मल्लिकार्जुन खड़गे बनेंगे PM उम्मीदवार तो विपक्ष को मिलेगा दलित वोट? अभी किसका पलड़ा भारी?
19 दिसंबर को हुई इंडिया की बैठक में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे का नाम प्रधानमंत्री पद के लिए प्रस्तावित किया. आम आदमी पार्टी (AAP) प्रमुख और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने ममता के प्रस्ताव का समर्थन कर दिया.
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News Tak: 19 दिसंबर को हुई इंडिया की बैठक में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे का नाम प्रधानमंत्री पद के लिए प्रस्तावित किया. आम आदमी पार्टी (AAP) प्रमुख और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने ममता के प्रस्ताव का समर्थन कर दिया. अब अटकलें लगाई जा रही हैं कि इंडिया गठबंधन में शामिल दलों ने अगर मल्लिकार्जुन खड़गे के नाम का समर्थन कर दिया तो यह बीजेपी के लिए एक बड़ी चुनौती हो सकती है.
विश्लेषक मान रहे हैं कि मल्लिकार्जुन खड़गे का नाम आगे कर विपक्ष ने दलित कार्ड खेला है. अभी तक भारत में कोई भी दलित प्रधानमंत्री नहीं रहा है. प्रधानमंत्री मोदी खुद को हमेशा पिछड़ा बताते आए हैं. विपक्ष को उम्मीद है कि खुद को पिछड़ा बताने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने दलित चेहरे के रूप में मल्लिकार्जुन खड़गे को उतारना उनके लिए फायदेमंद साबित हो सकता है. उन्हें उम्मीद है कि बिखर रहे दलित वोट बैंक को भी इससे साधा जा सकता है.
सिर्फ दलित उम्मीदवार होने से वोट मिलेगा, यह कहना जल्दबाजी- प्रो. संजय कुमार
82 साल के मल्लिकार्जुन खड़गे कर्नाटक से आते हैं और करीब 55 सालों से राजनीति में हैं. अब सवाल यह है कि विपक्षी इंडिया गठबंधन की इस रणनीति से क्या दलितों को साधा जा सकता है? हमने इसे समझने के लिए बात की सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ सोसाइटी एंड पॉलिटिक्स (CSSP) के फेलो और प्रोफेसर संजय कुमार से. वह कहते हैं कि
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“कोई भी चुनाव परसेप्शन पर लड़ा जाता है.” वह यह भी कहते हैं कि “सिर्फ दलित चेहरा सामने रखकर दलितों का वोट ले लिया जाए ऐसा मैं नहीं मानता हूं. वह कहते हैं कि यह यह एक प्रकार से सरलीकरण है. उनके मुताबिक यह तो वही बात हो गई जैसे बीजेपी ने मध्यप्रदेश में यादव मुख्यमंत्री बना दिया. इस उम्मीद में कि बिहार और उत्तर प्रदेश में यादव मतदाताओं का वोट उन्हें मिल जाएगा.”
संजय कुमार कहते हैं कि विपक्षी इंडिया गठबंधन अपनी इस स्ट्रेट्जी को मतदाता के सामने किस तरह से रखता है, यह देखने वाली बात होगी. विपक्ष बीजेपी के हिंदुत्व, राष्ट्रवाद और राम मंदिर जैसे मुद्दों को कैसे काउंटर करेगा यह महत्वपूर्ण है. अगर दलितों में हिंदुत्व की भावना है , राष्ट्रवाद की भावना है तो सिर्फ दलित उम्मीदवार होने के आधार पर विपक्ष को वोट मिल जाएगा, यह कहना बहुत जल्दबाजी होगी.
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दलित वोटों पर एक नजर डालिए
कहते हैं कि केंद्र में सत्ता का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर जाता है. यहां के दलित वोट पर एक नजर डालते हैं. उत्तर प्रदेश में करीब 13 फीसदी जाटव वोटबैंक है. वहीं 11-12 फीसदी गैर जाटव दलित वोटबैंक है.
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2019 के लोकसभा चुनाव के आंकड़ों को देखें तो पता चलता है कि यूपी में कांग्रेस को 1 फीसदी जाटव दलित वोट और 7 फीसदी गैर जाटव दलित वोट मिला था. बीजेपी को 17 फीसदी जाटव वोट और 48 फीसदी गैर जाटव दलित वोट मिला था. महागठबंधन जिसमें समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी शामिल थे उसे जाटव वोट 75 फीसदी और गैर जाटव दलितों का सिर्फ 42 फीसदी वोट मिला था. इससे पता चलता है कि बीजेपी गैर जाटव दलित वोट बैंक में पहले ही सेंध लगा चुकी है. पूरे देश में करीब 25 फीसदी दलित हैं.
प्रो. संजय कहते हैं कि दलितों के बीच में एक उहापोह की स्थिति है. वह एक अनिश्चितता की भावना से गुजर रहा है. संजय कहते हैं कि उत्तर प्रदेश के चुनावों में देखने को मिला था कि गैर जाटव दलितों का बीजेपी को भरपूर समर्थन मिला था.
संजय के मुताबिक अगर इंडिया गठबंधन दलितों को आश्वस्त करने में सफल होता है और उनके आरक्षण, नौकरियों और शिक्षा में उनके हक जैसे मुद्दों को सामने रखता है, इसके साथ दलितों के लिए कुछ विशेष प्रावधान की बात करता है तो कुछ संभावना जरूर बनती है. संजय कुमार यह भी कहते हैं कि इसे लेकर जितना जल्दी निर्णय लिया जाएगा, उतना ही ज्यादा बेहतर होगा. वहीं जितना ज्यादा देरी होगी उतना ही प्रभाव कम होता चला जाएगा.
दलितों के लिए आरक्षित सीटों पर कौन भारी?
2019 के लोकसभा चुनावों में दलितों के लिए आरक्षित 84 लोकसभा सीटों पर कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों को सिर्फ 12 सीटें हासिल हुई थीं. वहीं बीजेपी और उसके सहयोगी दलों को मिलाकर कुल 54 सीटें मिली थीं. दलितों की पार्टी कही जाने वाली बहुजन समाज पार्टी (बसपा) को सिर्फ 2 सीटें ही हासिल हो सकी थीं. अन्य के खाते में 16 सीटें गई थीं. इस लिहाज से देखें तो बीजेपी पहले ही दलित सीटों में अपनी सेंध लगा चुकी है. खाली उत्तर प्रदेश में दलितों के लिए लोकसभा की 17 सीटें आरक्षित हैं जिनमें से 15 बीजेपी के पास और दो बसपा के पास हैं.
तीन राज्यों में सरकार में आने के बाद भी बीजेपी ने जातिगत समीकरणों का पूरा ध्यान रखा है. संजय कहते हैं कि “बीजेपी ने तो अपनी बिसात बिछा दी है. मध्य प्रदेश में ओबीसी सीएम दिया है, छत्तीसगढ़ में आदिवासी सीएम और राजस्थान में ब्राह्मण सीएम दिया है. बीजेपी निश्चित तौर पर आगामी चुनाव में इसका प्रचार करने वाली है. बीजेपी के पास तो एक तीर है जिसके जरिए वह निशाना लगा सकती है. वह कहते हैं कि विपक्ष ने भी खड़गे की उम्मीदवारी की बात कर अपना निशाना लगा जो तीर चला है वह बहुत ही महत्वपूर्ण है.
प्रो. संजय के मुताबिक विपक्ष की स्ट्रैटजी में कोई कमी नहीं है. जितना जल्दी वह इसे स्पष्ट करेंगे उतना ही वह उसका लाभ उठा सकते हैं. वह कहते हैं कि उत्तर प्रदेश में जाटव और गैर जाटव दलित बहुत बड़ा वोट बैंक है. अगर इसको विपक्ष खींच लाता है तो बाजी बिल्कुल पलट जाएगी.
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