विपक्ष के नेता बने राहुल गांधी तो 'शैडो पीएम' पद का शुरू हुआ जिक्र, समझिए क्या होता है ये

रूपक प्रियदर्शी

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Rahul Gandhi: लोकसभा चुनाव बाद संसद में जो जहां था वहीं रहा. मोदी तीसरी बार पीएम बनकर सत्ता पक्ष में बैठे. राहुल गांधी विपक्ष की बेंच पर. बदलाव ये हुआ कि कांग्रेस को 99 सीटें मिलने से राजनीति जरूर पलट गई है. कांग्रेस विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी थी. आज भी है लेकिन उसके हिस्से में 10 साल बाद विपक्ष के नेता का संवैधानिक पद आ गया है. राहुल गांधी बन गए विपक्ष के नेता और उन्हें कहा जा रहा है शैडो पीएम. शैडो पीएम राहुल गांधी क्या करेंगे, क्या रोल रहेगा? आइए जानते हैं विस्तार से. 

क्या होता है शैडो पीएम?

भारत में शैडो कैबिनेट का कॉन्सेप्ट नहीं है. संविधान में ऐसी कोई व्यवस्था भी नहीं है. ब्रिटेन में शैडो पीएम, शैडो कैबिनेट वाला सिस्टम है जिसकी चर्चा राहुल के विपक्ष का नेता बनने के बाद शुरू है. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में भारतीय संसद पर 2012 की एक बुकलेट का रेफरेंस है जिसमें लिखा है लोकसभा में विपक्ष के नेता को शैडो कैबिनेट के साथ शैडो प्रधानमंत्री माना जाता है, जो मौजूदा सरकार के गिरने पर प्रशासन संभालने के लिए तैयार है.

शैडो कैबिनेट क्या करता है?

भारत में शैडो कैबिनेट कभी हुआ नहीं. कोई शैडो पीएम कहलाया नहीं. ब्रिटेन में विपक्ष का शैडो कैबिनेट सरकार के कामों पर नजर रखता है. ब्रिटेन की संसदीय व्यवस्था से ही भारत में विपक्ष का नेता पद बना लेकिन शैडो पीएम या शैडो कैबिनेट भारत में नहीं आया. राहुल गांधी चाहें तो विपक्ष के नेताओं की एक टीम बना सकते हैं जो अलग-अलग मंत्रालयों के कामकाज पर नजर रख सकती है. जैसे राहुल शैडो पीएम भावनाओं में कहलाएंगे वैसे ही विपक्ष की टीम भी शैडो कैबिनेट कही जा सकती है. 

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ब्रिटेन में शैडो पीएम का कॉन्सेप्ट ये है कि अगर सरकार गिरती है तो विपक्ष का नेता या शैडो पीएम नई सरकार बनाने के लिए तैयार रहता है. उसकी एक शैडो कैबिनेट भी होती है. भारत में स्थिति ऐसी है कि अगर सरकार गिरी तो जरूरी नहीं है कि राहुल गांधी ही अगले पीएम बनें. इंडिया गठबंधन मंथन करके पीएम चुनेगा. बहुमत का नंबर जुटा राष्ट्रपति से सरकार बनाने का दावा पेश करेगा. विपक्ष का नेता होने से राहुल का दावा मजबूत हो सकता है लेकिन वो स्वाभाविक दावेदार नहीं होंगे.

राहुल का बढ़ गया है कद

राहुल गांधी विपक्ष के नेता बन गए हैं. विपक्ष का नेता संवैधानिक पद है लेकिन उसके सरकार चलाने का अधिकार नहीं है. सरकार के कई फैसलों में विपक्ष के नेता यानी राहुल गांधी की राय अब जरूरी है. कैबिनेट मंत्री को मिलने वाली सुख-सुविधाएं अब राहुल गांधी को भी मिलनी है. राहुल गांधी को एक सांसद से कहीं ज्यादा प्रो-एक्टिव रोल में रहना होगा. राहुल ने वादा किया है कि ऐसा ही होगा.

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ईडी-सीबीआई डायरेक्टर, जज, चुनाव आयुक्त जैसे कई उच्च पदों पर नियुक्ति करने वाली कमेटी में विपक्ष के नेता को रखा गया है. ये व्यवस्था तब बनी थी जब राहुल के विपक्ष के नेता थे. पहले मोदी के साथ बैठकों में अधीर रंजन जाते थे. अब राहुल गांधी जाएंगे. मोदी राहुल की राय माने या ना माने, राय लेनी तो पड़ेगी.

हालांकि विपक्ष के नेता बनने या शैडो पीएम कहलाने के बाद भी वो पीएम से एक कदम पीछे ही रहेंगे. विपक्ष का नेता होने से संसद की लोक लेखा समिति के अध्यक्ष भी बनेंगे जो सरकार के खर्चों की समीक्षा करने वाली संसदीय समिति है. नया रोल सरकार से सवाल करने या सरकार की आलोचना करने की जिम्मेदारी बढ़ाता है. नई लोकसभा में पहले दिन से राहुल इस रोल में आ चुके हैं. 

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