एडविना-नेहरू में सरकार क्यों ले रही इंटरेस्ट, कौन थीं एडविना जिनका नाम लेने पर बरपता है हंगामा?

रूपक प्रियदर्शी

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जवाहरलाल नेहरू और एडविना माउंटबेटन को लेकर क्यों मचा बवाल.
जवाहरलाल नेहरू और एडविना माउंटबेटन.
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Why Edwina-Nehru Sparks Debate: लॉर्ड लुइस माउंटबेटन भारत में ब्रिटिश हुकूमत के आखिरी वायसराय थे. माउंटबेटन के प्लान से ही भारत की आजादी की तारीख तय हुई थी. ब्रिटिश सरकार ने शांतिपूर्ण सत्ता हस्तांतरण का टास्क लेकर 20 फरवरी 1947 को माउंटबेटन भारत भेजा था. माउंटबेटन जब तक भारत पहुंचे तब तक भारत की पॉलिटिकल लीडरशिप और ब्रिटिश गवर्नमेंट के संबंध पहले जितने तनावपूर्ण नहीं रह गए थे. बहुत कम वक्त में महात्मा गांधी, पंडित जवाहर लाल नेहरू समेत उस दौर के ज्यादातर नेताओं के साथ माउंटबेटन की अच्छी ट्यूनिंग हो गई थी.

माउंटबेटन 10 महीने तक दिल्ली में रहे और जून 1948 तक स्वतंत्र भारत के पहले गवर्नर-जनरल के रूप में काम किया. भारत को आजादी देकर लौटकर रॉयल नेवी की ड्यूटी करने लगे. 

लॉर्ड माउंटबेटन के साथ भारत आईं थी एडविना. जिनको लेडी माउंटबेटन कहा गया. एडविना माउंटबेटन के साथ आईं. माउंटबेटन के साथ भारत से चली गईं लेकिन अपने पीछे इतनी कहानियां, इतने किस्से, इतना लंबा इतिहास छोड़ गईं कि भारत में आज भी उनके जिक्र भर से बवंडर उठता है. मरने के बाद एडविना ऐसी हथियार हैं, जिसके जरिए बीजेपी पंडित नेहरू और कांग्रेस के चरित्र पर सवाल उठाती है. ऐसी ही एक चर्चा आगे बढ़ी तो हमारे शो की चर्चित चेहरा बनी हैं एडविना यानी लेडी माउंटबेटन.

जब पंडित नेहरू और एडविना भारत में थे, तब भी बहुत चर्चित थे. जब एडविना भारत से चली गईं तब भी चर्चा में रही. जब दोनों इस दुनिया में नहीं हैं, तब भी बहुत चर्चा है.आजादी के वक्त जब भारत के हालात बहुत क्रिटिकल थे तब नेहरू और एडविना की चर्चा होती थी. दोनों की फ्रेंडशिप वाली केमेस्ट्री को लव, अफेयर की नजर से भी देखा गया. बहुत सारे फोटोग्राफ, चिट्ठियों की कहानियों को सबूत की तरह पेश किया गया. बहुत सारी किताबों में रस लेकर दोनों के संबंधों के बारे में लिखा गया. बहुत कुछ पब्लिक डोमेन में है. अचानक भारत सरकार को भी नेहरू-एडविना में दिलचस्पी होने लगी है.  

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राहुल गांधी को पत्र चिट्ठी लिखकर नेहरू-एडविना की चिट्ठियां मांगी

पूर्व प्रधानमंत्रियों को डिडिकेटेड प्रधानमंत्री संग्रहालय और पुस्तकालय PMML को मैनेज करने वाली सोसाइटी पूर्व पीएम की जिंदगी से जुड़े दस्तावेजों को खोज-खोजकर इकट्ठा कर रही है. इसी सिलसिले में सोसाइटी के सदस्य रिजवान कादरी ने सितंबर में सोनिया गांधी को, अब राहुल गांधी को चिट्ठी लिखकर नेहरू-एडविना की चिट्ठियां मांगी. 

सोसाइटी ने मांगी गई चिट्ठी-पत्रियों की जो लिस्ट सोनिया गांधी, राहुल गांधी को भेजी है उसमें अल्बर्ट आइंस्टीन, जयप्रकाश नारायण, बाबू जगजीवन राम, गोविंद बल्लभ पंत जैसे लोगों के भी नाम हैं लेकिन कान खड़े हो गए नेहरू-एडविना को चिट्ठी-पत्र को लेकर जिसे मोदी सरकार पढ़ना और देखना चाहती है. 

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एडविना माउंटबेटन और नेहरू 

ये मामला इतना संवेदनशील रहा है कि 2021 में ब्रिटिश सरकार ने भी डायरियों और चिट्ठियों को सार्वजनिक करने से इनकार कर दिया था. ब्रिटिश लेखक एंड्रू लोनी ने करीब 5 साल की मेहनत की, करीब 3 करोड़ खर्च किये. फिर भी ऐसा कुछ हासिल नहीं कर सके. कोर्ट ने इसकी इजाजत नहीं दी. ब्रिटेन की रॉयल फैमिली भी दस्तावेज सार्वजनिक करने के खिलाफ रही. मामला केवल माउंटबेटन फैमिली का नहीं बल्कि भारत की आजादी से भी जुड़ा माना गया. नेहरू-एडविना के संबंधों को इस नजर से भी देखा गया कि जैसे भारत की आजादी के प्लान संबंधों से प्रभावित रहे हों.

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47 साल के माउंटबेटन भारत आए तो तब भरा-पूरा परिवार साथ आया था. पत्नी एडविना और बेटी पामेला हिक्स भी साथ थीं. तब पामेला हिक्स की उम्र करीब 17 साल थी. पत्नी एडविना उनसे एक साल छोटी थीं. तब नेहरू की उम्र करीब 60 साल थी. कुछ महीने ही भारत में रहा माउंटबेटन परिवार लेकिन जब तक रहे नेहरू और एडविना खबरों और नजरों में रहे. दोनों की नजदीकियों को दोस्‍ती से लेकर एक्सट्रा-मैरिटल अफेयर तक कहा गया. किसी ने किस करने, किसी ने साथ में स्विमिंग करने, किसी ने हाथ पकड़ने के दावे किए-जितनी मुंह उतनी बातें हुईं.

दोनों के बीच दोस्ती थी या फिर और कुछ...

एडविना-नेहरू के बीच जो भी था उससे माउंटबेटन परिवार बेखबर नहीं था. खुद एडविना के पति लॉर्ड माउंटबेटन भी नहीं. नेहरू की बायोग्राफी नेहरू-अ ट्रिस्ट विद डेस्टिनी लिखा गया कि लॉर्ड माउंटबेटन एडविना को लिखी नेहरू की चिट्ठियों को प्रेम पत्र कहा करते थे. माउंटबेटन के नाती लॉर्ड रेम्सी के हवाले से दावा किया गया कि दोनों के बीच अच्छी दोस्ती थी, इससे ज्यादा कुछ नहीं. माउंटबेटन और उनकी बेटी पामेला दोनों ने जानबूझकर एक-दूसरे के साथ समय बिताने का मौका दिया. 

पामेला हिक्स ने भारत में अपने अनुभवों पर डॉटर ऑफ़ एम्पायर-लाइफ एज ए माउंटबेटन, इंडिया रिमेंबर्ड जैसी किताबों में अपनी मां एडविना और नेहरू के संबंधों पर लिखा. जितने लोगों ने नेहरू-एडविना को लेकर दावे किए गए उसमें सबसे विश्वसनीय नाम रहा पामेला हिक्स का जो उस दौर में एडविना-माउंटबेटन के घर में रहीं. जिन्होंने अपनी मां के बारे में लिखा. उन्होंने बीबीसी के इंटरव्यू में भी कई खुलासे किए. 

अकेले मिलने का मौका बहुत कम मिला: पामेला हिक्स

दोनों प्यार में थे, ये तो पामेला हिक्स ने भी माना लेकिन ये भी दावा किया कि दोनों को अकेले में मिलने का बहुत कम मौका मिला क्योंकि वो हमेशा लोगों से घिरे रहते थे. मां को नेहरू से मिलकर शांति मिलती थी. दोनों के बीच आध्यात्मिक और बौद्धिक रिश्ता था. नेहरू की पत्नी बहुत पहले मर चुकी थीं. उनकी बेटी इंदिरा शादीशुदा थीं. उनकी मुलाकात एक बहुत ही आकर्षक महिला से होती है. दोनों के बीच एक तरह की चिंगारी पैदा होती है और दोनों एक-दूसरे के प्यार में डूब जाते हैं. 

पामेला ने वो कहानी भी सुनाई एक दिन ऐसा भी आया जब नेहरू और एडविना एक-दूसरे से दूर हो रहे थे. पामेला हिक्स ने दावा किया कि तब एडविना ने नेहरू की बेटी इंदिरा को अपनी पन्ने की अंगूठी दी थी. जब एडविना जा रही थी तब उनकी आंखों में आंसू थे. भारत से जाने के बाद एडविना भारत नहीं आईं. नेहरू विदेश गए तो लंदन में जरूर मिलते रहे एडविना से. चिट्ठियों से भी संपर्क बना रहा. 1960 में एडविना का निधन हुआ तो उनके पास से नेहरू की कई चिट्ठियां मिली जो एडविना की वसीयत के मुताबिक सूटकेस भरकर माउंटबेटन तक पहुंचाई गईं.  दावा किया गया कि मरने से पहले एडविना नेहरू की चिट्ठियां पढ़ रही थी जो उनके बिस्तर के आसपास बिखरे पाए गए थे.

माउंटबेटन का राॅयल फैमिली से था कनेक्शन

एडविना ब्रिटेन के राजनीतिक परिवार से थी. उनके पिता कंजर्वेटिव पार्टी के सांसद थे. एडविना को सोशलाइट माना जाता था. 1922 में उनकी माउंटबेटन से शादी हुई. शादी में ब्रिटेन की रॉयल फैमिली भी शामिल थी. माउंटबेटन का भी रॉयल फैमिली से कनेक्शन था. उस जमाने में उन्हें ब्रिटेन की अमीर महिलाओं में गिना जाता था. 

नेहरू से एडविना के संबंधों को शक की नजर से इसलिए भी देखा गया क्योंकि एडविना को लेकर बहुत सवाल उठते रहे. अमीर परिवार में जन्मी एडविना के एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर्स के चर्चे रहे. माउंटबेटन इससे अनजान नहीं थे. दावे माउंटबेटन को लेकर भी किए गए. माउंटबेटन-द ऑफिशल बॉयोग्राफी' में माउंटबेटन के हवाले से दावा किया गया कि उन्होंने माना था कि मैंने और एडविना ने अपनी शादीशुदा जिंदगी दूसरों के बिस्‍तरों में गुजारी. भारत की आजादी के करीब 20 साल बाद तक माउंटबेटन जीवित रहे. उन्होंने अपने जीते जी कोई बायोग्राफी नहीं लिखी. किसी को लिखने भी नहीं दी. उन्होंने कभी नेहरू-एडविना को लेकर नहीं लिखा. नेहरू की विरासत संभाल रहे गांधी परिवार भी चुप रहा.

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