बीजेपी की जो जेनरेशन या संगठन है, वो सबकुछ आडवाणी का ही तैयार किया हुआ है. संगठनकर्ता के तौर पर देशभर में उनसे बेहतर कोई नेता नहीं हो सकता. भाजपा का जो मौजूद नेतृत्व है, चाहे वो नरेंद्र मोदी हो या शिवराज, वसुंधरा, सभी को आडवाणी ने ही तैयार किया है. पार्टी के वर्तमान में चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह का कैरियर तो उन्हीं की गांधीनगर सीट से इलेक्शन एजेंट के रूप में शुरू हुआ.’
वह आगे कहते हैं, ‘संगठन के तौर पर उन्होंने बीजेपी को इतनी मजबूती से खड़ा किया की आज पार्टी दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी बन गई है. उन्होंने पार्टी को ‘चाल, चरित्र और चेहरा’ का नारा दिया और जब तक वो पार्टी में सक्रिय रहे उन्होंने उसपर काम किया और एक विचारधारा के तौर पर पार्टी को आगे बढ़ाया.’
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‘BJP के हिंदुत्व की विचारधारा के पहले आइकॉन आडवाणी’
विजय त्रिवेदी कहते हैं, ‘बीजेपी के हिंदुत्व की विचारधारा के पहले आइकॉन आडवाणी ही हैं. आज बीजेपी जिस राम मंदिर का क्रेडिट लेती है, उसके लिए सबसे पहले अभियान को बड़े स्तर पर राजनीतिक ताकत आडवाणी ने ही दी थी. जिसकी फसल आज बीजेपी काट रही है.’
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विजय त्रिवेदी कहते हैं, ‘लालकृष्ण आडवाणी राजनीतिक ईमानदारी की एक मिसाल हैं. जब हवाला मामले में उनका नाम आया तब उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया और 1996 का चुनाव नहीं लड़ा. उन्होंने कहा था की जब तक मैं इस मामले से बाहर नहीं निकल जाता तबतक कोई भी पद नहीं लूंगा. आडवाणी अकेले ऐसे नेता हैं जिन्होंने खुद पार्टी के बड़े नेता होते हुए भी 1996 में प्रधानमंत्री पद के लिए अटल बिहारी वाजपेयी का नाम दिया.’
विजय त्रिवेदी कहते हैं की, ‘2014 में जब नरेंद्र मोदी का नाम चुनाव प्रभारी और प्रधानमंत्री के तौर पर आया तब आडवाणी ने इसपर आपत्ति दर्ज कराई थी. शायद यही बात उनके राजनीतिक ढलान की वजह भी बनी. 2019 के चुनावों में बीजेपी ने उनको टिकट नहीं दिया और पार्टी के मार्गदर्शक मंडल में डाल दिया.’
आपको बता दें कि BJP ने पार्टी के कुशल मार्गदर्शन के लिए एक मार्गदर्शक मंडल बनाया है. इसमें पार्टी के बुजुर्ग नेताओं को जगह मिलती है. विजय त्रिवेदी कहते हैं, ‘अब मार्गदर्शक मंडल खत्म हो गया है और उसी के साथ उनका (आडवाणी का) राजनैतिक सफर भी पूरा हो गया. हालांकि आडवाणी का प्रधानमंत्री बनने का सपना था, वो उन्हें हासिल नहीं हो पाया.’
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