महाराष्ट्र में CM शिंदे और उनके डिप्टी अजित पवार के बीच आखिर चल क्या रहा है?
महाराष्ट्र में क्या फिर कोई सियासी बवाल मचने वाला है? ऐसा इसलिए क्योंकि इस बात के बिलकुल साफ संकेत दिख रहे हैं की मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उप मुख्यमंत्री अजित पवार के बीच कुछ ठीक नहीं चल रहा.
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Maharashtra Politics: महाराष्ट्र में क्या फिर कोई सियासी बवाल मचने वाला है? ऐसा इसलिए क्योंकि इस बात के बिलकुल साफ संकेत दिख रहे हैं की मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उप मुख्यमंत्री अजित पवार के बीच कुछ ठीक नहीं चल रहा. वैसे तो शिंदे की अध्यक्षता में शुक्रवार को राज्य कैबिनेट की बैठक हुई तो इसमें अजित पवार भी दिखे. पर इससे पहले वो कई दिनों तक राज्य सचिवालय भी नहीं गए थे. इसी के बाद चर्चा और तेज हुई की क्या अजित नाराज हैं और कोई बड़ा कदम उठाएंगे. आखिर पवार और एकनाथ शिंदे के बीच ऐसा क्या फंसा है जो सुलझने का नाम नहीं ले रहा?
शिंदे-पवार के बीच विवाद की शुरुआत
महाराष्ट्र में शिवसेना और बीजेपी का गठबंधन खत्म होने के बाद 22 नवंबर 2019 को महाविकास अघाड़ी गठबंधन की घोषणा की गई. जिसमें शिवसेना, एनसीपी (राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी) और कांग्रेस शामिल थे. मुख्यमंत्री बने शिवसेना के उद्धव ठाकरे. लेकिन 1 जुलाई 2022 को एकनाथ शिंदे शिवसेना के 40 विधायकों के साथ बागी हो गए.
एकनाथ शिंदे ने जब मूल शिवसेना को तोड़ा तब उन्होंने अजित पवार पर आरोप लगाया था कि वह शिवसेना को खत्म करने की कोशिश कर रहे हैं. इसीलिए वह सरकार से बाहर निकलना चाह रहे थे. उनके मुताबिक जब उद्धव ठाकरे ने उनकी बात नहीं मानी तब उन्हें इस तरह की बगावत करनी पड़ी.
इंडिया टुडे के मुंबई ब्यूरो हेड और महाराष्ट्र की राजनीति को करीब से देखने वाले साहिल जोशी बताते हैं कि शिंदे के एक साल बाद 2 जुलाई 2023 को अजीत पवार ने खुद अपनी ही पार्टी एनसीपी को तोड़ दिया. अजित पवार ने बीजेपी-शिंदे (एनडीए) सरकार में शामिल होने का ऐलान कर दिया. वह उपमुख्यमंत्री भी बने. उसके अलावा उन्हे नौ मंत्रालयों से भी नवाजा गया. इससे एकनाथ शिंदे ने अजित पवार के खिलाफ जो नैरेटिव बनाया था उसको झटका लगा. एकनाथ शिंदे के लोगों को जो मंत्री पद मिल सकते थे वह अजित पवार के आने से उनके खेमे में चले गए. तब से ही दोनों नेताओं के बीच में तनातनी चली आ रही है.
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ऐसा भी कहा जा रहा है की अजित पवार की बैठकों में शिवसेना के मंत्री शामिल नहीं होते. खबरें चलीं कि एकनाथ शिंदे अजित पवार की फाइलों को भी अटका दे रहे हैं. उनकी फाइलें देवेंद्र फडनवीस से होते हुए एकनाथ शिंदे तक जाती हैं.
शक्ति के बंटवारे को लेकर भी नाराजगी
बताया गया कि अजित पवार की गार्जियन मिनिस्टर (संरक्षक मंत्री) पद को लेकर भी मांगे थीं, जो पूरी नहीं हुईं है. अजित पवार सतारा, पुणे और रायगढ़ जिले में अपनी पार्टी के लोगों को संरक्षक मंत्री बनाए जाने की मांग कर रहे थे. अजित पवार को केवल पुणे जिले का संरक्षक मंत्री बनाया गया, जो पहले से बीजेपी के पास थी. लेकिन, रायगढ़ और सतारा जो शिवसेना के पास है वो अभी तक अजित पवार को नहीं मिला है. विधानपरिषद, महामंडल और निगमों में भर्तियों को लेकर भी अजित पवार नाराज चल रहे हैं. इसके चलते उन्होंने अमित शाह से मुलाकात की भी की है.
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शिवसेना 2019 के लोकसभा में जीती 18 सीटों पर चुनाव लड़ने की बात कर रही है. जिसे लेकर भी अजित गुट में विरोध और नाराजगी है.
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मराठा आरक्षण भी बना वजह
मराठा आरक्षण को लेकर एकनाथ शिंदे ने जिस तरह से अपनी लाइन ली उसे लेकर भी अजित पवार गुट में असहजता देखने को मिला. साहिल जोशी कहते हैं कि यह असहजता बीजेपी के मन में भी थी.
छगन भुजबल जो अजित पवार गुट के मंत्री हैं, उन्होंने सीधा एकनाथ शिंदे पर हमला बोल दिया. उन्होंने कहा कि जिस तरह से मराठा समाज को ओबीसी समाज के अंदर आरक्षण देकर घुसाने की कोशिश की जा रही है वो गलत है और जिसका हम विरोध करेंगे. अपने ही सरकार के खिलाफ उन्होंने बात करना शुरू किया. उनको अजित पवार का पूरा समर्थन है. मराठा आरक्षण के पूरे मामले में अजित पवार ने खुद को दूर रखा. साहिल जोशी का कहना है कि इसमें बीजेपी का भी अंदरूनी समर्थन नजर आ रहा है. शिंदे गुट के नेता रामदास कदम ने अजित पवार पर हमला बोलते हुए कहा कि जिस समय हमें (मराठा आरक्षण मामले में) सबसे ज्यादा इनके साथ की जरूरत थी, उन्हें (अजित पवार को) डेंगू हो गया.
गठबंधन से अलग होंगे अजित पवार?
गठबंधन से अलग होने की संभावनाओं पर साहिल कहते हैं कि ऐसा लगता है की लोकसभा तक तो यह लोग साथ रहेंगे. लेकिन, विधानसभा में आकर बात फंसेगी जैसे सीटों का बंटवारा, पॉवर शेयरिंग जैसे मुद्दे होंगे जिसे लेकर बात उठेगी. इसीलिए, यह बात भी उठ रही है कि क्या लोकसभा चुनावों के बाद महाराष्ट्र की सरकार चलेगी या फिर राष्ट्रपति शासन लगेगा फिर चुनाव होंगे.
साहिल एक दूसरा पक्ष भी पेश करते हैं. वह कहते हैं कि लोकसभा के नतीजे कैसे आते हैं उस पर भी बहुत कुछ निर्भर होगा कि आगे की राजनीति कैसे होगी. इसके साथ ही शिवसेना और एनसीपी के विधायकों के डिस्क्वालिफिकेशन को लेकर भी फैसला आना बाकी है. गठबंधन की संभावनाओं पर इसका भी असर पड़ेगा.
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