UPSC की लेटरल एंट्री पर लग गई रोक, केंद्र सरकार ने लिखी ये चिट्ठी, क्यों लिया गया ये फैसला?
आरक्षण विवाद के बीच केंद्र सरकार ने लेटरल एंट्री भर्ती पर लगाई रोक. केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने UPSC के चेयरमैन को पत्र लिखकर इस बारे में सूचित किया.
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Lateral Entry: मंगलवार को केंद्र सरकार ने UPSC द्वारा जारी किए गए लेटरल एंट्री के विज्ञापन को रोकने का आदेश दिया है. केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने UPSC के चेयरमैन को पत्र लिखकर इस बारे में सूचित किया. पत्र में बताया गया कि यह फैसला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्देश पर लिया गया है.
क्यों रोकी गई लेटरल एंट्री?
केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने पत्र में साफ किया कि सरकार ने यह फैसला लेटरल एंट्री की व्यापक समीक्षा के तहत लिया है. उन्होंने बताया कि ज्यादातर लेटरल एंट्रीज 2014 से पहले की गई थीं और ये एडहॉक स्तर पर की गई थीं. प्रधानमंत्री मोदी का मानना है कि लेटरल एंट्री का सिस्टम संविधान में निहित समानता और सामाजिक न्याय के सिद्धांतों के समान होना चाहिए, खासकर आरक्षण के प्रावधानों के संबंध में.
UPSC का लेटरल एंट्री विज्ञापन
इससे पहले, 17 अगस्त को UPSC ने एक विज्ञापन जारी किया था जिसमें 45 जॉइंट सेक्रेटरी, डिप्टी सेक्रेटरी और डायरेक्टर लेवल की भर्तियां की जानी थीं. इन भर्तियों के लिए UPSC की परीक्षा की आवश्यकता नहीं होती, और न ही आरक्षण के नियमों का पालन किया जाता है. इस प्रकार की भर्तियों को लेकर विपक्ष ने सरकार पर निशाना साधा.
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कांग्रेस का विरोध और विवाद
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने लेटरल एंट्री के जरिए की जा रही भर्तियों का विरोध किया. उन्होंने कहा कि इस प्रक्रिया से SC, ST और OBC वर्ग के आरक्षण छीना जा रहा है. राहुल गांधी ने इसे सामाजिक न्याय के खिलाफ बताया और कहा कि यह कदम संविधान में दिए गए आरक्षण के अधिकारों को खत्म करने की साजिश है.
विवाद बढ़ने पर केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने सफाई देते हुए कहा कि नौकरशाही में लेटरल एंट्री कोई नई बात नहीं है. 1970 के दशक से ही कांग्रेस के शासन में लेटरल एंट्री की जा रही है. उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और मोंटेक सिंह अहलूवालिया का नाम लेते हुए उदाहरण पेश किया.
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अब आगे क्या?
केंद्र सरकार के इस कदम से लेटरल एंट्री को लेकर चल रहे विवाद पर रोक लगने की उम्मीद है. सरकार ने संकेत दिए हैं कि वह लेटरल एंट्री की प्रक्रिया को और पारदर्शी बनाने के लिए आवश्यक कदम उठाएगी. इससे यह सुनिश्चित किया जाएगा कि यह प्रक्रिया संविधान के दायरे में हो. अब यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार आगे इस मामले में क्या कदम उठाती है.
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