गठबंधन साथी पल्लवी पटेल ने ही फंसा दिया अखिलेश यादव के राज्यसभा कैंडिडेट का चुनाव!

रूपक प्रियदर्शी

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Rajya Sabha Election: पिछले दिनों देश में राज्यसभा चुनाव की घोषणा हुई थी. उम्मीदवारों के नामांकन तो हो गए है लेकिन वोटिंग अभी भी बाकी है और सारा खेल इसी दौरान चल रहा है. सीटों की नजर से देश के सबसे बड़े प्रदेश, उत्तर प्रदेश से भी राज्यसभा की 10 सीटों पर चुनाव होना है. यूपी में ये चुनाव सीधा-सादा ही लग रहा था, बीजेपी के सात और सपा के तीन उम्मीदवारों के जीतने की गारंटी थी, लेकिन आखिरी वक्त में बीजेपी ने यूपी के बड़े बिल्डर संजय सेठ को उतारकर पूरा चुनाव पलट दिया. 10 सीटों के लिए यूपी में अब 11 उम्मीदवार हो गए हैं. यानी सपा या बीजेपी में से किसी एक के एक उम्मीदवार को अब हारना होगा. बीजेपी की तो सात सीटें कन्फर्म लग रही है लेकिन पार्टी ने आठवां उम्मीदवार उतारकर सपा के तीसरे उम्मीदवार का जीतना मुश्किल बना दिया है.

नामांकन भरने के आखिरी दिन अचानक बीजेपी नेता संजय सेठ को लेकर नामांकन पहुंचे. वो भी इस यकीन के साथ कि, संजय सेठ के साथ बीजेपी के आठों उम्मीदवार राज्यसभा पहुंचेंगे. इस बार बीजेपी ने सपा को हराने के लिए मुलायम सिंह यादव, अखिलेश यादव के करीबी रहे सपा के पूर्व कोषाध्यक्ष को चुना है.

कौन हैं संजय सेठ?

संजय सेठ यूपी की ‘शालीमार रियल एस्टेट कंपनी’ के पार्टनर हैं. पांच साल पहले संजय सेठ का सपा में बड़ा रसूख था. इसी रसूख के कारण 2016 में सपा ने राज्यसभा में सांसद बनाकर भेजा था लेकिन तीन साल में संजय सेठ का मन समाजवादी पार्टी से उब गया. चाहते तो 2022 तक राज्यसभा सांसद बने रहते लेकिन उन्होंने 2019 में ही राज्यसभा से इस्तीफा दे दिया और बीजेपी में आ गए. बीजेपी में आए तो बीजेपी ने राज्यसभा भेज दिया. अब फिर से राज्यसभा जाने की लड़ाई में कूदे हैं, लेकिन बीजेपी की फील्डिंग के बाद भी उनका रास्ता आसान नहीं होने वाला है. संजय सेठ के आने से यूपी में राज्यसभा के लिए 27 फरवरी को वोटिंग की नौबत आ गई है और संजय सेठ तभी जीत पाएंगे जब ‘क्रॉस वोटिंग’ होगी.

समाजवादी पार्टी ने जया बच्चन, आलोक रंजन और रामजी सुमन को चुनाव में उतारा है. जो गणित है उसमें पहले से समाजवादी पार्टी के तीनों उम्मीदवारों की जीत मुश्किल थी. संजय सेठ के आने से मामला टेढ़ा हो गया है.

जीत और हार की गणित को समझने के लिए हमें यूपी राज्यसभा चुनाव का हिसाब-किताब समझना होगा

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उत्तर प्रदेश में विधानसभा की 403 सीटें है वहीं वर्तमान में चार सीटें खाली होने से वोट देने वाले विधायकों की संख्या है 399. इस हिसाब से राज्यसभा की एक सीट जीतने के लिए 37 विधायकों के वोट की जरूरत है. यानी सपा के तीनों उम्मीदवारों को जीतने के लिए 111 विधायक चाहिए. कांग्रेस के दो विधायकों के समर्थन के बाद भी सपा का 111 विधायकों का नंबर पूरा नहीं हो रहा है.

सपा का संकट गठबंधन और अपनी पार्टी दोनों से है. अपना दल कमेरावादी की पल्लवी पटेल के गच्चा देने से अखिलेश यादव का तीसरा उम्मीदवार फंस गया है. पल्लवी पटेल ये कह चुकी हैं कि, वो जया बच्चन और आलोक रंजन के लिए अपना वोट हर्गिज नहीं देंगी. वहीं इरफान सोलंकी समेत पार्टी के दो विधायक जेल में हैं. इस हिसाब से कांग्रेस के दो विधायकों का समर्थन जोड़कर भी सपा का नंबर 107 तक ही पहुंच रहा है.

राज्यसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी का गणित

ये तो रही बात सपा की, दूसरी तरफ बीजेपी के सभी आठों उम्मीदवारों को जिताने के लिए 296 वोटों की जरूरत है. अपने 252 विधायकों के साथ सहयोगी पार्टियों के 36 विधायकों को मिलाकर भी बीजेपी का नंबर 288 तक ही पहुंच रहा है. संजय सेठ के लिए बीजेपी के सामने 8 वोटों की क्राइसिस है.

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राज्यसभा चुनाव में बीजेपी का गणित

राज्यसभा चुनाव में बीजेपी का गणित

बीजेपी के लिए आठों उम्मीदवारों को जिताने के लिए सबसे मुश्किल और सबसे आसान रास्ता यही है कि, पार्टी कुछ विधायकों से क्रास वोटिंग करा ले. मतलब सपा, कांग्रेस, बीएसपी के विधायक अपनी पार्टी से बगावत करके बीजेपी को वोट दे दें. यही विकल्प सपा के सामने भी है. बीजेपी में समाजवादी पार्टी सेंध लगा पाएंगी, इतना आसान नहीं है लेकिन क्या अखिलेश यादव ओम प्रकाश राजभर, रघुराज प्रताप सिंह की छोटी पार्टियों को टारगेट कर पाएंगे? इसी पर पूरा दारोमदार टिका हुआ है. अब किसका कैंप टूटेगा और किसका बचेगा, ये तो 27 फरवरी को वोटिंग के बाद ही पता चल पाएगा.

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