NOTA को इग्नोर कर सूरत में निर्विरोध जीते बीजेपी के मुकेश दलाल, अब CJI ने मांगा चुनाव आयोग से जवाब

रूपक प्रियदर्शी

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Surat Lok Sabha Seat: सूरत में बीजेपी उम्मीदवार मुकेश दलाल बिना चुनाव निर्विरोध जीत गए. जीत का सर्टिफिकेट भी मिल गया. कांग्रेस के जिस उम्मीदवार नीलेश कुंभानी के नामांकन रद्द से मुकेश दलाल की जीत हुई उनके बीजेपी में शामिल होने की भी चर्चा तेज है. बीजेपी को पहली जीत की खूब बधाइयां आ रही है. हालांकि इतना सब होने के बाद हो सकता है कि सूरत में मुकेश दलाल की जीत फंस जाए और बीजेपी के जश्न पर पानी फिर जाए. कहीं ऐसा न हो जाए कि सूरत में नए सिरे से चुनाव की नौबत आ जाए. 

आपको बता दें कि, सूरत में बीजेपी उम्मीदवार मुकेश दलाल की जीत को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है. चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने याचिका पर पहली सुनवाई भी की. सुनवाई में चुनाव आयोग को नोटिस भी जारी हो गया है. हालांकि सूरत चुनाव को लेकर कोई अंतिम जजमेंट नहीं आया है. 

क्या है पूरा मामला ये जानिए 

गुजरात की 26 लोकसभा सीटों पर 7 मई को चुनाव होना था. बीजेपी के ऑपरेशन निर्विरोध के सफल होने की वजह से सूरत में चुनाव से पहले ही उसे जीत मिल गई और अब मतदान भी नहीं कराया जाएगा. यानी अब सूरत के लोग वोट नहीं दे पाएंगे. सूरत में 22 अप्रैल को बीजेपी उम्मीदवार मुकेश दलाल निर्विरोध जीत गए. पहले कांग्रेस उम्मीदवार नीलेश कुंभानी का नामांकन रद्द हुआ. फिर कांग्रेस के डमी उम्मीदवार का भी नामांकन रद्द हुआ. 

हुआ ये कि, जो तीन लोग नीलेश कुंभानी को उम्मीदवार बनाने के लिए प्रस्तावक बने थे वो मुकर गए. कहा कि नामांकन पत्र पर हमारे साइन ही नहीं हैं. नामांकन रद्द होते ही सूरत में बीएसपी उम्मीदवार और 7 निर्दलीय उम्मीदवारों ने भी नाम वापस लेकर मुकेश दलाल के निर्विरोध सांसद बनने का रास्ता साफ कर दिया. 22 अप्रैल को चुनाव आयोग ने जीत का सर्टिफिकेट भी सौंप दिया. 

कांग्रेस पहुंच गई सुप्रीम कोर्ट

अब यहां से कानूनी खेल शुरू हुआ जो सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया. मोटिवेशनल स्पीकर और लेखक शिव खेड़ा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई. सुप्रीम कोर्ट में जिक्र हुआ 1999 की विधि आयोग की रिपोर्ट का. बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक विधि आयोग ने चुनाव की एक वैकल्पिक पद्धति की सिफारिश की थी कि उम्मीदवार को कुल वोट में से 50% या अधिक वोट मिले बिना विजेता घोषित नहीं किया जाना चाहिए. विधि आयोग ने उन वोटरों के लिए नोटा विकल्प का प्रस्ताव रखा था जो किसी भी उम्मीदवार को चुनने के इच्छुक नहीं थे.शिव खेड़ा की याचिका में भी यही कहा गया कि कांग्रेस उम्मीदवार का नामांकन रद्द होने और बाकी उम्मीदवारों के नामांकन वापस होने के बाद भी वोटरों के पास नोटा को वोट देने का विकल्प खुला हुआ था. चुनाव आयोग के मुकेश दलाल को विजेता घोषित करने से वोटरों के नोटा को वोट देने का अधिकार छिन गया. वोटरों के अधिकारों की रक्षा के लिए सूरत में नए सिरे से चुनाव कराना चाहिए. 

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यहीं से सूरत चुनाव की कहानी पलटने की शुरूआत हुई है. फंस सकती है बीजेपी और उसके पहले विजेता उम्मीदवार मुकेश दलाल की जीत. शिव खेड़ा की याचिका में सूरत का चुनाव रद्द करके नए सिरे से चुनाव की मांग की गई है. चीफ जस्टिस ने फिलहाल चुनाव आयोग को नोटिस जारी करके जवाब मांगा है. चीफ जस्टिस ने कहा कि ये चुनावी प्रक्रिया के बारे में भी है। देखते हैं चुनाव आयोग इस पर क्या कहता है.

 

 

क्या होता है NOTA?

NOTA यानी नन ऑफ द अबव इससे तात्पर्य अगर चुनाव लड़ रहे सभी प्रत्याशी मतदाताओं के लिहाज से उपयुक्त नहीं हैं या वो उन्हें योग्य नहीं मानते है तो वह नोटा को अपना वोट दे सकते है. नोटा की शुरूआत करने का उद्देश्य नारिकों को अपना असंतोष व्यक्त करने का मौका प्रदान करना था. नोटा का सिस्टम 2013 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश से लागू हुआ. नोटा का सबसे पहले इस्तेमाल 2013 में पांच राज्यों की विधानसभा चुनाव में किया गया था. इसके बाद से सभी विधानसभा और लोकसभा चुनाव में मतदाताओं को यह विकल्प मिल रहा है. हालांकि नोटा का मतलब राइट टू रिजेक्ट नहीं है. नोटा को सबसे ज्यादा वोट मिलने से कोई नतीजा नहीं निकलता. नोटा में सबसे ज्यादा वोट पड़ने के बाद दूसरे सबसे ज्यादा उम्मीदवार को विजेता घोषित किया जाता है. 

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