मोहल्ला क्लीनिक बेकार..अस्पताल बीमार, दिल्ली की स्वास्थ्य सेवाओं पर CAG रिपोर्ट में बड़े खुलासे
CAG Report Delhi: दिल्ली की स्वास्थ्य व्यवस्था की बदहाली को लेकर नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की ताजा रिपोर्ट में चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं. छह साल की अवधि पर आधारित इस रिपोर्ट में सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं में कुप्रबंधन, वित्तीय अनियमितताओं और जवाबदेही की कमी जैसे गंभीर मुद्दों को उजागर किया है.
ADVERTISEMENT

CAG Report Delhi: दिल्ली की स्वास्थ्य व्यवस्था की बदहाली को लेकर नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की ताजा रिपोर्ट में चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं. छह साल की इस रिपोर्ट में सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं में कुप्रबंधन, वित्तीय अनियमितताओं और जवाबदेही की कमी जैसे मुद्दों को उजागर किया है. रिपोर्ट से पता चलता है कि राजधानी में स्वास्थ्य सुविधाओं के नाम पर बड़े-बड़े दावों के बावजूद जमीनी हकीकत बेहद चिंताजनक है.
कोविड फंड का सही इस्तेमाल नहीं
रिपोर्ट के अनुसार, कोविड-19 महामारी से निपटने के लिए केंद्र सरकार ने दिल्ली को 787.91 करोड़ रुपये दिए थे, लेकिन इसमें से केवल 582.84 करोड़ रुपये ही खर्च किए गए. विशेषज्ञों का मानना है कि इस फंड की बर्बादी ने दिल्लीवासियों को संकट के समय बेहतर इलाज से वंचित रखा.
बुनियादी सुविधाओं का अभाव
CAG की जांच में सामने आया है कि दिल्ली के सरकारी अस्पतालों में बुनियादी सुविधाओं का भारी अभाव है. 27 में से 14 अस्पतालों में आईसीयू नहीं है, 12 में एंबुलेंस की व्यवस्था नहीं है, और 16 में ब्लड बैंक तक नहीं है. इसके अलावा, मोहल्ला क्लीनिकों की हालत भी दयनीय स्थिति में है. 21 क्लीनिकों में शौचालय नहीं हैं, 15 में बिजली बैकअप की कमी है, और 12 में दिव्यांगों के लिए कोई सुविधा नहीं है. ये आंकड़े दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य सुधारों के दावों पर सवाल उठाते हैं.
ADVERTISEMENT
यह भी पढ़ें...
बेड और स्टाफ की कमी से जूझते अस्पताल
दिल्ली सरकार ने 2016-17 से 2020-21 के बीच 32,000 नए बेड जोड़ने का लक्ष्य रखा था, लेकिन इस अवधि में केवल 1,357 बेड ही बढ़ाए गए, जो लक्ष्य का महज 4.24% है. कई अस्पतालों में बेड ऑक्यूपेंसी 101% से 189% तक रही, जिसके चलते मरीजों को एक ही बेड पर दो-दो लोगों के साथ इलाज कराना पड़ा या फर्श पर लेटना पड़ा. इसके साथ ही, डॉक्टरों और नर्सिंग स्टाफ की भारी कमी भी उजागर हुई है. सरकारी अस्पतालों में 8,194 पद खाली हैं, जिसमें नर्सिंग स्टाफ की 21% और पैरामेडिकल स्टाफ की 38% कमी शामिल है.
परियोजनाओं में देरी
रिपोर्ट में तीन नए अस्पतालों के निर्माण में देरी और लागत में भारी वृद्धि का भी जिक्र है. इंदिरा गांधी अस्पताल में 5 साल की देरी हुई और लागत 314.9 करोड़ रुपये बढ़ गई. बुराड़ी अस्पताल 6 साल की देरी के साथ 41.26 करोड़ रुपये अतिरिक्त खर्च के साथ पूरा हुआ, जबकि एमए डेंटल अस्पताल (फेज-2) में 3 साल की देरी से 26.36 करोड़ रुपये की लागत बढ़ी. ये देरी और खर्च स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत करने की दिशा में लापरवाही को दर्शाते हैं.
ADVERTISEMENT
सर्जरी और उपकरणों की बदहाली
दिल्ली के प्रमुख अस्पतालों में सर्जरी के लिए मरीजों को लंबा इंतजार करना पड़ रहा है. लोक नायक अस्पताल में बड़ी सर्जरी के लिए 2-3 महीने और बर्न व प्लास्टिक सर्जरी के लिए 6-8 महीने का समय लग रहा है. चाचा नेहरू बाल चिकित्सालय में बच्चों की सर्जरी के लिए 12 महीने तक इंतजार करना पड़ रहा है. इसके अलावा, कई अस्पतालों में एक्स-रे, सीटी स्कैन और अल्ट्रासाउंड मशीनें खराब पड़ी हैं, जिससे मरीजों को और परेशानी हो रही है.
ADVERTISEMENT
भ्रष्टाचार और फंड की बर्बादी के आरोप
रिपोर्ट में फंड के दुरुपयोग पर भी सवाल उठाए गए हैं. स्वास्थ्य कर्मियों की भर्ती और वेतन के लिए मिले 52 करोड़ रुपये में से 30.52 करोड़ रुपये का उपयोग नहीं हुआ. इसी तरह, दवाओं और पीपीई किट जैसी जरूरी चीजों के लिए दिए गए 119.85 करोड़ रुपये में से 83.14 करोड़ रुपये खर्च नहीं किए गए.
ADVERTISEMENT