जज यशवंत वर्मा के घर ED पहुंचेगी? CJI ने सजा दी या प्रमोशन?
दिल्ली हाई कोर्ट के जज के आवास में आग बुझाने के दौरान करोड़ों की नकदी मिली, जिससे न्यायपालिका की पारदर्शिता पर सवाल उठे. जज का तबादला इलाहाबाद हाई कोर्ट कर दिया गया, लेकिन जांच की घोषणा नहीं हुई. विपक्ष ने इम्पीचमेंट की मांग की है.
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दिल्ली हाई कोर्ट के एक वरिष्ठ जज के आवास में आग लगने की घटना के बाद एक चौंकाने वाला खुलासा हुआ है. दमकल विभाग द्वारा आग बुझाने के दौरान एक कमरे में भारी मात्रा में नकदी मिली, जिसकी अनुमानित राशि लगभग पचास करोड़ रुपये बताई जा रही है. इस घटना ने न्यायपालिका की कार्यप्रणाली और पारदर्शिता पर गंभीर प्रश्नचिह्न लगा दिए हैं.
क्या है पूरा मामला?
दिल्ली हाई कोर्ट के जज के सरकारी आवास में आग लगने की सूचना मिलने पर दमकल विभाग तत्काल मौके पर पहुंचा और आग पर काबू पाया. आग बुझाने के बाद जब जांच शुरू हुई, तो अधिकारियों को एक कमरे में बड़े पैमाने पर नकदी का भंडार मिला. अभी तक यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि इस नकदी का स्रोत क्या है और यह पूरी तरह से सुरक्षित मिली या कुछ हिस्सा जल गया.
जज का तबादला, लेकिन जांच नहीं!
इस मामले के सामने आने के बाद चीफ जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में कॉलेजियम की बैठक बुलाई गई, जिसमें सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया कि संबंधित जज को तत्काल प्रभाव से इलाहाबाद हाई कोर्ट में स्थानांतरित कर दिया जाए. यह तबादला सजा है या कोई पदोन्नति, इस पर सवाल उठ रहे हैं.
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आश्चर्यजनक रूप से, इस मामले में किसी भी प्रकार की जांच की घोषणा नहीं की गई न ही प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और न ही आयकर विभाग ने अब तक कोई कार्रवाई की है, जिससे न्यायपालिका की निष्पक्षता पर संदेह पैदा हो रहा है.
राजनीतिक प्रतिक्रियाएं और संभावित इम्पीचमेंट
कांग्रेस ने इस मामले को लेकर राज्यसभा में चर्चा कराने की मांग की, लेकिन सभापति जगदीप धनखड़ ने इसे अस्वीकार कर दिया. वहीं, कांग्रेस सांसदों का दावा है कि उन्होंने इस मुद्दे पर चर्चा के लिए 55 सांसदों के हस्ताक्षर जुटा लिए हैं.
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कुछ विधायकों और कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि संबंधित जज के खिलाफ इम्पीचमेंट की प्रक्रिया शुरू की जानी चाहिए, क्योंकि किसी भी न्यायाधीश को केवल संसद ही हटा सकती है. हालांकि, अभी तक इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है.
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न्यायपालिका की साख पर खतरा?
इस घटना ने भारतीय न्यायपालिका की निष्पक्षता और विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं. पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली ने भी एक बार कहा था कि किसी जज के फैसलों की समीक्षा उनके सेवानिवृत्त होने से पहले किए गए निर्णयों के आधार पर होनी चाहिए.
यह मामला सिर्फ एक व्यक्ति विशेष तक सीमित नहीं है, बल्कि यह न्यायपालिका की पारदर्शिता और ईमानदारी को लेकर बड़ा प्रश्नचिह्न खड़ा करता है. अगर आम नागरिकों के घरों से थोड़ी भी अनधिकृत नकदी मिलती है, तो उनके खिलाफ ईडी और सीबीआई जैसी एजेंसियां तुरंत हरकत में आ जाती हैं. लेकिन जब खुद न्यायाधीशों के घर से करोड़ों रुपये बरामद होते हैं, तो मामला तबादले तक ही सीमित रह जाता है.
क्या आगे कोई कार्रवाई होगी?
अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि न्यायपालिका और सरकार इस मामले में आगे क्या कदम उठाती हैं. क्या निष्पक्ष जांच होगी? क्या संबंधित जज पर कोई सख्त कार्रवाई होगी या फिर यह मामला अन्य विवादों की तरह रफा-दफा हो जाएगा? भारतीय लोकतंत्र की न्याय व्यवस्था में आम जनता का विश्वास बनाए रखना सर्वोपरि है. ऐसे में इस मामले की निष्पक्ष जांच और उचित कार्रवाई आवश्यक है, ताकि न्यायपालिका की गरिमा और विश्वसनीयता बनी रहे.
यहां देखें वीडियो:
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