मथुरा के शादी ईदगाह के सर्वे पर SC ने लगाई रोक, श्रीकृष्ण जन्मभूमि से जुड़े पूरे विवाद को समझिए

अभिषेक

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Krishna Janmabhoomi Case: मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि और शाही मस्जिद विवाद को लेकर सुप्रीम कोर्ट(SC) ने मंगलवार को एक अहम फैसला सुनाया. सुप्रीम कोर्ट ने शाही ईदगाह मस्जिद की कोर्ट की निगरानी में सर्वेक्षण की इजाजत देने के इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि इस मामले में हाई कोर्ट में सुनवाई जारी रहेगी, लेकिन सर्वे के लिए कोर्ट कमिश्नर की नियुक्ति पर अंतरिम रोक रहेगी. इस विवाद में हिंदू पक्ष का दावा है कि मस्जिद परिसर में ऐसी निशानियां हैं, जिनसे पता चलता है कि यहां पहले मंदिर था.

सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में हिंदू पक्ष पर सवाल उठाते हुए कहा है कि, ‘आपकी अर्जी बहुत अस्पष्ट है. आपको स्पष्ट रूप से बताना होगा कि आप क्या चाहते हैं.’ सवाल यह है कि आखिर मथुरा में चल रहा यह विवाद क्या है? 2019 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अयोध्या में राम मंदिर बन रहा है. अयोध्या में जब राम मंदिर के लिए आंदोलन चल रहा था, तो उस दौरान उछला यह नारा यदाकदा आज भी चर्चा में आ जाता है कि ‘अयोध्या तो बस झांकी है, काशी मथुरा बाकी है’. आइए इस पूरे विवाद को समझते हैं.

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जानिए क्या है श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह विवाद

श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह विवाद मथुरा में 13.37 एकड़ भूमि को लेकर है. आपको बता दें कि इस जमीन में 10.9 एकड़ जमीन श्रीकृष्ण जन्मस्थान के पास है और बाकी का हिस्सा शाही ईदगाह मस्जिद के अंतर्गत आता है. असली विवाद इसी को लेकर है. शाही ईदगाह के पास जो हिस्सा है, हिंदू पक्ष इसी के श्रीकृष्ण जन्मस्थान होने का दावा करता है.

मुगल बादशाह औरंगजेब से जुड़ता है विवाद

इस पूरे विवाद की शुरुआत मुग़ल शासक औरंगजेब के समय से हुई मानी जाती है. कई इतिहासकारों का मानना है कि औरंगजेब ने मथुरा के श्रीकृष्ण मंदिर को तोड़ा और यहां मस्जिद बनवा दी. ऐसी ही एक इतिहासकार हुए हैं जदुनाथ सरकार. इन्होंने हिस्ट्री ऑफ औरंगजेब किताब को पांच वॉल्यूम में लिखा है. इस किताब के वॉल्यूम 3 में मथुरा विवाद की कहानी छिपी है. जदुनाथ सरकार लिखते हैं कि हिंदुस्तान के तख्त पर बैठने के 12 साल बाद यानी 9 अप्रैल 1669 को औरंगजेब एक आदेश जारी करते हैं. इस आदेश में लिखा होता है कि काफिरों (मूर्ति पूजा करने वाले) के सारे स्कूल और मंदिर ध्वस्त कर दिए जाएं और उनके धार्मिक शिक्षाओं और क्रियाकलापों को बंद किया जाए. किताब में आगे लिखा गया है कि औरंगजेब की इस ध्वंसकारी प्रवृत्ति का शिकार बना सोमनाथ में बना दूसरा मंदिर जिसे गजनी के ध्वंस के बाद भीमदेव ने बनवाया था, बनारस का विश्वनाथ मंदिर और मथुरा का मंदिर केशव राय.

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जदुनाथ सरकार लिखते हैं कि पवित्र शहर मथुरा, जिसे कृष्ण की जन्मभूमि के नाम से जाना जाता था, हमेशा से मुस्लिम शासकों के निशाने पर रही. इतिहासकार के मुताबिक मथुरा का मंदिर उस समय वंडर ऑफ एज यानी अपने समय का चमत्कार माना जाता था. बुंदेला राजा ने तब 33 लाख रुपयों में इसे बनवाया था. इतिहासकारों के मुताबिक 1770 में मराठाओं ने गोवर्धन के युद्ध में मुगलों को शिकस्त दी. इसके बाद मंदिर का पुनर्निमाण कराया गया. बाद में अंग्रेजों के शासनकाल में 1815 में यहां की 13.37 एकड़ जमीन की नीलामी कराई गई. इसे बनारस के राजा पटनीमल ने खरीदा.

मथुरा विवाद में दाखिल याचिका के मुताबिक 1944 में जुगल किशोर बिरला ने यह जमीन राजा पटनीमल के वंशजों से खरीद ली. 1951 में श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट बनाया गया और तय किया गया कि मंदिर का दोबारा निर्माण होगा. यह निर्माण कार्य 1982 में जाकर पूरा हुआ. ट्रस्ट ने 1964 में पूरी जमीन के नियंत्रण के लिए सिविल केस दाखिल किया, लेकिन 1968 में मुस्लिम पक्ष के साथ समझौता हो गया. हिंदू पक्ष ने इस समझौते पर भी सवाल उठाए हैं. इसके बाद अब यह मामला फिर से कोर्ट के सामने है.

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