कौन है राम रहीम, इनको बार-बार कैसे मिल जाती है परोल? इसके नियम भी जानिए
गुरमीत राम रहीम का जन्म राजस्थान के श्रीगंगानगर में 15 अगस्त 1967 को हुआ था. वह 1990 में डेरा सच्चा सौदा का प्रमुख बना था. डेसा सच्चा सौदा की स्थापना साल 1948 में शाह मस्ताना ने की थी. देश में डेरा सच्चा सौदा के 50 से अधिक आश्रम और लाखों की संख्या में अनुयायी हैं.
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Gurmeet Ram Rahim on Parole: रेप और हत्या के दोषी राम रहीम को फिर 21 दिन की परोल मिली है. वह इन दिनों रोहतक की सुनारिया जेल में सजा काट रहा है. गुरमीत राम रहीम उत्तर प्रदेश में बागपत के बरनावा आश्रम में 21 दिन गुजारेगा. राम रहीम की मुंह बोली बेटी हनीप्रीत भी उसके साथ रह सकती है. 2017 में सजा सुनाए जाने के बाद से अब तक राम रहीम कई बार परोल पर बाहर आ चुका है.
राम रहीम अब तक 7 बार जेल से बाहर आ चुका है. यह आठवीं बार है जब वह जेल से बाहर होगा. आज तक की एक रिपोर्ट के मुताबिक राम रहीम पहली बार 24 अक्टूबर 2020 को 24 घंटे के लिए जेल से बाहर निकल गुरुग्राम गया था. दूसरी बार 21 मई 2021 को 48 घंटे के लिए अपनी बीमार मां से मिलने गुरुग्राम गया. मानेसर के फार्म हाउस में रुका. तीसरी बार फरवरी 2022 में 21 दिन की परोल. चौथी बार 23 दिन की परोल जून 2022 में मिली. यूपी में बागपत के बदनावा आश्रम में रहा. पांचवीं बार अक्टूबर 2022 को फिर परोल मिल गई. जनवरी 2023 को छठवीं बार फिर 40 दिन की परोल पर वह बाहर आ गया. सातवीं बार वह जुलाई 2023 को आखिरी बार 30 दिन की परोल पर बाहर आया था. अब वह आठवीं बार 21 दिन की परोल पर बाहर आ रहा है.
कौन है गुरमीत राम रहीम जिसका कई क्षेत्रों में फैला है साम्राज्य
गुरमीत राम रहीम का जन्म राजस्थान के श्रीगंगानगर में 15 अगस्त 1967 को हुआ था. वह 1990 में डेरा सच्चा सौदा का प्रमुख बना था. डेसा सच्चा सौदा की स्थापना साल 1948 में शाह मस्ताना ने की थी. देश में डेरा सच्चा सौदा के 50 से अधिक आश्रम और लाखों की संख्या में अनुयायी हैं. आश्रम का मेन सेंटर हरियाणा के सिरसा में स्थित है. इसके अलावा सोनीपत और यूपी के बागपत जिले के बरनावा में भी बाबा के आश्रम हैं. बाबा परोल पर जाने के लिए हमेशा सिरसा जाने की मांग करता है लेकिन सुरक्षा कारणों की वजह से उसे बागपत के बरनावा आश्रम की ही अनुमति मिलती है.
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किन मामलों में सजा काट रहा है राम रहीम
अपनी दो शिष्याओं से रेप के दोषी गुरमीत राम रहीम को पंचकुला में सीबीआई की एक विशेष अदालत ने 28 अगस्त 2017 को 20 साल की सजा सुनाई थी. फिर 17 जनवरी 2019 को पत्रकार रामचंद्र छत्रपति की हत्या के जुर्म में कोर्ट ने उसे उम्र कैद की सजा सुनाई. सजा मिलने का कारवां यहीं नहीं रुका. 8 अक्टूबर 2021 को कोर्ट ने पूर्व डेरा प्रबंधक रंजीत सिंह की हत्या के मामले में राम रहीम और चार अन्य को दोषी ठहराया था. रंजीत सिंह की 2002 में डेरा सच्चा सौदा के परिसर में हत्या कर दी गई थी. यानी दो बलात्कार और दो कत्ल के मामले में दोषी राम रहीम कैसे बार बार बाहर आ जाता है.
परोल पर रिहाई का राजनीति से रिश्ता
कई लोग राम रहीम की बार-बार रिहाई को राजनीति से भी जोड़कर देखते हैं. जब-जब राम रहीम जेल से बाहर आया है तब-तब कहीं न कहीं चुनावों का मौसम होता है. राम रहीम के प्रभाव का फायदा उठाने के लिए उसे परोल और फरलो दी जाती है. बताते हैं चुनावों के साथ राम रहीम का कनेक्शनः
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जब फरवरी 2022 में राम रहीम को जमानत दी गई तब पंजाब में विधानसभा चुनाव होने वाले थे. तब उसे 21 दिन की परोल दी गई थी. जून 2022 में 30 दिन की परोल, हरियाणा में नगर पालिका के चुनाव. अक्टूबर 2022 में 40 दिन की परोल तब हरियाणा में उपचुनाव और हिमाचल में विधानसभा चुनाव होने वाले थे.
पिछली बार परोल मिलने के समय हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने कहा था कि हम राम रहीम को फेवर नहीं कर रहे हैं. एक अपराधी के अधिकार होते हैं उसके तहत वह बाहर आता है.
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रेवड़ियों की तरह फरलो पा रहा बाबा, इसका करता क्या है. हम बताते हैं. वह बाहर आकर अपने सत्संग शुरू कर देता है. म्यूजिक एलबम रिलीज करता है. पिछली बार जेल से निकलकर जब उसने म्यूजिक वीडियो रिलीज किया जिसमें वह खुद परफॉर्म करता नजर आ रहा है तब सोशल मीडिया पर उसकी और सरकार की जमकर ट्रोलिंग हुई. लोगों ने सवाल पूछे कि रेप और हत्या के जुर्म में सजा काट रहा कोई व्यक्ति ऐसा कैसे कर सकता है. पिछली बार जब वह बाहर आया तब हरियाणा मुख्यमंत्री के ओएसडी (ऑफिसर ऑन स्पेशल ड्यूटी) बाबा की चरण वंदना करते दिखे थे. बीजेपी के राज्यसभा सांसद और विधायक उसका आशीर्वाद लेने पहुंचे.
कैसे मिलती है परोल/फरलो
परोल आपराधिक न्याय प्रणाली का एक अहम हिस्सा है. परोल का सीधा मतलब कुछ समय के लिए जेल से छुट्टी होता है. परोल की अवधि को कैदी की सजा की छूट में देखा जाता है. परोल किसी भी अपराधी को उसके अच्छे व्यवहार के बदले में दी जाती है. इसके लिए कम से कम कैदी को एक साल जेल के भीतर गुजारना अनिवार्य है. वहीं पिछली परोल के बाद से कम से कम 6 महीने बीत चुके हों. उसने जेल के किसी भी नियम को नहीं तोड़ा हो. उससे बाहर किसी को किसी भी किस्म का कोई खतरा न हो.
कैदी को जेल से एक साल में 70 दिन के लिए पैरोल पर बाहर जाने का प्रावधान है. राम रहीम पहले ही जनवरी में 40 और जुलाई में 30 दिन की फरलो पर बाहर आ चुका है. तो यह उसका राजनैतिक प्रभाव ही माना जाएगा कि वह अपनी मियाद पूरी करने के बाद भी फरलो पर बाहर आ रहा है. जेल राज्य का विषय है इसलिए हर राज्य में परोल और फरलो को लेकर अलग-अलग नियम हो सकते हैं. वहीं उत्तर प्रदेश में फरलो देने का प्रावधान नहीं है.
फरलो और परोल मे अंतर
आप परोल और फरलो शब्द बार-बार सुन रहें होंगे. इसमें क्या अंतर होता है आइए समझाते हैं. परोल की पहली शर्त कैदी का व्यवहार है. कैदी का व्यवहार अच्छा है तो उसे परोल दी जा सकती है. लेकिन, परोल कैदी का अधिकार नहीं है. कैदी को परोल मिलने से मना भी किया जा सकता है. परोल किसी विशेष कारण के लिए दी जाती है जैसे परिवार में किसी अपने की मृत्यु या किसी अपने की शादी.
वहीं फरलो भी कुछ मामूली अंतरों के साथ परोल के समान ही होती है. इसे लंबी अवधि के सजा पाए कैदी को दिया जाता है. जैसे कोई व्यक्ति उम्र कैद या 10-20 साल की सजा काट रहा हो.
परोल के उलट फरलो को कैदी के अधिकार के रूप में देखा जाता है. इसे समय समय पर कैदी को बिना किसी कारण के दिया जाता है जिससे कैदी अपने परिवार और समाज के साथ अपने स्वस्थ सामाजिक संबंधो को बनाए रखे. साथ ही कैदी की मनोदशा लंबे समय से जेल में सजा काटने के कारण खराब न हो इसलिए भी फरलो दी जाती है.
परोल और फरलो दोनों को ही कैदी के सुधार के रूप में देखा जाता है. यह प्रावधान जेल में मानवीय मूल्यों को बनाए रखने के लिए पेश किए गए थे.
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