महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण का पेच फिर उलझा, शिंदे सरकार के लिए चुनौती बने मनोज जरांगे पाटील
मराठा आरक्षण एक्टिविस्ट मनोज जरांगे पाटील ने नया पेच खड़ा किया है. उनकी मांग है कि मराठा को कुणबी सर्टिफिकेट दिया जाए, जिससे वे OBC में शामिल हो जाएं, क्योंकि उन्हें पहले के हैदराबाद राज्य में सुविधा मिली थी.
ADVERTISEMENT
Maratha reservation: बिहार में नीतीश कुमार की सरकार ने जातिगत सर्वे के आंकड़े जारी कर जातिगत जनगणना (caste census) की मांग को बल दे दिया है. महाराष्ट्र में भी बिहार की तरह जातीय जनगणना की बात हो रही है. असल में महाराष्ट्र में एक बार फिर मराठा आरक्षण की मांग जोरों पर है. प्रदेश में मराठा सबसे बड़ा समुदाय है. पहले उन्हें आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग (EWS) के जरिए आरक्षण की बात हुई थी. मराठा आरक्षण एक्टिविस्ट मनोज जरांगे पाटील ने नया पेच खड़ा किया है. उनकी मांग है कि मराठा को कुणबी सर्टिफिकेट दिया जाए, जिससे वे OBC में शामिल हो जाएं, क्योंकि उन्हें पहले के हैदराबाद राज्य में यह सुविधा मिली थी. मराठवाड़ा पहले हैदराबाद का हिस्सा था.
मनोज जरांगे 25 अक्टूबर से फिर भूख हड़ताल करने वाले हैं. वहीं महाराष्ट्र की शिंदे सरकार का कहना है कि मराठों को आरक्षण मिलेगा, लेकिन अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के आरक्षण में कोई छेड़छाड़ नहीं की जाएगी. वहीं शरद पवार से अलग होकर बीजेपी के साथ गठबंधन में गए अजित पवार जातिगत जनगणना के पक्ष में हैं. कुल मिलाकर बीजेपी की स्थिति मराठा आरक्षण पर फंसी नजर आ रही है. आइए इस पूरे मामले को समझते हैं.
कौन हैं मनोज जरांगे पाटील?
मनोज जरांगे पाटिल मूल रूप से महाराष्ट्र के बीड जिले के रहने वाले हैं. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक जरांगे शुरुआती दिनों में होटल में भी काम कर चुके हैं. शुरू में वह कांग्रेस के एक कार्यकर्ता थे, लेकिन बाद में मराठा समुदाय के हितों की बात करते हुए पार्टी से अलग होकर ‘शिवबा संगठन’ नामक खुद की संस्था बना ली. मराठा समुदाय के आरक्षण के प्रबल समर्थक पाटिल अक्सर उन मोर्चों के हिस्सा रहे हैं, जिन्होंने मराठा आरक्षण की मांग के लिए राज्य के विभिन्न नेताओं से मुलाकात की है और आन्दोलनरत रहे हैं.
ADVERTISEMENT
यह भी पढ़ें...
महाराष्ट्र में सबसे प्रभावशाली हैं मराठा
महाराष्ट्र में मराठा आबादी लगभग 33 फीसदी है. वे ज्यादातर मराठी भाषी हैं. महाराष्ट्र में सबसे प्रभावशाली समुदाय मराठा ही है. 1960 में महाराष्ट्र के गठन के बाद से अब तक बने 20 में से 12 मुख्यमंत्री मराठा समुदाय से ही रहे हैं. मौजूदा मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे भी मराठा हैं.
ADVERTISEMENT
32 साल पहले मराठा आरक्षण को लेकर पहली बार हुआ आंदोलन
महाराष्ट्र में मराठा 80 के दशक से आरक्षण की मांग कर रहे हैं. पहली बार आंदोलन मठाड़ी लेबर यूनियन के नेता अन्नासाहब पाटिल की अगुवाई में हुआ था. उसके बाद से मराठा आरक्षण का मुद्दा प्रदेश की राजनीति का हिस्सा बन गया. महाराष्ट्र में ज्यादातर समय मराठी मुख्यमंत्रियों ने ही सरकार चलाई है, लेकिन कोई भी इस मुद्दे का हल नहीं निकाल सका है.
ADVERTISEMENT
पहले भी दो-दो बार लागू हो चुके हैं आरक्षण के प्रावधान
2014 के चुनाव से पहले तत्कालीन मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने मराठा आरक्षण के लिए अध्यादेश लाया था. फिर वे चुनाव हार गए. फिर फडणवीस के नेतृत्व में बीजेपी-शिवसेना की सरकार बनी. फडणवीस ने एमजी गायकवाड़ की अध्यक्षता में आरक्षण के लिए एक आयोग बनाया. आयोग की सिफारिशों के आधार पर उन्होंने सोशल एंड एजुकेशनली बैकवर्ड क्लास एक्ट के विशेष प्रावधान के तहत मराठाओं को 16% का आरक्षण दिया. बॉम्बे हाईकोर्ट ने इसे कम करते हुए सरकारी नौकरियों में 13% और शैक्षणिक संस्थानों में 12% आरक्षण कर दिया. बाद में मई 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने इसे रद्द कर दिया.
बीजेपी के लिए क्या है संकट?
बीजेपी के लिए मराठा आरक्षण की मांग दोधारी तलवार है. आरक्षण समर्थक कार्यकर्ता मराठों को ओबीसी में शामिल करने को कह रहे हैं, तो ओबीसी संगठन इसका विरोध कर रहे हैं. शिंदे सरकार खुद कह चुकी है कि, ओबीसी आरक्षण से छेड़छाड़ नहीं होगा. लोकसभा चुनाव की तैयारियों की आहट के बीच मराठा आरक्षण की मांग महाराष्ट्र में जोर पकड़ती नजर आ रही है. अगर जल्द इसका हल नहीं निकला, तो इसका खामियाजा बीजेपी को चुनावों में उठाना पड़ सकता है.
ADVERTISEMENT