कांग्रेस ने मुस्तैद किए नए सेनापति, महज नई जिम्मेदारी या पावर के साथ काम की आजादी भी ?
सवाल ये है कि क्या इन नेताओं को पूरी आजादी और संसाधन दिए जाएंगे या फिर वे स्थानीय दखलअंदाजी और वरिष्ठ नेताओं की राजनीति में उलझकर रह जाएंगे? 'विजय फैक्टर' में वरिष्ठ पत्रकार विजय विद्रोही कांग्रेस पार्टी में बह रही बदलाव की बयार पर अंदर की बात बता रहे हैं.
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कांग्रेस नेतृत्व ने एक नई टीम तैयार कर कई राज्यों में महासचिव और प्रभारियों को नियुक्त किया है. इन नए नेताओं को निर्देश दिया गया है कि वे जनता के बीच जाएं, संगठन को मजबूत करें और पार्टी को सत्ता में लाने की कोशिश करें. अब बड़ा सवाल ये है कि क्या इन नेताओं को पूरी आजादी और संसाधन दिए जाएंगे या फिर वे स्थानीय दखलअंदाजी और वरिष्ठ नेताओं की राजनीति में उलझकर रह जाएंगे? 'विजय फैक्टर' में वरिष्ठ पत्रकार विजय विद्रोही कांग्रेस पार्टी में बह रही बदलाव की बयार पर अंदर की बात बता रहे हैं.
मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी ने अपनी नई टीम को जिम्मेदारियां दी हैं. जवाबदेही भी उनकी तय कर दी है और इसमें एक दर्जन राज्यों के जो नए प्रभारी बनाए गए हैं, महासचिव बनाए गए हैं, उनपर अगला चुनाव जीतने का एक तरह से भरोसा व्यक्त किया गया है. यह कहा गया है कि पांच साल आप जनता के बीच में रहिए. सड़क पर संघर्ष करिए, समर्पित कार्यकर्ताओं की फौज तैयार कीजिए और नतीजा निकालने की कोशिश कीजिए.
अब सवाल ये है कि क्या विचारधारा के स्तर पर लड़ाई लड़नी है? विचारधारा के स्तर पर लड़ाई लड़ते हुए भी अंतिम लक्ष्य सत्ता हासिल करना है. कांग्रेस में आमतौर पर ऐसा होता नहीं है. कांग्रेस में बदलाव की जो तस्वीर उभर रही है, वह सतही नहीं होनी चाहिए, बल्कि इसके पीछे ठोस रणनीति होनी चाहिए. कांग्रेस को दो तरह की राजनीतिक चुनौतियों से जूझना होगा.
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BJP का सीधा मुकाबला और क्षेत्रीय दलों से तालमेल की कवायद
मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, कर्नाटक जैसे राज्यों में कांग्रेस को सीधे बीजेपी से लड़ना है, जहां उसे अपने दम पर मजबूत रणनीति बनानी होगी. उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में कांग्रेस को क्षेत्रीय दलों से तालमेल बिठाना होगा. समाजवादी पार्टी, आरजेडी और टीएमसी के साथ संबंध संतुलित रखना एक बड़ी चुनौती होगी.
कांग्रेस नेतृत्व को यह तय करना होगा कि वह किस रणनीति पर आगे बढ़ना चाहती है. राहुल गांधी नए सामाजिक आधार तैयार करने की बात कर रहे हैं, जिसमें जातीय जनगणना, संविधान बचाने और ओबीसी को मजबूत करने जैसे मुद्दे शामिल हैं, लेकिन क्या यह रणनीति कांग्रेस को सत्ता दिलाने में मदद करेगी?
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तेलंगाना मॉडल को अपनाएगी कांग्रेस?
रेवंत रेड्डी को पूरी आजादी दी गई, उन्होंने मेहनत की और कांग्रेस को सत्ता में ले आए. सवाल ये है कि क्या राजस्थान में सचिन पायलट या अन्य राज्यों में युवा नेतृत्व को भी यही अवसर मिलेगा?
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राजनीतिक युद्ध के लिए संसाधन जरूरी
चुनावी राजनीति में सिर्फ रणनीति ही नहीं, बल्कि धनबल भी जरूरी है. अगर कांग्रेस नए नेताओं को संसाधन नहीं देगी, तो वे खुलकर काम नहीं कर पाएंगे.
कांग्रेस में बदलाव दिखावा है या सच्चाई?
कांग्रेस ने नए चेहरे तो आगे कर दिए, लेकिन उन्हें कितनी आज़ादी और संसाधन दिए जाएंगे, यह पार्टी के भविष्य को तय करेगा. अगर यह बदलाव सिर्फ दिखावटी हुआ, तो पार्टी को इसका कोई फायदा नहीं मिलेगा.
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