सुप्रीम कोर्ट ने सिटीजनशिप एक्ट की धारा 6A की वैधता को रखी बरकरार, क्या है ये? इसपर क्यों उठ रहे सवाल?

अभिषेक

ADVERTISEMENT

सुप्रीम कोर्ट.
सुप्रीम कोर्ट.
social share
google news

Section 6A of the Citizenship Act: देश की सर्वोच्च अदालत(SC) ने आज सिटीजनशिप एक्ट के आर्टिकल 6A को लेकर फैसला सुनाया. कोर्ट ने अपने फैसले में आर्टिकल 6A की कानूनी वैधता को बरकरार रखा है. दरअसल SC mएन इसकी वैधता को चुनौती देते हुए याचिका लगाई गई थी जिसपर चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने फैसला सुनाया.  CJI चंद्रचूड़ ने कहा कि, आर्टिकल 6A उन लोगों को नागरिकता प्रदान करता है जो संवैधानिक प्रावधानों के अंतर्गत नहीं आते हैं इसीलिए इसकी वैधता बरकरार रखना जरूरी है. 

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकार से अवैध बांग्लादेशी प्रवासियों की पहचान, पता लगाने और निर्वासन के लिए असम में तत्कालीन सर्बानंद सोनोवाल सरकार में NRC को लेकर दिए गए निर्देशों को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए कहा है. सुप्रीम कोर्ट अब से इस पहचान और निर्वासन प्रक्रिया की निगरानी करेगा.

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद आपके मन में ये सवाल उठ रहा होगा कि, आखिर क्या है आर्टिकल 6A? कब और क्यों लाया गया था इसे? आइए आपको बताते हैं. 

क्या है असम अकॉर्ड और आर्टिकल 6A?

1971 में जब पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) के खिलाफ पाकिस्तानी सेना ने कार्रवाई की तो वहां के करीब 10 लाख लोगों ने असम में शरण ली. इसके बाद बड़ी संख्या में बांग्लादेशी असम में ही अवैध रूप से रहने लगे. तब प्रदेश के स्थानीय लोगों को लगा कि ये लोग उनके संसाधनों पर कब्जा कर लेंगे. इसी को लेकर अवैध प्रवासियों को लेकर विरोध पनपने लगा. उनके खिलाफ साल 1979 से चले लंबे आंदोलन और 1983 की भीषण हिंसा के बाद समझौते के लिये बातचीत की प्रक्रिया शुरू हुई. 15 अगस्त 1985 को केंद्र सरकार और आंदोलनकारियों के बीच समझौता हुआ जिसे असम समझौते के नाम से जाना जाता है. 

ADVERTISEMENT

बांग्लादेश से आए अवैध प्रवासियों को भारत की नागरिकता प्रदान करने के लिए सिटीजनशिप एक्ट 1955 की धारा 6A के तहत ये प्रावधान किये गए-

- असम समझौते के तहत 1951 से 1961 के बीच असम आए सभी लोगों को पूर्ण नागरिकता और मतदान का अधिकार देने का फैसला लिया गया. 

- ऐसे ही 1961 से 1971 के बीच असम आने वाले लोगों को नागरिकता तथा अन्य अधिकार दिये गए, लेकिन उन्हें मतदान का अधिकार नहीं दिया गया. 

ADVERTISEMENT

- समझौते के मुताबिक 25 मार्च, 1971 के बाद असम में आए सभी बांग्लादेशी नागरिकों को यहां से जाना होगा, चाहे वे हिंदू हों या मुसलमान. 

ADVERTISEMENT

क्या हुआ सुप्रीम कोर्ट में?

इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संवैधानिक बेंच ने कहा कि, आर्टिकल 6A उन लोगों को नागरिकता प्रदान करता है जो जुलाई 1949 के बाद प्रवासित हुए, लेकिन नागरिकता के लिए आवेदन नहीं किया. सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा, 6A उन लोगों को नागरिकता प्रदान करता है जो 1 जनवरी 1966 से पहले प्रवासित हुए थे. इस प्रकार यह उन लोगों को नागरिकता प्रदान करता है जो अनुच्छेद 6 और 7 के अंतर्गत नहीं आते हैं. 

SC ने नागरिकता अधिनियम 1955 की धारा 6A की 4:1 के बहुमत से वैधता बरकरार रखी. आपको बता दें कि, इस फैसले में जस्टिस जे पारदीवाला ने असहमति जताई. जस्टिस पारदीवाला का कहना था कि यह संभावित प्रभाव से असंवैधानिक है. वही सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस सूर्यकांत, एमएम सुंदरेश और मनोज मिश्रा बहुमत में रुख रहा. नागरिकता अधिनियम 1955 की धारा 6A को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी. इन याचिकाओं पर SC की पांच जजों की संविधान पीठ ने सुनवाई की और फैसला सुनाया.

कोर्ट ने कहा, 6A (3) का उद्देश्य दीर्घकालिक समाधान प्रदान करना है. असम समझौता वहां के निवासियों के अधिकारों को कमजोर करना था. बांग्लादेश और असम समझौते के बाद प्रावधान का उद्देश्य भारतीय नीति के संदर्भ में समझा जाना चाहिए. इसे हटाने से वास्तविक कारणों की अनदेखी होगी. 

अब जानिए 6A को असंवैधानिक बताने के पीछे क्या था तर्क?

याचिकाकर्ता का तर्क था कि 6A असंवैधानिक है, क्योंकि यह संविधान के अनुच्छेद 6 और 7 की तुलना में नागरिकता के लिए अलग-अलग तारीखें निर्धारित करता है. अलग-अलग तारीख निर्धारित करने की संसद की क्षमता संविधान में है.

इसपर सुप्रीम कोर्ट ने कहा, भारत में नागरिकता प्रदान करने के लिए पंजीकरण व्यवस्था जरूरी नहीं है. 6A को सिर्फ इसलिए अमान्य नहीं कहा जा सकता, क्योंकि यह पंजीकरण व्यवस्था का अनुपालन नहीं करता है. सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि संसद बाद की नागरिकता के लिए शर्तें निर्धारित करने के लिए अलग-अलग शर्तें निर्धारित करने में सक्षम है. 6A स्थायी रूप से संचालित नहीं होता है. 6A उन लोगों के निर्वासन की अनुमति देता है जो कट ऑफ तिथि के बाद अवैध रूप से प्रवेश करते हैं. यह नहीं कह सकते कि आप्रवासन ने असम के नागरिकों के वोट देने के अधिकार को प्रभावित किया है. याचिकाकर्ता किसी भी अधिकार का उल्लंघन साबित करने में विफल रहे हैं.

    follow on google news
    follow on whatsapp

    ADVERTISEMENT