'दोषी होने पर भी नहीं गिराया जा सकता घर...', बुलडोजर एक्शन पर सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी

अभिषेक

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Bulldozer Action: हाल के दिनों में देश में नया ट्रेंड देखने को मिला है. राज्य सरकारें अपराधियों के घरों पर बुलडोजर एक्शन ले रही है. यानी की बिना कोर्ट ट्रायल और अपराध सिद्ध हुए बगैर ही उनके घरों को जमींदोज कर दिया जा रहा है. वैसे अपराध सिद्ध होने के बाद भी किसी का घर गिरा देना ये कही का न्याय नहीं है. उत्तर प्रदेश से शुरू हुआ ये बुलडोजर न्याय मध्य प्रदेश, राजस्थान, दिल्ली सहित देश के कई प्रदेशों में फैल गया. हद तो तब हो गई जब अपराध करने वाला किराये के मकान में रह रहा था फिर सरकार ने उस किराये के मकान को भी गिरा दिया. MP के छतरपुर और राजस्थान के उदयपुर में हुई बुलडोजर कार्रवाई के बाद सरकार के कदम की खूब आलोचना हुई. मामला सुप्रीम कोर्ट तक जा पहुंचा. 

इसी के तहत सुप्रीम कोर्ट में बुलडोजर मामलों की सुनवाई हुई. जस्टिस गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच के समक्ष सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलीलें पेश कीं. सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर कार्रवाई पर गंभीर सवाल उठाए हैं. कोर्ट ने कहा कि सिर्फ आरोपी होने के आधार पर किसी के घर को गिराना उचित नहीं है. अदालत ने शासन और प्रशासन की कार्रवाई पर सवाल उठाते हुए कहा कि अगर कोई व्यक्ति दोषी भी है, तो भी उसके घर को गिराया नहीं जा सकता. जस्टिस विश्वनाथन ने सरकार से इस मामले में विस्तृत जवाब मांगा है. इस मामले पर अगली सुनवाई 17 सितंबर को होगी. 

बुलडोजर कार्रवाई पर SC ने उठाए गंभीर सवाल

सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर कार्रवाई पर गंभीर सवाल उठाए हैं. कोर्ट ने कहा कि सिर्फ आरोपी होने के आधार पर किसी के घर को गिराना उचित नहीं है. अदालत ने शासन और प्रशासन की कार्रवाई पर सवाल उठाते हुए कहा कि अगर कोई व्यक्ति दोषी भी है, तो भी उसके घर को गिराया नहीं जा सकता. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इस बात को स्वीकार किया और कहा कि अपराध में दोषी साबित होने पर भी घर नहीं गिराया जा सकता. उन्होंने स्पष्ट किया कि जिनके खिलाफ कार्रवाई हुई है, वे अवैध कब्जे या निर्माण के कारण निशाने पर हैं, न कि अपराध के आरोप की वजह से.

अल्पसंख्यक समुदाय को बनाया जा रहा निशाना: जमीयत उलेमा ए हिंद 

जमीयत उलेमा ए हिन्द ने याचिका दाखिल कर सरकारों के आरोपियों के घरों पर मनमाने ढंग से बुलडोजर चलाने पर रोक लगाने की मांग की है. याचिका में यूपी, मध्यप्रदेश और राजस्थान में हाल में हुई बुलडोजर कार्रवाइयों का उल्लेख करते हुए अल्पसंख्यक समुदाय को निशाना बनाए जाने का आरोप लगाया गया है. याचिका में 'बुलडोजर जस्टिस' की प्रवृत्ति पर रोक लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट से शीघ्र सुनवाई की अपील की गई थी.

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याचिका पर की गई थी जल्द सुनवाई की हुई थी मांग

जमीयत उलेमा ए हिन्द के वकील दुष्यंत दवे ने इस याचिका पर जल्द सुनवाई की मांग की थी. याचिका जहांगीरपुरी मामले में वकील फरूख रशीद द्वारा दाखिल की गई थी. याचिका में कहा गया था कि राज्य सरकारें हाशिए पर मौजूद लोगों, खासकर अल्पसंख्यकों के खिलाफ दमन चक्र चलाकर उनके घरों और संपत्तियों पर बुलडोजर चलाने को बढ़ावा दे रही हैं, जिससे पीड़ितों को कानूनी उपाय करने का मौका नहीं मिलता.

कोर्ट ने मांगे सुझाव

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह किसी भी अवैध संरचना को सुरक्षा नहीं प्रदान करेगा जो सार्वजनिक सड़कों को अवरुद्ध कर रही हो. कोर्ट ने संबंधित पक्षों से सुझाव मांगे हैं ताकि वह पूरे देश में संपत्तियों के ध्वस्तीकरण के संबंध में उचित दिशा-निर्देश जारी कर सके.

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देश में हाल ही में हुए कई बुलडोजर एक्शन

एमेनेस्टी इंटरनेशनल की फरवरी 2024 की रिपोर्ट के अनुसार, अप्रैल 2022 से जून 2023 के बीच दिल्ली, असम, गुजरात, मध्यप्रदेश और यूपी में सांप्रदायिक हिंसा के बाद 128 संपत्तियों को बुलडोजर से ढहा दिया गया. मध्यप्रदेश में एक आरोपी के पिता की संपत्ति पर बुलडोजर चलवा दिया गया, और मुरादाबाद तथा बरेली में भी बुलडोजर से संपत्तियां ढहाई गईं. हाल ही में, राजस्थान के उदयपुर जिले में राशिद खान का घर भी बुलडोजर से गिरा दिया गया, जिसमें उनके 15 वर्षीय बेटे पर स्कूल में अपने सहपाठी को चाकू से गोदने का आरोप था.

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