ED जब पहले ही कर रही शराब घोटाले की जांच तो CBI ने अब केजरीवाल को क्यों किया अरेस्ट? समझिए
25 जून को सीबीआई ने Arvind Kejriwal से कोर्ट में पूछताछ की और उनका पूरा बयान दर्ज किया. CBI ने इसपर एक्शन लेते हुए उन्हीं अपनी कस्टडी में लिया है. अब सीबीआई के एक्शन की तुलना ED से की जा रही है. लेकिन आपको बता दें कि दोनों के केस एक दूसरे से अलग है और अलग-अलग प्रकार से पड़ताल करेंगे.
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Arvind Kejriwal: दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल की मुसीबतें खत्म होने का नाम नहीं ले रही है. शराब नीति मामला उनके गले की फांस बन गया है. बीते दिन यानी बुधवार को सीबीआई ने आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल को राउज एवेन्यू कोर्ट में गिरफ्तार कर लिया. सीबीआई ने केजरीवाल को तीन दिनों की कस्टडी में लिया है. केंद्रीय एजेंसी उनसे शराब घोटाले की जांच करेगा. ईडी पहले से ही मामले की जांच अपने तरीके से कर रहा है.
25 जून को सीबीआई ने केजरीवाल से कोर्ट में पूछताछ की और उनका पूरा बयान दर्ज किया. सीबीआई ने इसपर एक्शन लेते हुए उन्हीं अपनी कस्टडी में लिया है. अब सीबीआई के एक्शन की तुलना ईडी से की जा रही है. लेकिन आपको बता दें कि दोनों के केस एक दूसरे से अलग है और अलग-अलग प्रकार से पड़ताल करेंगे. अब इस बात की चर्चा हो रही है कि दोनों एजेंसियों के मुद्दे अलग-अलग हैं या दोनों मिलकर काम कर रही हैं? आइए जानते हैं दोनों एजेंसियों के क्या आरोप हैं.
केजरीवाल पर ईडी के क्या हैं आरोप?
मनी लॉन्ड्रिंग मामले में ईडी ने केजरीवाल को मार्च में गिरफ्तार किया था. केजरीवाल पर कथित तौर पर पैसों का लेनदेन और उसके इस्तेमाल करने के आरोप लगे थे. पीएमएलए की धारा 3 के तहत मनी लॉन्ड्रिंग अपराध की कैटिगरी में आता है.
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CBI किस केस में जांच कर रही?
शराब नीति मामले में सीबीआई ने 17 अगस्त 2022 में मामला दर्ज किया था, लेकिन इसमें केजरीवाल का नाम नहीं था. इस एफआईआर में आरोपी नम्बर 1 दिल्ली के पूर्व डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया थे. सीबीआई ने Pc act 1988, 120B r/w 477A के तहत ये मामला दर्ज किया था. मार्च में जब केजरीवाल को गिरफ्तार किया गया था तो एडिशनल सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने कहा था कि पीएमएलए के तहत आरोपी होने के लिए किसी को पहले से तय अपराध में आरोपी होने की जरूरत नहीं.
इसको आसान भाषा में समझने की कोशिश करें तो सीबीआई इस मामले में ये देख रहा है कि इसमें करप्शन हुआ. इसके लिए केंद्रीय एजेंसी को कथित रिश्वत का लेनदेन साबित करना होगा. अबतक सीबीआई द्वारा दावा किया गया है कि उत्पाद शुल्क नीति के तहत लाइसेंसधारियों को गलत फायदा दिया गया, जैसे लाइसेंस की फीस में छूट और बगैर अप्रूवल के लाइसेंस को आगे बढ़ाना.
जमानत में हो सकती है मुश्किलें
पीएमएलए के तहत मनी लॉन्ड्रिंग को अपराध माना जाता है. इसमें जमानत देना पूरी तरह से कोर्ट का फैसला होता है. ईडी इस एक्ट के तहत किसी वॉरन्ट के बगैर भी अभियुक्त को गिरफ्तार कर सकता है. इसके अलावा लंबे समय तक हिरासत में रख सकता है.
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सीबीआई की बात करें तो उसे पीसी एक्ट यानी की प्रिवेंशन ऑफ करप्शन मजबूत देता है. आरोपी इसमें जमानत मांग सकता है सरकारी तंत्र एवं पब्लिक ऑफिसों में करप्शन रोकने के लिए. लेकिन वे तब तक रिहा नहीं किया जा सकता जबतक कि सरकारी वकील इस जमानत के खिलाफ कोई तर्क न दे दे.
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