India-Bangladesh relations: बांग्लादेश में छात्र आंदोलन की वजह से हुए तख्ता पलट के बाद पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना भारत आ गई थीं. तभी से भारत इस उलझन में है कि आखिर शेख हसीना का क्या करें. क्योंकि बात अब भारत-बांग्लादेश के आपसी संबंधों को आगे ले जाने की आ रही है.
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दरअसल बीते 5 अगस्त को बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना अचानक अपना देश छोड़कर भारत आ गई थीं. उनको भारतीय सुरक्षा में गाजियाबाद स्थित हिंडन एयरबेस में ठहराया गया था. ये सब इसलिए हुआ, क्योंकि जून-जुलाई के महीने में बांग्लादेश में बड़े पैमाने पर छात्र आंदोलन हुए. यह आंदोलन बांग्लादेश के निर्माण और स्वतंत्रता का आंदोलन लड़ने वाली मुक्ति वाहिनी से संबंधित कार्यकर्ताओं और उनके परिजनों को सरकारी नौकरियों में 30 प्रतिशत आरक्षण के विरोध में हुआ था.
छात्र इस तरह के आरक्षण के खिलाफ थे और वे सभी के लिए समान अवसर की मांग कर रहे थे. शेख हसीना सरकार द्वारा इस आंदोलन को कुचलने के लिए बल प्रयोग हद से ज्यादा किया गया, जिसकी वजह से 100 से अधिक छात्रों व अन्य नागरिकों की मौत इस आंदोलन के दौरान हो गई. जिसके बाद सेना ने भी छात्रों के खिलाफ बल प्रयोग करने से मना कर दिया. आखिरकार शेख हसीना को प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देकर बांग्लादेश छोड़ भारत आना पड़ा.
अमेरिका, यूएई और ब्रिटेन ने नहीं दी शेख हसीना को शरण
शेख हसीना के भारत आने के बाद चर्चाएं शुरू हुई कि वे राजनीतिक शरण लेने के लिए अमेरिका, यूएई या फिर ब्रिटेन से गुजारिश कर सकती हैं. बैक चैनल पर ऐसी कोशिशें की गईं. खासतौर पर शेख हसीना के परिजन लंदन में रहते हैं तो ब्रिटेन से शरण देने के लिए चर्चाएं हुईं. लेकिन न तो अमेरिका ने और न ही यूएई व ब्रिटेन ने अभी तक शेख हसीना को शरण देने का कोई फैसला लिया. भारत के सामने अब समस्या ये है कि क्या वह शेख हसीना को राजनीतिक शरण दे. जिस तरह का माहौल बांग्लोदश में है, उसे देखते हुए नहीं लगता कि भारत शेख हसीना को शरण देने का कोई जोखिमपूर्ण निर्णय लेगा, क्योंकि इससे भारत और बांग्लादेश के बीच संबंधों में खटास आ सकती है.
बांग्लादेश करेगा प्रत्यर्पण की मांग, तब क्या करेगा भारत?
इस मामले में अगला सवाल यही खड़ा होता है कि क्या बांग्लादेश की तरफ से शेख हसीना के प्रत्यर्पण की मांग आना शुरू हो गई है. जवाब है हां. बांग्लादेश में विपक्षी पार्टी बीएनपी व अन्य राजनीतिक संगठनों की तरफ से इस तरह की मांग की जा रही है. बांग्लादेश के तमाम राजनीतिक दलों के नेताओं के इस तरह के बयान सामने आ रहे हैं कि भारत-बांग्लादेश के बीच रिश्तों को ठीक करने की बुनियाद शेख हसीना के प्रत्यर्पण से शुरू होगी. यह एक तरह की चेतावनी है जो बांग्लादेश के दबाव समूहों द्वारा भारत को दी जा रही है.
अब अंतरिम सरकार के प्रमुख ने भी सुनाई खरी-खोटी
बांग्लादेश में अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस ने भी साफ-साफ कह दिया है कि जब तक बांग्लादेश अधिकृत रूप से भारत से शेख हसीना के प्रत्यर्पण की मांग और बातचीत नहीं करता है, तब तक शेख हसीना को भारत में रहकर किसी भी तरह की बयानबाजी से बचना चाहिए. मोहम्मद यूनुस के शब्दो में समझें तो उनका कहना है कि शेख हसीना को अब चुप रहना चाहिए. मोहम्मद यूनुस यह भी कहते हैं कि वे भारत में रहकर जो भी बयान देंगी, इससे भारत और बांग्लादेश के रिश्तों को ही नुकसान पहुंचेगा.
दरअसल शेख हसीना ने कुछ दिन पहले बयान दिया था कि बांग्लादेश में छात्र आंदोलन के नाम पर जो दंगे, बर्बरता और अल्पसंख्यकों व राजनीतिक कार्यकर्ताओं की हत्याएं की गईं, उसे लेकर बांग्लादेश में जांच होनी चाहिए और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए. शेख हसीना के इस बयान से बांग्लादेश की अंतरिम सरकार भड़क गई है.
अब भारत की मोदी सरकार क्या करे?
भारत के लिए बांग्लादेश सिर्फ पड़ोसी ही नहीं बल्कि सामरिक सहयोगी भी है. तमाम अंतराष्ट्रीय संगठनों में भारत अपने सबसे प्रिय पड़ोसी बांग्लादेश का अहम सहयोगी भी है. लेकिन बांग्लादेश के साथ इस दोस्ती की सबसे बड़ी वजह बनी थीं शेख हसीना. शेख हसीना बांग्लादेश के संस्थापक और पहले राष्ट्रपति शेख मुजीबुर्रहमान की बेटी हैं. शेख मुजीबुर्रहमान और उनके पूरे परिवार की हत्या के बाद विदेश में होने की वजह से शेख हसीना और एक उनकी एक छोटी बहन बच गई थीं.
बाद में तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी की मदद से उनको भारत में शरण मिली थी और लंबे समय तक उनको भारत में सुरक्षा मिली. जिसके बाद वे बांग्लादेश गईं और 2009 से लगातार वे वहां प्रधानमंत्री रहीं और भारत के साथ बांग्लादेश के संबंधों को बेहद मजबूत किया था. लेकिन अब उन्हीं शेख हसीना को एक बार फिर से भारत में पनाह लेनी पड़ी है, लेकिन पड़ोसी बांग्लादेश अब उनके प्रत्यर्पण की मांग करेगा तो भारत को क्या निर्णय लेना चाहिए, इसे लेकर मोदी सरकार बेहद पशोपेश में है.
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