ज्ञानवापी में ASI को मिले मंदिर के सबूत, 1991 के उपासना स्थल कानून वाली यथास्थिति का क्या होगा?
अयोध्या में जब बाबरी मस्जिद गिराई गई, तो एक नारा उछला. ‘अयोध्या तो बस झांकी है, काशी-मथुरा बाकी है’. इस नारे का असर बीते 4-5 सालों में एक बार फिर काशी और मथुरा में दिख रहा है,
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Gyanvapi Case: अयोध्या में जब बाबरी मस्जिद गिराई गई, तो एक नारा उछला. ‘अयोध्या तो बस झांकी है, काशी-मथुरा बाकी है’. इस नारे का असर बीते 4-5 सालों में एक बार फिर काशी और मथुरा में दिख रहा है, जब दोनों ही जगहों पर विवादित स्थल पर मुस्लिम-हिंदू पक्ष की दावेदारी के मामले कोर्ट में हैं. इस बीच वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद परिसर की आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (ASI) की सर्वे रिपोर्ट सामने आ गई है. इसमें बताया गया है कि ज्ञानवापी मस्जिद से पहले यहां एक बड़े हिंदू मंदिर होने के सबूत मिले हैं. ये भी कहा गया है कि हिंदू मंदिर के खंभों इत्यादि का इस्तेमाल यहां आज मौजूद संरचना को खड़ा करने के लिए किया गया है. अब हिंदू पक्ष का कहना है कि इस स्थल पर कोई समझौता नहीं होगा और मुस्लिम पक्ष को चाहिए कि इसे मंदिर मानकर जगह लौटा दें. मुस्लिम पक्ष अभी सर्वे रिपोर्ट की स्टडी कर रहा है. वैसे असदुद्दीन ओवैसी जैसे नेताओं का मानना है कि ये ASI की सर्वे रिपोर्ट इतिहासकारों या अकादमिक जांच के सामने टिक नहीं पाएगी. ओवैसी ने ASI को ‘हिंदुत्व के हाथ की कठपुतली’ बताया है.
इसके साथ ही चर्चा शुरू हो गई है 1991 के उपासना स्थल कानून की. कानून कहता है कि अयोध्या के राम मंदिर और बाबरी मस्जिद विवाद को छोड़कर देश के दूसरे धार्मिक स्थल या पूजा स्थल 15 अगस्त 1947 को यानी भारत को आजादी मिलने पर जिस रूप में थे, उसी रूप में रहेंगे. यानी यथास्थिति बहाल रहेगी. यह कानून उस वक्त आया था, जब देश में अयोध्या के राम मंदिर के लिए आंदोलन चरम पर था. ऐसा अंदेशा था कि दूसरे धार्मिक स्थलों को लेकर विवाद खड़ा होगा और सामाजिक समरसता खतरे में पड़ेगी, इसलिए केंद्र की तत्कालीन नरसिम्हा राव सरकार यह खास कानून लेकर आई थी. वैसे यहां यह भी जानना जरूरी है कि इस कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती मिली हुई है.
अब सवाल यह उठ रहा है कि जब ASI के दावों के मुताबिक ज्ञानवापी मस्जिद में मंदिर के साक्ष्य मिल गए हैं, तो क्या अब यहां 1991 के कानून के मुताबिक यथास्थिति बहाल रहेगी या क्या होगा? वैसे तो इस बात का निपटारा अब कोर्ट में होना है, लेकिन अयोध्या, काशी और मथुरा में मंदिरों के लिए आंदोलन करने वाले विश्व हिंदू परिषद (विहिप) इसे कुछ अलग नजरिए से देखता है और उसे नहीं लगता कि यह कानून काशी और मथुरा में मंदिर का क्लेम साबित करने में कोई अड़चन बनेगा.
ज्ञानवापी के मंदिर होने के समर्थक विहिप का तर्क क्या है?
पिछले दिनों न्यूज Tak के मंच कार्यक्रम में विश्व हिंदू परिषद के कार्याध्यक्ष आलोक कुमार आए थे. इस कार्यक्रम में इंडिया टुडे ग्रुप के Tak क्लस्टर के मैनेजिंग एडिटर मिलिंद खांडेकर ने उनसे प्लेसेज ऑफ वर्शिप (स्पेशल प्रोविजंस) एक्ट 1991 से भी जुड़े सवाल पूछे.
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यहां नीचे शेयर किए गए इस इंटरव्यू में 29 मिनट 24 सेकंड के बाद काशी और मथुरा के मुद्दे पर विहिप कार्याध्यक्ष आलोक कुमार की टिप्पणी देखी जा सकती है.
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बात की शुरुआत अयोध्या के राम मंदिर से हुई और पेशे से खुद को वकील भी बताने वाले अलोक कुमार से पूछा गया कि, ‘पिछले 4-5 वर्षों से काशी, मथुरा को लेकर वापस आवाज उठने लग गई. कोर्ट केस चलने लगे. इसपर विहिप का क्या स्टैंड है, क्योंकि RSS चीफ मोहन भागवत ने कहा था कि ये विषय हमारे लिए नहीं, हम अभी अयोध्या तक सीमित हैं?
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आलोक कुमार ने कहा, ‘हमारा स्टैंड स्पष्ट है, और भागवत जी ने कहा था कि RSS का प्रत्यक्ष सहभाग राम जन्मभूमि के लिए है हमारा कमिटमेंट तीनों (अयोध्या, काशी, मथुरा) का है. मैंने उन मुकदमों की फाइल पढ़ी हैं. मेरी समझ ये कहती है कि हिंदुओं को अदालत से सफलता मिलेगी.’
फिर आलोक कुमार से 1991 के कानून पर सवाल हुए, जो यथास्थिति बनाए रखने को कहता है. इसपर उन्होंने कहा, ‘1991 का जो कानून कहता है कि 1947 की यथास्थिति बना रखी जाए. कानून बाधा नहीं है क्योंकि यथास्थिति स्थान की कही गई है ये नहीं कहा गया है कि जो जगह जिस काम आ रही थी, उस काम आती रहेगी. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद ही स्थान की स्थिति जानने के लिए सर्वे हुआ है. काशी में एक शिवलिंग मिल गया है. जब शिवलिंग मिल गया और नंदी उसको देख रहे हैं, तो उस स्थान की प्रकृति क्या है? क्या मस्जिद में शिवलिंग हो सकता है? ये मंदिर की जगह है.’
आलोक कुमार ने कहा, ‘हमारा केस मजबूत है. प्रमाण, तर्क और कानून तीनों हमारे पक्ष में हैं. हमलावरों की नीति ये थी कि पराजित जाति अपमानित और छोटा महसूस करे. इसलिए मलबे से स्ट्रक्टचर बनाए जाते थे. इन सब बातों को मिलाकर निर्धारण होगा कि 1947 में स्थिति क्या थी. 1947 में भी वो स्थान मंदिर थे, आज भी मंदिर हैं, भले ही उसके शिखर बदल दिए गए हों, दीवारों में परिवर्तन हो और भले ही नमाज पढ़ी जाती हो.’
ज्ञानवापी के सर्वे में ASI को क्या-क्या मिला?
कोर्ट के आदेश पर पिछले दिनों ज्ञानवापी परिसर का ASI ने सर्वे किया था. ASI ने अपने सर्वे के बाद 839 पेज की रिपोर्ट कोर्ट को सौंपी. 24 जनवरी 2024 को जिला अदालत ने इस मामले पर फैसला सुनाते हुए वादी पक्ष को सर्वें रिपोर्ट दिए जाने का आदेश दिया. 25 जनवरी को ASI सर्वे रिपोर्ट की रिपोर्ट हिंदू और मुस्लिम पक्ष को सौंप दी गई. इस रिपोर्ट के मुताबिक, ज्ञानवापी में मंदिर के स्ट्रक्चर होने के साक्ष्य मिले हैं. हालांकि मुस्लिम पक्ष की तरफ से हिंदू पक्ष के दावों एक बार फिर खारिज किया जा रहा है. मुस्लिम पक्ष की तरफ से रिपोर्ट को रिसीव करने वाले अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी के वकील अखलाक अहमद ने कहा है कि मंदिर को तोड़कर कभी मस्जिद बनाई ही नही गई है और वे अध्ययन के बाद ASI सर्वे रिपोर्ट के खिलाफ कोर्ट में आपत्ति भी दाखिल कर सकते हैं.
आइए ASI की इस सर्वे रिपोर्ट की मुख्य बातें देखते हैं.
– ASI के मुताबिक, वर्तमान का जो ढांचा है उसकी पश्चिमी दीवार पहले के बड़े हिंदू मंदिर का हिस्सा है.
– मंदिर के खंभों को थोड़े बदलाव के साथ मस्जिद के लिए इस्तेमाल किया गया.
– खंभों की नक्काशियों को मिटाने की कोशिश हुई. 32 ऐसे शिलालेख मिले हैं जो पुराने हिंदू मंदिर के हैं.
– देवनागरी, तेलुगू, कन्नड़ के शिलालेख मिले हैं. एक पत्थर मिला शिलालेख मिला जिसका टूटा हुआ हिस्सा पहले से ASI के पास था.
– तहखाने में हिंदू देवी देवताओं की मूर्तियां मिली हैं. इन्हें मिट्टी से दबा दिया गया था.
– रिपोर्ट में लिखा है 17वीं शताब्दी में हिंदू मंदिर को तोड़ा गया. इसके मलबे से ही वर्तमान ढांचे को बनाया गया.
1991 में कोर्ट पहुंचा था ज्ञानवापी मस्जिद-श्रृंगार गौरी मंदिर विवाद
काशी विश्वनाथ-ज्ञानवापी केस में पहली बार साल 1991 में बनारस के एक कोर्ट में मामला दर्ज किया गया था. इस हिन्दू पक्ष की याचिका में ज्ञानवापी परिसर में स्थित मंदिर में पूजा की अनुमति मांगी गई. याचिका दाखिल होने के कुछ समय बाद पीवी नरसिम्हा राव की कांग्रेस सरकार ने एक ‘पूजा स्थल कानून’ 1991 बना दिया. ज्ञानवापी मामले में इसी कानून का हवाला देकर मस्जिद कमेटी ने याचिका को हाईकोर्ट में चुनौती दी. साल 1993 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ज्ञानवापी परिसर पर स्टे लगाकर यथास्थिति कायम रखने का आदेश दिया था. तब से लेकर साल 2019 तक स्टे बना रहा. इस केस में नया मोड़ तब आया जब साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने एक आदेश दिया कि किसी भी मामले में स्टे ऑर्डर की वैधता केवल छह महीने के लिए ही होगी. फिर SC के इसी आदेश के बाद 2019 में वाराणसी कोर्ट में एकबार फिर से इस मामले में सुनवाई शुरू हुई.
साल 2021 में वाराणसी की एक फास्ट ट्रैक कोर्ट से ज्ञानवापी मस्जिद के पुरातात्विक सर्वेक्षण की मंजूरी मिली. 16 मई को सर्वे का काम पूरा हुआ. हिंदू पक्ष ने ये दावा किया कि, कुएं से शिवलिंग मिला है. मुस्लिम पक्ष ने इसे वजुखाने में लगा फव्वारा बताया. इसके बाद हिंदू पक्ष ने परिसर के वैज्ञानिक सर्वे की मांग की जिसका मुस्लिम पक्ष ने विरोध किया. 21 जुलाई 2023 को बनारस की जिला अदालत ने हिंदू पक्ष की मांग को मंजूरी देते हुए ज्ञानवापी परिसर के वैज्ञानिक सर्वे का आदेश दे दिया. फिर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण(ASI) ने परिसर का साइंटिफिक सर्वेक्षण किया. 24 जनवरी 2024 को जिला अदालत ने फैसला सुनाते हुए वादी पक्ष को सर्वें रिपोर्ट दिए जाने का आदेश दिया. 25 जनवरी 2024 को ASI साइंटिफिक सर्वे रिपोर्ट सार्वजनिक कर दी गई. अब ASI का दावा है कि ज्ञानवापी में मंदिर का स्ट्रक्चर मिला है.
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