सबसे बड़े गढ़ यूपी में ही BJP के भीतर घमासान! हार की वजहों पर मंथन या निशाने पर योगी सरकार?

अभिषेक

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Report on UP BJP's defeat: लोकसभा चुनाव 2024 में 80 सीटों वाले उत्तर प्रदेश में बीजेपी का प्रदर्शन पिछले चुनावों की अपेक्षा बहुत खराब रहा. पार्टी सिर्फ 33 सीटों पर सिमट गई वहीं विपक्षी INDIA ब्लॉक ने 43 सीटें जीतीं. 2019 के चुनाव में बीजेपी को 62 सीटें मिली थी. बीजेपी का प्रदर्शन तब रहा जब सूबे में राम मंदिर बन गया है, दो बार से CM योगी के नेतृत्व में सरकार है. प्रदेश में मिली इस करारी शिकस्त के बाद पार्टी में आंतरिक कलह की खबरें आ रही है. हार की किसी ने जिम्मेदारी नहीं ली और इसपर तमाम तरह की बातें चल रही है. इसके साथ ही CM योगी की कुर्सी पर खतरा भी बताया जा रह है. लखनऊ से लेकर दिल्ली तक UP बीजेपी और सरकार में चल रहे खींचतान पर मंथन हो रहा है. इसी कड़ी में बीते दिन उत्तर प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष भूपेन्द्र चौधरी ने लोकसभा चुनाव में मिली हार पर एक विस्तृत रिपोर्ट पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा को दी है. 

यह रिपोर्ट उत्तर प्रदेश की 80 सीटों के 40 हजार बीजेपी कार्यकर्ताओं के फीडबैक के आधार पर तैयार की गई है जो 15 पन्नों की है. इस रिपोर्ट में सरकार के प्रति पार्टी कार्यकर्ताओं का असंतोष, अग्निपथ योजना के प्रति गुस्सा, राजपूत समुदाय की नाराजगी आदि बातें शामिल की गई है. रिपोर्ट को लेकर चौधरी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के साथ लंबी बैठक भी की. रिपोर्ट के आधार पर आइए आपको बताते हैं UP में बीजेपी की हार की क्या रही वजहें. 

ये है रिपोर्ट की खास बातें 

1- रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्य के सभी छह क्षेत्रों- पश्चिमी यूपी, ब्रज, कानपुर-बुंदेलखंड, अवध, गोरखपुर और काशी क्षेत्र में बीजेपी के वोट शेयर में कम से कम 8 फीसदी की कमी आई है. 

2- पार्टी का सबसे खराब प्रदर्शन पश्चिम और काशी क्षेत्र में रहा, जहां उसे 28 में से केवल आठ सीटें मिलीं. ब्रज में उसे 13 में से 8 सीटें मिलीं. गोरखपुर में पार्टी को 13 में से सिर्फ छह सीटें मिलीं, जबकि अवध में 16 में से सिर्फ 7 सीटें मिलीं. कानपुर-बुंदेलखंड में, बीजेपी अपनी मौजूदा सीटों को फिर से हासिल करने में विफल रही, 10 में से केवल 4 सीटें जीत पाई. 

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बीजेपी के खराब प्रदर्शन की ये रही वजहें 

- राज्य में अधिकारियों एवं प्रशासन की मनमानी एवं निरंकुशता.

- पार्टी कार्यकर्ताओं में सरकार के प्रति नाराजगी.

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- पिछले 6 सालों से लगातार सरकारी नौकरियों में पेपर लीक हो रहे हैं.

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- राज्य सरकार द्वारा सरकारी नौकरियों में संविदा कर्मियों की भर्ती में सामान्य वर्ग के लोगों को प्राथमिकता दिये जाने से विपक्ष के आरक्षण खत्म करने के मुद्दे ने जोर पकड़ लिया है.

- राजपूत समाज की पार्टी से नाराजगी.

- संविधान बदलने पर पार्टी नेताओं ने दिए बयान.

- जल्दी टिकट वितरण के कारण छठे और सातवें चरण के मतदान तक कार्यकर्ताओं का उत्साह कम हो गया.

- पुरानी पेंशन का मुद्दा सरकारी अधिकारियों के बीच गूंजा. 

- सेना के जवानों के लिए अग्निपथ भर्ती योजना एक बड़ा मुद्दा बन गई.

- बीजेपी के कोर वोटरों के नाम निचले स्तर के चुनाव अधिकारियों ने वोटर लिस्ट से हटा दिये. लगभग सभी सीटों पर पार्टी के मूल मतदाताओं के 30 से 40 हजार नाम हटा दिए गए.

आंतरिक रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि गैर-यादव ओबीसी (कुर्मी, कोरी, मौर्य, शाक्य और लोध जाति) से भाजपा को मिलने वाले वोटों का फीसदी कम हो गया है. इसके साथ ही कांग्रेस के बेहतर प्रदर्शन के पीछे की वजह मायावती की बहुजन समाज पार्टी के दलित वोट शेयर में कमी थी. रिपोर्ट में बसपा के कोर वोट शेयर में 10 फीसदी की कमी बताई गई है. इसमें कहा गया कि पार्टी को 2019 की तुलना में केवल एक तिहाई दलित वोट मिले. 

कुल मिलाकर ये सब लगभग वही मुद्दे है जो विपक्ष ने पूरे चुनाव में जोरों-शोर से उठाया था. अग्निवीर, पुरानी पेंशन, पेपर लीक और संविधान बदलने की बात ये कुछ प्रमुख बातें रही जिन्हें कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव के शुरुआत से ही पकड़े रखा और बीजेपी को घेरती रही. नतीजों में उसके असर भी देखने को मिले. अब जब बीजेपी ने अपनी हार की वजहों का मूल्यांकन किया है तब वही बातें सामने आ रही है. 

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