हरियाणा में दलित वोटों के लिए सियासी गोलबंदी तेज, चंद्रशेखर की इंट्री से रोचक हुआ मुकाबला, समझिए पूरा गणित

अभिषेक

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Dalit votes in Haryana election: हरियाणा में विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है. 5 अक्टूबर को एक ही फेज में प्रदेश की 90 सीटों पर वोटिंग होनी है. विधानसभा चुनाव के मद्देनजर हरियाणा में सियासी अखाड़ा सज गया है. जैसे-जैसे वोटिंग की तारीख नजदीक आ रही है, पार्टियों के जीत और हार में अहम भूमिका निभाने वाले दलित वोट के लिए भी सियासी लड़ाई तेज होती दिख रही है. मायावती की बहुजन समाज पार्टी (BSP) और चंद्रशेखर आजाद की आजाद समाज पार्टी (ASP) के चुनावी मैदान में उतरने से मुकाबला और भी रोचक हो गया है. आइए आपको बताते हैं हरायां में क्या है दलित वोटों का गणित और किसका पलड़ा है भारी? 

INLD-BSP और JJP-ASP में हुआ गठबंधन

हरियाणा विधानसभा चुनाव में अभय चौटाला की इंडियन नेशनल लोक दल (INLD) ने मायावती से गठबंधन किया है, जबकि दुष्यंत चौटाला की जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) चंद्रशेखर आजाद के साथ मिलकर अनुसूचित जाति (SC) के मतदाताओं को लुभाने की कोशिश कर रही है. इस विधानसभा चुनाव में आईएनएलडी 53 सीटों पर चुनाव लड़ेगी, जबकि बीएसपी 37 सीटों पर, जिनमें सभी एससी आरक्षित सीटें शामिल हैं. दूसरी ओर, जेजेपी 70 सीटों पर और एएसपी 20 सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है. 

हरियाणा विधानसभा चुनाव

हरियाणा में बसपा (BSP) के प्रभाव की बात करें तो राज्य में मायावती की पार्टी का प्रभाव घटता जा रहा है. साल 2009 में उसका कुल वोट शेयर 6.7% था, जो 2019 में घटकर 4.2% रह गया था. कांग्रेस, जो जाट+दलित+मुस्लिम का सामाजिक समीकरण बनाने की कोशिश कर रही है, इस बात से चिंतित है कि यह कदम एससी वोटों को विभाजित करने के उद्देश्य से उठाया गया हो सकता है.

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2011 की जनगणना से समझिए दलित वोटों का गणित 

2011 की जनगणना के अनुसार, हरियाणा की कुल जनसंख्या में अनुसूचित जाति की हिस्सेदारी 20.2 फीसदी है और विधानसभा में इस समुदाय के लिए 17 सीटें आरक्षित हैं. ग्रामीण इलाकों में SC जनसंख्या 22.5 फीसदी है, जबकि शहरी इलाकों में यह 15.8 फीसदी है. फतेहाबाद जिले में अनुसूचित जाति की सबसे अधिक जनसंख्या दर्ज की गई है, जो 30.2 फीसदी है. 

इसके बाद सिरसा में 29.9 फीसदी और अंबाला में 26.3 फीसदी है. सबसे कम जनसंख्या मेवात में 6.9 फीसदी, फरीदाबाद में 12.4 फीसदी और गुरुग्राम में 13.1 फीसदी दर्ज की गई. अनुसूचित जातियों ने 2024 के आम चुनाव में बड़े पैमाने पर इंडिया गठबंधन (कांग्रेस+आप) का समर्थन किया. लगभग 68% दलितों (+40%) ने इंडिया गठबंधन का समर्थन किया, जबकि 24% ने भाजपा का समर्थन किया (-34%). इस बड़े बदलाव ने इंडिया गठबंधन के लिए 8% वोट शेयर का फायदा पहुंचाया, जबकि भाजपा के लिए 7% वोट शेयर का नुकसान हुआ, जिससे 15% वोटों का स्विंग भाजपा के खिलाफ हुआ.

इसके परिणामस्वरूप, भाजपा ने 2019 में जीती हुई 10 में से 5 सीटें खो दीं. कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव में दोनों एससी आरक्षित सीटें जीतीं.

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अब आरक्षित सीटों का ट्रेंड समझिए 

2009 के विधानसभा चुनाव में, आईएनएलडी (INLD) ने 9 आरक्षित सीटें जीतीं और 36% वोट हासिल किए. कांग्रेस ने 7 सीटें जीतीं और उसे 40% वोट मिले, जबकि अन्य दलों को सिर्फ 1 सीट मिली. बीएसपी और भाजपा ने इन सीटों पर क्रमशः 6% और 4% वोट हासिल किए. 2014 में, भाजपा ने 9 आरक्षित सीटें जीतीं, आईएनएलडी (INLD) ने 3 और कांग्रेस ने 4 सीटें जीतीं. आईएनएलडी (INLD) को इन सीटों पर 29% वोट मिले. कांग्रेस ने 25%, बीएसपी ने 3% और भाजपा ने 33% वोट हासिल किए. 2019 में, भाजपा ने 5 आरक्षित सीटें जीतीं, कांग्रेस ने 7 और जेजेपी ने 4 सीटें जीतीं. इसी के साथ भाजपा ने आरक्षित सीटों पर 33% वोट, कांग्रेस ने 30%, जेजेपी ने 22%, बीएसपी ने 3% और आईएनएलडी ने मात्र 1% वोट प्राप्त किया.

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बसपा का प्रभाव कम हुआ, मगर रनर-अप को पहुंचाया नुकसान

हालांकि बीएसपी का प्रभाव कम हो गया है, लेकिन इसने 18 सीटों पर रनर-अप के संभावनाओं को नुकसान पहुंचाया, जहां उसने जीत के अंतर से अधिक वोट हासिल किए. इसने कांग्रेस की 7 सीटों पर, भाजपा की 5, जेजेपी की 2 और अन्य दलों की 4 सीटों पर संभावनाओं को नुकसान पहुंचाया. यह देखना दिलचस्प होगा कि बीएसपी का वोट शेयर कितना एएसपी हासिल करता है, जिससे राज्य में बीएसपी और कमजोर हो सकती है. हालांकि, एक कड़े चुनाव में, इन पार्टियों द्वारा हासिल किया गया वोट शेयर और उनकी भूमिका महत्वपूर्ण हो सकती है.

हरियाणा में अनुसूचित जाति के सबसे प्रभावशाली समूह जाटव, राज्य की कुल एससी आबादी के लगभग आधे हिस्से के बराबर हैं. 49 सीटों पर उनकी आबादी 10% से अधिक है. क्षेत्रीय रूप से, इनमें से 11 सीटें हिसार में, 9 अंबाला और रोहतक में, 8 गुरुग्राम में, 7 फरीदाबाद में और 5 करनाल में हैं.

2009 में, कांग्रेस ने इन सीटों में से आधी जीतीं, जबकि आईएनएलडी ने 17 सीटें जीतीं. 2014 में भाजपा ने 27 सीटें, कांग्रेस ने 9 और आईएनएलडी ने 8 सीटें जीतीं. 2019 में भाजपा का आंकड़ा 21 सीटों पर आ गया, जबकि कांग्रेस ने इसे बढ़ाकर 15 और जेजेपी ने 8 सीटें जीतीं. वोट शेयर के लिहाज से, भाजपा ने 43% वोट, कांग्रेस ने 31% और अन्य ने 26% वोट हासिल किए.

कांग्रेस की जाट, दलित, मुस्लिम गठबंधन की कोशिश

2024 के आम चुनावों में, कांग्रेस ने जाट, दलित और मुस्लिमों का एक सामाजिक समीकरण बनाया, जो राज्य की कुल आबादी का लगभग आधा हिस्सा है. 68% एससी और 64% जाटों ने कांग्रेस-आप गठबंधन का समर्थन किया. दलितों ने भाजपा नेताओं के "संविधान बदलने" की बातों के चलते इंडिया गठबंधन की तरफ रुख किया.

हालांकि उन्होंने आम चुनावों में एक साथ मतदान किया, लेकिन उनका रिश्ता हमेशा से तनावपूर्ण रहा है. 2010 में, मिर्चपुर गांव में एक जाट भीड़ ने 18 वाल्मीकि घरों को जला दिया था. 30 सीटों पर, जाट और जाटव दोनों की आबादी 10% से अधिक है. 2019 में, भाजपा और कांग्रेस ने इनमें से 9-9 सीटें जीतीं, जेजेपी ने 8 और अन्य ने 4 सीटें जीतीं. कांग्रेस को उम्मीद है कि उसे दलित और जाटों दोनों का समर्थन मिलेगा और इन सीटों में से अधिकांश पर उसे जीत हासिल होगी.

बीजेपी को क्या है उम्मीद?

दलितों का एक वर्ग कांग्रेस से मांग कर रहा है कि वह हुड्डा परिवार के बजाय कुमारी शैलजा को मुख्यमंत्री पद का चेहरा बनाएं. भाजपा को उम्मीद है कि इस गुटबाजी से उसे फायदा होगा. इसके अलावा, भाजपा को उम्मीद है कि बीएसपी और एएसपी के साथ-साथ आईएनएलडी और जेजेपी भी दलित मतदाताओं के एक बड़े हिस्से को आकर्षित करेंगे, जिससे कांग्रेस द्वारा आम चुनावों में हासिल किए गए लाभ को कुछ हद तक बेअसर किया जा सके. दिलचस्प बात यह है कि आईएनएलडी और जेजेपी दोनों ही प्रमुख जाट समुदाय का प्रतिनिधित्व करते हैं, और भाजपा को उम्मीद है कि वे जाट और बीएसपी/एएसपी दलित मतदाताओं को आकर्षित करके कांग्रेस को दोहरा नुकसान पहुंचाएंगे. 

यह लेख राजनैतिक विश्लेषक अमिताभ तिवारी ने इंडिया टुडे के ओपिनियन कॉलम में लिखा है. 

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