Bihar Politics: तेजस्वी की आभार यात्रा हो या चिराग की पार्टी LJP (R) की प्रदेश कार्यकारिणी बैठक हो या फिर बीजेपी का सदस्यता अभियान हो, नाम सुनने में अलग जरूर लगते हैं पर मकसद इन सभी पार्टियों का एक है. सभी पार्टियां आगामी विधानसभा चुनाव 2025 में वोटरों को साधना चाहती हैं.
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चुनावी बिगुल बजने में अभी साल भर का वक्त है पर सभी पार्टियां अभी से रणनीति बनाने में जुट गई हैं. तैयारियों से परे बिहार में गठबंधन सीट बंटवारे पर आपस में उलझते दिख रहे हैं. रिपोर्ट्स के मुताबिक एनडीए और इंडिया ब्लॉक में सीट बंटवारे पर पेंच फंस है. अगर वक्त रहते सीट की गुत्थी नहीं सुलझी तो विधानसभा चुनाव से पहले बड़े उलटफेर दिख सकते है.
एनडीए में चिराग छेड़ सकते हैं बगावत
एनडीए की घटक दल की बात करे जिनमें जेडीयू, भाजपा, हम (से), आरएलएम और एलजेपी के दोनों धड़े वाली सरकार एनडीए में शमिल है, इनमें अभी से सीट बंटवारे को लेकर नेताओं के रवैए किसी से छुपे नहीं हैं. एक तरफ चिराग पासवान की पार्टी ने हर जिले में 1 सीट की मांग कर दी है, तो वहीं लोकसभा में खाली हाथ रह जाने वाले पशुपति पारस के तेवर नजरंदाज करने वाले नहीं लग रहे है.
पारस एनडीए में सक्रिय हैं, और बीजेपी यह सुनिश्चित कर रही है कि उनके साथी को खाली हाथ न छोड़ा जाए. चिराग पासवान ने झारखंड में 11 सीटों की मांग की है और एलजेपीआर ने हर जिले में एक विधानसभा सीट की मांग भी रखी है. दूसरी ओर, जीतन राम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा की लोकसभा 2024 को लेकर कुछ इच्छाएं हैं, जिन्होंने फिलहाल कोई सीधा डिमांड तो नहीं रखा है, लेकिन उनकी मंशा साफ दिखती है. कुल मिलाकर, बीजेपी और जेडीयू पर सबकी निगाहें लगी हैं, खासकर जब से नीतीश कुमार अब राष्ट्रीय राजनीति में बड़े खिलाड़ी बन चुके हैं. अगर बीजेपी तालमेल बैठाने में नाकामयाब रही, तो चुनाव से पहले बड़े फेरबदल देखे जा सकते हैं.
आरजेडी-कांग्रेस के बीच तनाव
इंडिया ब्लॉक के गठबंधन में भी सीट शेयरिंग को लेकर खटपट शुरू हो गई है. आरजेडी ने संकेत दिया है कि वह इस बार कांग्रेस को पिछली बार जितनी सीटें देने को तैयार नहीं है. 2020 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 70 सीटों पर चुनाव लड़ा था, लेकिन सिर्फ 19 सीटों पर ही जीत पाई.इसी वजह से आरजेडी ने लोकसभा 2024 चुनाव के वक्त भी कांग्रेस की मांगों को नजरअंदाज किया. यह स्थिति पप्पू यादव के निर्दलीय मैदान में उतरने की वजह भी बनी। ऐसा नहीं है कि इस बार भी कांग्रेस चुप बैठेगी, वह अलग चुनाव लड़ने पर विचार कर सकती है.
गठबंधन का भविष्य
एनडीए के टूटने की संभावना है या इंडिया एलायंस में दरार पड़ेगी, ये तो 2025 के विधानसभा चुनाव से पहले ही पता चलेगा.नेताओं के बदलते तेवर और मांगों में बढ़ोतरी ने राजनीतिक हालात को और दिलचस्प बना दिया है. इस माहौल में बड़े उलटफेर की संभावना को नकारा नहीं जा सकता, और आने वाला समय ही बताएगा कि इस राजनीतिक खेल में कौन विजयी होता है.
ऐसे में बिहार की राजनीति हर गुजरते दिन के साथ और भी दिलचस्प होती जा रही है। जनता, राजनीतिक पंडित और खासतौर पर पार्टियों के समर्थक इन घटनाक्रमों पर पैनी नजर बनाए हुए हैं। आने वाले समय में क्या होगा, यह देखने वाली बात होगी।
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