जम्मू-कश्मीर में नेशनल कॉन्फ्रेंस-कांग्रेस गठबंधन या बीजेपी किसका पलड़ा है भारी? आंकड़ों से समझिए 

अभिषेक

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Jammu-Kashmir Election: जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव के पहले चरण के लिए नामांकन की आखिरी तारीख 27 अगस्त को समाप्त हो गई. 18 सितंबर को होने वाले पहले फेज की 24 सीटों के लिए 279 उम्मीदवार मैदान में हैं. जम्मू-कश्मीर में इस बाद त्रिकोणीय मुकाबले की उम्मीद है. चुनाव में कांग्रेस गठबंधन, जम्मू और कश्मीर पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी(JKNC) और बीजेपी के साथ नई पार्टियां और स्वतंत्र उम्मीदवार अपनी ताकत दिखा रहे हैं.

वैसे राज्य ने अपने पिछले तीन चुनावों 2002, 2008 और 2014 में स्पष्ट जनादेश नहीं दिया है. क्या मतदाता इस बार पहले के रुझान को मात देंगे और पिछले एक दशक में हो रहे इस पहले चुनाव में राज्य के बजाय केंद्र शासित प्रदेश के नए अवतार में स्पष्ट फैसला देंगे? आइए इस बात को राजनैतिक विश्लेषक अमिताभ तिवारी से समझते हैं.

पहले जानिए पिछले चुनाव के कैसे से नतीजे?

2002 में नेशनल कॉन्फ्रेंस 28 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. कांग्रेस और पीडीपी ने 20 और 16 सीटों के साथ अन्य के साथ मिलकर चुनाव बाद समझौता किया. वोट शेयर के मामले में, नेशनल कॉन्फ्रेंस को 28 फीसदी, कांग्रेस को 24 फीसदी और भाजपा और पीडीपी को नौ-नौ फीसदी वोट मिले.

2008 में, एनसी 28 सीटों (23 फीसदी वोट) के साथ फिर से सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. इस बार, कांग्रेस ने 16 सीटों (18 फीसदी वोट) के साथ एनसी के नेतृत्व वाली सरकार का समर्थन किया. पीडीपी ने 21 सीटें (15 फीसदी वोट) और भाजपा ने 11 सीटें (12 फीसदी वोट) जीतीं.

2014 में पीडीपी 28 सीटों (23 फीसदी वोट) के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी. 15 सीटों (23 फीसदी वोट) के साथ बीजेपी ने पीडीपी से हाथ मिलाया और सरकार बनाई. एनसी ने 21 फीसदी वोटों के साथ 15 सीटें जीतीं और कांग्रेस ने 18 फीसदी वोटों के साथ 12 सीटें हासिल कीं. अन्य का प्रभाव काफी कम हो गया और वोट शेयर आधा होकर 15 फीसदी रह गया.

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विधानसभा चुनाव में पार्टियों के गढ़ और कमजोर क्षेत्र 

पार्टियों की ताकत का पता लगाने वाला यंत्र सीटों का वर्गीकरण इस आधार पर किया जाता है कि पार्टी कितनी बार सीट पर विजयी हुई है. इसके अध्ययन से यह पता चलता है कि जम्मू और कश्मीर में त्रिशंकु विधानसभा क्यों हो रही है. 

प्रदेश में केवल 22 सीटें हैं जहां नेशनल कॉन्फ्रेंस(NC) मजबूत है या बहुत मजबूत है और पिछले तीन चुनावों में दो या तीन बार जीत चुकी है. पीडीपी के लिए यह संख्या 21 है. कांग्रेस और भाजपा के पास ऐसी 12 सीटें हैं. 

ऐसी 43 सीटें हैं जिन्हें NC ने पिछले तीन चुनावों में कभी नहीं जीती है, जिन्हें कमजोर या कठिन सीट के तौर पर वर्गीकृत किया जा सकता है. पीडीपी के लिए यह संख्या 51, कांग्रेस के लिए 52 और भाजपा के लिए 61 है. चार मुख्य दलों ने 87 सीटों (पुराने) वाले सदन में कभी भी आधी या आधी से अधिक विधानसभा सीटें नहीं जीती हैं. 

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अगर क्षेत्र-वार पार्टियों की स्थिति को स्कैन करें तो और दिलचस्प बातें पता चलती है. बीजेपी के पास कश्मीर में सबसे कठिन सीटें 61 में से 46 हैं. पार्टी ने घाटी में कभी एक भी सीट नहीं जीती है. पार्टी का गढ़ या थोड़ी मजबूत सीटें जम्मू में हैं. हालांकि जम्मू में 11 सीटें ऐसी भी हैं जिन पर उसे पिछले तीन चुनावों में जीत नहीं मिली है.

NC के लिए अधिकांश मुश्किल सीटें जम्मू रीजन में है जो 43 में से 24 सीटें हैं. उसकी सभी बेहद मजबूत सीटें कश्मीर घाटी में हैं. हालांकि कश्मीर में 17 सीटें ऐसी हैं जिन पर वह पिछले तीन चुनावों में जीत नहीं पाई है. पीडीपी की अधिकांश कठिन सीटें 51 में से 33 जम्मू में हैं. NC की तरह इसकी मजबूत सीटें कश्मीर में हैं. हालांकि कश्मीर में 14 सीटें ऐसी हैं जिन पर उसे पिछले तीन चुनावों में जीत नहीं मिली है.

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कांग्रेस पार्टी की अधिकांश मुश्किल सीटें 52 में से 38 कश्मीर में हैं. इसकी ज्यादातर मजबूत और थोड़ी मजबूत सीटें जम्मू में हैं. वैसे पार्टी जम्मू की 13 सीटों पर पिछले तीन चुनावों में जीत हासिल करने में विफल रही.

क्या INDIA ब्लॉक की हो सकती है जीत?

INDIA गठबंधन में हुए सीटों के समझौते के अनुसार, कांग्रेस प्रदेश की 32 सीटों पर चुनाव लड़ेगी वहीं NC 51 सीटों पर चुनाव लड़ेगी, जबकि भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) और पैंथर्स पार्टी एक-एक सीट पर चुनाव लड़ेगी. पांच सीटों पर कांग्रेस और NC के बीच दोस्ताना मुकाबला होगा. दोनों दलों ने 1987 के बाद पहली बार राज्य चुनावों के लिए गठबंधन किया है जब गठबंधन ने प्रस्तावित 76 सीटों में से 66 सीटें जीती थीं. NC ने 45 सीटों पर और कांग्रेस ने 30 सीटों पर चुनाव लड़ा. बड़े पैमाने पर धांधली होने वाले चुनाव में उन्होंने 40 और 26 सीटें जीतीं.

कोई भी गठबंधन किसी एक पार्टी के राज्य भर में उसके प्रभाव की अनुपस्थिति को कम करता है.  जिसमें नेशनल कॉन्फ्रेंस का कश्मीर घाटी में और कांग्रेस का जम्मू क्षेत्र में प्रभाव होता है. घाटी में 29 सीटें हैं जिन पर नेशनल कॉन्फ्रेंस ने पिछले तीन चुनावों में कम से कम एक बार जीत हासिल की है, जबकि जम्मू में कांग्रेस के लिए ऐसी 24 सीटें हैं.

इसके अलावा, कांग्रेस के पास कश्मीर में दो मजबूत/बहुत मजबूत सीटें हैं, जबकि नेशनल कॉन्फ्रेंस के पास जम्मू में पांच मजबूत/बहुत मजबूत सीटें हैं। कश्मीर में जहां 97 प्रतिशत मुस्लिम आबादी है, वहीं जम्मू में हिंदू बहुल होने के बावजूद 30 प्रतिशत मुस्लिम आबादी है। इसके पांच जिलों में 13 सीटें हैं जहां मुस्लिम आबादी बहुमत में है और यहीं पर जेकेएनसी/पीडीपी का भी कुछ प्रभाव है। अगर दोनों पार्टियां 2014 में एक साथ चुनाव लड़तीं, तो वोटों के निर्बाध हस्तांतरण को मानते हुए, वे 87 में से 43 सीटें जीततीं और सरकार बनातीं। स्वतंत्र रूप से कांग्रेस ने 12 सीटें और एनसी ने 15 सीटें जीतीं। उसे पीडीपी से 10 और भाजपा से छह सीटें मिलीं।

क्या बीजेपी जीत सकती है?

जम्मू-कश्मीर में हुए नए परिसीमन के अनुसार, जम्मू की सीटें 37 से बढ़कर 43 जबकि कश्मीर घाटी में सीटें 46 से बढ़कर 47 हो गईं है. 90 सीटों वाले विधानसभा में बाउमत के लिए  46 सीटें चाहिए. इसलिए बीजेपी भले ही जम्मू में जीत हासिल कर ले, लेकिन वह अपने दम पर आधे के आंकड़े तक नहीं पहुंच सकती. दिलचस्प बात तो ये है कि, पार्टी पहले चरण के की 24 सीटों में से आठ पर भी चुनाव नहीं लड़ रही है.

वैसे फैक्ट यह है कि बीजेपी कश्मीर घाटी में अभी भी कमजोर है. साथ ही जम्मू में इसकी 11 कमजोर सीटें हैं जिससे बहुमत पाना उसके लिए मुश्किल है. वैसे पार्टी कश्मीर में कुछ सीटें जीतने के लिए सज्जाद लोन की पार्टी, दलबदलुओं और निर्दलीय जैसे छोटे दलों पर भरोसा कर रही है, जिससे NC-कांग्रेस गठबंधन का गेम प्लान खराब हो गया है.

बीजेपी को यह भी उम्मीद है कि पीडीपी घाटी में अपना खेल काफी बेहतर करेगी क्योंकि यह एक राज्य का चुनाव है जहां स्थानीय मुद्दों को प्राथमिकता दी जाएगी. पीडीपी 2019 और 2024 के आम चुनावों में एक भी सीट नहीं जीत सकी और 2024 में नौ फीसदी से कम वोट शेयर हासिल किया. भगवा पार्टी को उम्मीद है कि कश्मीर घाटी की सीटें एनसी, पीडीपी और निर्दलीय/छोटी पार्टियों के बीच तीन तरह से विभाजित हो जाएंगी, जबकि वह जम्मू क्षेत्र पर अपनी पकड़ मजबूत कर लेगी. 

वैसे 2024 के आम चुनावों में INDIA ब्लॉक 34 सीटों, बीजेपी 29 सीटों, पीडीपी पांच सीटों और अन्य 15 सीटों पर आगे चल रहे थे. बीजेपी के लिए सबसे अच्छी स्थिति यह होगी कि पिछले तीन चुनावों की तरह त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति फिर से पैदा हो. और पार्टी का लक्ष्य निर्णायक भूमिका निभाने के लिए पर्याप्त सीटें जीतना और किंगमेकर के रूप में उभरने की स्थिति में होना है. 

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