हद है! अस्पताल में खड़ी रही एंबुलेंस, ठेले पर शव ढोने को मजबूर हुए परिजन
कटिहार सदर अस्पताल से एक शर्मनाक तस्वीर सामने आई है, जहां मरीज शहदीप रॉय की मौत के बाद उनके परिजनों को शव ले जाने के लिए एंबुलेंस नहीं मिली.
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Katihar: बिहार सरकार भले ही विश्व स्तरीय स्वास्थ्य सेवाओं का दावा करे, लेकिन कटिहार सदर अस्पताल की हालत सरकारी दावों की पोल खोलती है. जिले का यह बड़ा अस्पताल आधुनिक संसाधनों और करोड़ों की लागत से बनाया गया है, फिर भी मरीजों और उनके परिजनों को बुनियादी सुविधाएं तक नहीं मिल पा रही हैं.
एंबुलेंस के होते हुए भी शव ढोने पर मजबूर
कटिहार सदर अस्पताल से एक शर्मनाक तस्वीर सामने आई है, जहां मरीज शहदीप रॉय की मौत के बाद उनके परिजनों को शव ले जाने के लिए एंबुलेंस नहीं मिली. अस्पताल परिसर में 4 एंबुलेंस खड़ी थीं, लेकिन उन्हें "खराब" बताकर परिजनों को मदद से इनकार कर दिया गया. मजबूर होकर शहदीप रॉय के परिजन शव को ठेले पर रखकर घर ले गए.
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सरकारी दावों पर करारा तमाचा
मृतक की पत्नी और पड़ोसियों ने अस्पताल प्रशासन पर गुस्सा जाहिर किया. उनका कहना था कि यह घटना सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं की सच्चाई उजागर करती है. एंबुलेंस जैसी जरूरी सुविधा न मिलने से लोगों को अत्यधिक परेशानी झेलनी पड़ी. परिजनों ने प्रशासन की लापरवाही पर सवाल उठाए, लेकिन अब तक कोई समाधान नहीं हुआ.
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हर सरकार में एक जैसी बदहाली
यह पहली बार नहीं है जब बिहार के सरकारी अस्पतालों से इस तरह की बदहाल तस्वीर सामने आई हो. हर सरकार के बड़े-बड़े वादे और योजनाओं के बावजूद, स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार नहीं हुआ है. सदर अस्पताल जैसे प्रमुख केंद्रों पर ऐसी व्यवस्थाएं सरकार के कामकाज पर सवाल खड़े करती हैं.
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कब बदलेगी तस्वीर?
सरकार और प्रशासन को इस मामले पर गंभीरता से विचार करना चाहिए. करोड़ों खर्च होने के बाद भी जनता को बुनियादी सुविधाएं न मिलना चिंताजनक है. सवाल उठता है कि आखिर कब तक लोग मदद और उम्मीद के लिए भटकते रहेंगे? इस लचर व्यवस्था की जिम्मेदारी आखिर कौन लेगा?
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सरकार को इन घटनाओं से सीख लेकर तत्काल सुधार की दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे, ताकि भविष्य में इस तरह की शर्मनाक स्थिति न दोहराई जाए.
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