ग्वालियर के आखिरी महाराजा जीवाजी राव सिंधिया चर्चा में, जिनके महल में चांदी की ट्रेन परोसती थी खाना
Gwalior Maharaja Jiwaji Rao Scindia: ग्वालियर के आखिरी महाराज जीवाजी राव सिंधिया की शख्सियत केवल एक किंग तक सीमित नहीं थी. वह अपनी शाही जीवनशैली के लिए भी प्रसिद्ध थे. जय विलास महल में उनकी चांदी की ट्रेन, जो मेहमानों को खाना परोसने के लिए चलती थी.
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न्यूज़ हाइलाइट्स
ग्वालियर के आखिरी महाराजा थे जीवाजी राव सिंधिया
केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के दादा हैं जीवाजी
जीवाजी ने जय विलास पैलेस में लगवाई थी चांदी की ट्रेन
Jiwaji Rao Scindia: उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने ग्वालियर में आज आखिरी महाराजा जीवाजी राव सिंधिया की प्रतिमा का अनावरण किया है. इसके साथ ही महाराज बाड़े पर जियो सांइस म्यूजियम भी उपराष्ट्रपति ने उद्घाटन किया है. जीवाजी राव सिंधिया मध्य प्रदेश के गठन तक प्रदेश प्रमुख के तौर पर भी काम करते रहे थे. महल के बैंक्विट रूम में चांदी की एक ट्रेन है जो डायनिंग टेबल पर बैठने वाले मेहमानों को खाना परोसती थी. आइए जानते हैं रॉयल सिंधिया के आखिरी राजा के बारे में...
कौन थे जीवाजी राव सिंधिया?
जीवाजी राव सिंधिया अपनी रॉयल लाइफस्टाइल और मध्य भारत के पहले राजप्रमुख के रूप में जाने जाते हैं, 1961 में इस दुनिया से विदा हो गए थे. जीवाजी राव सिंधिया ने 5 जून 1925 को अपने पिता माधवराव सिंधिया के निधन के बाद ग्वालियर की गद्दी संभाली. वह 1947 में भारत की आजादी तक ग्वालियर रियासत के महाराजा रहे. आजादी के बाद उन्होंने भारतीय सरकार के साथ विलय समझौते पर हस्ताक्षर किए और मध्य भारत के गठन में अहम भूमिका निभाई. उन्हें मध्य भारत का पहला राजप्रमुख बनाया गया, वह 1956 तक इस पद पर रहे.
जीवाजी राव सिंधिया की शख्सियत केवल एक राजा तक सीमित नहीं थी. वह अपनी शाही जीवनशैली के लिए भी प्रसिद्ध थे. जय विलास महल में उनकी चांदी की ट्रेन, जो मेहमानों को खाना परोसने के लिए चलती थी, आज भी उनकी रॉयल लाइफ का प्रतीक है.
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शाही वैभव का प्रतीक रहा है जय विलास पैलेस
ग्वालियर स्थित जय विलास महल, जिसे 1874 में बनवाया गया था, 1,24,771 वर्ग फीट क्षेत्र में फैला है. महल का दरबार हॉल अपने भव्य झूमरों के लिए प्रसिद्ध है, जिनका वजन दो-दो टन है. महल के बैंक्वेट हॉल में मौजूद चांदी की ट्रेन विशेष आकर्षण का केंद्र है. यह ट्रेन मेहमानों को डायनिंग टेबल पर खाना परोसने के लिए चलाई जाती थी. आज इस महल का एक बड़ा हिस्सा 'जीवाजी राव सिंधिया म्यूजियम' में बदल दिया गया है, जहां सिंधिया राजघराने की शाही विरासत को संरक्षित किया गया है.
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राजनीति से जुड़ा रहा है सिंधिया परिवार
जीवाजी राव सिंधिया के निधन के बाद उनका परिवार राजनीति में सक्रिय हो गया. उनकी पत्नी राजमाता विजया राजे सिंधिया ने 1962 में कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा चुनाव जीता, लेकिन बाद में जनसंघ से जुड़ गईं और भारतीय जनता पार्टी की संस्थापक सदस्यों में से एक बनीं.
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उनके बेटे माधवराव सिंधिया का राजनीतिक सफर भी बेहद सफल रहा. वह कांग्रेस पार्टी के प्रमुख नेता बने और रेल मंत्री जैसे अहम पदों पर काम किया. माधवराव सिंधिया की बहन वसुंधरा राजे राजस्थान की मुख्यमंत्री रह चुकी हैं. वहीं, माधवराव के बेटे ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भी राजनीति में अपनी छाप छोड़ी है. वह पहले कांग्रेस में थे लेकिन अब भाजपा के प्रमुख नेताओं में से एक हैं और वर्तमान में केंद्रीय मंत्री हैं.
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18वीं सदी से ग्वालियर तक रॉयल फैमिली सिंधिया की कहानी
सिंधिया परिवार की शुरुआत 18वीं सदी में मराठा साम्राज्य के तहत हुई. इस वंश की नींव राणोजी सिंधिया ने रखी थी, जिन्होंने उज्जैन को अपनी राजधानी बनाया. 1818 में अंग्रेजों के साथ संधि के बाद सिंधिया परिवार ने ग्वालियर को अपनी नई राजधानी बनाया. इसके बाद ग्वालियर रियासत भारत की सबसे समृद्ध रियासतों में से एक बन गई.
जीवाजी राव सिंधिया की कहानी केवल एक शासक की नहीं, बल्कि एक ऐसे व्यक्ति की है, जिन्होंने शाही जीवन और आधुनिक भारत के बीच संतुलन बनाया. जय विलास महल की चांदी की ट्रेन और भव्य झूमर उनके रॉयल वैभव को दर्शाते हैं, तो वहीं उनकी राजनैतिक दूरदृष्टि उन्हें एक कुशल प्रशासक के रूप में स्थापित करती है. आज ग्वालियर में उनकी प्रतिमा का अनावरण न केवल उनके योगदान को याद करने का अवसर है, बल्कि सिंधिया परिवार की विरासत को भी सलाम किया है.
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