मैरिटल रेप पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई: पत्नी को 'ना' कहने का अधिकार, केंद्र- असहमति साबित कर पाना मुश्किल!

बृजेश उपाध्याय

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तस्वीर: इंडिया टुडे.
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न्यूज़ हाइलाइट्स

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केंद्र का तर्क- यह साबित करना मुश्किल और चुनौतीपूर्ण होगा कि सहमति थी या नहीं.

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मामले में अगली सुनवाई 22 अक्टूबर को होगी.

सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को मैरिटल रेप को अपराध घोषित करने की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई हुई. इसमें याचिकाकर्ताओं के वकीलों ने भारतीय न्याय संहिता की धारा 63 के अपवाद 2 पर सवाल उठाए. अपवाद 2 पति को पत्नी के मामले में रेप के आरोप से बचाता है.  मामले पर बहस के दौरान इस बात पर जोर दिया गया कि पत्नी को भी 'ना' कहने का अधिकार है. ये भी कहा गया कि भारत में वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित करने की मांग करने वाली याचिका 'लोग VS पितृसत्ता' है.

याचिकाओं पर गुरुवार यानी 17 अक्तूबर को करीब 3 घंटे  सुनवाई चली. CJI डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच में मामले की सुनवाई हुई. दो अलग-अलग याचिकाकर्ताओं के वकील एडवोकेट कॉलिन गोंजाल्विस और एडवोकेट करुणा नंदी ने अपनी दलीलें रखीं. इस दौरान जजों ने कई सवाल किए. 

क्या मैरिटल रेप से विवाह संस्था अस्थिर हो जाएगी?

भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ ने कहा- 'आप (याचिकाकर्ता) इस पर क्या कहना चाहते हैं?  विवाह के बाद बिना सहमति के संभोग को अपराध घोषित करने से वैवाहिक संस्थाएं अस्थिर हो जाएंगी? केंद्र सरकार ने अपने जवाब में यही कहा है.'

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इस सवाल का जवाब देते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता करुणा नंदी ने कहा- 'वर्तमान में 'ना' कहने का अधिकार स्वतंत्र और आनंदपूर्वक 'हां' कहने के अधिकार के बराबर है. बलात्कार पहले से ही एक अपराध है और केवल पति को इसके दायरे से बाहर रखा गया है. इस अपवाद को असंवैधानिक घोषित करने से अलग अपराध नहीं बन सकता है.'

याचिकाकर्ता अखिल भारतीय लोकतांत्रिक महिला संघ (AIDWA) की ओर से पेश एडवोकेट नंदी ने निजता के अधिकार पर शीर्ष अदालत के फैसले का हवाला दिया और कहा कि निजता का इस्तेमाल महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार करने के लिए नहीं किया जा सकता है. 

संभोग से इनकार पर पति तलाक की अर्जी दे सकता है?

जस्टिस पारदीवाला ने कहा- 'पति (संभोग की) मांग करता है और पत्नी मना कर देती है. जब पति उससे जबरदस्ती करता है तो ये गलत है. जब वह उसे चोट पहुंचाता है, तो यह साधारण या गंभीर चोट हो सकती है. इसपर धारा 323, 325 और 352 लागू होती है. इसपर आपराधिक धमकी भी लागू होती है. यह सब इसलिए होता है ताकि पत्नी सेक्स की मांग की स्वीकार कर ले. फिर वह स्वीकार कर लेती है तो इसे बलात्कार नहीं माना जाता है. तो, आपका तर्क यह है कि अगर ये सभी कृत्य अपराध है, तो वह अंतिम भाग (जबरदस्ती संभोग), वो भी अपराध है? क्या आप यही कह रहे हैं?

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जस्टिस पारदीवाला ने आगे पूछा कि अगर पत्नी सेक्स से इनकार करती है, तो क्या पति को तलाक के लिए अर्जी देनी चाहिए. एडवोकेट नंदी ने जवाब दिया, 'पति अगले दिन तक इंतजार कर सकता है, उससे बात कर सकता है, या शायद अधिक आकर्षक (हैंडसम) होकर उसके सामने आ सकता है. वह पूछ सकता है, 'क्या आपको (पत्नी को) लगता है कि आप (पत्नी) बाद में अपना मन बदल सकती हैं?'

महिला मना करती है तो उसका सम्मान किया जाना चाहिए

वरिष्ठ अधिवक्ता कॉलिन गोंजाल्विस ने उच्च न्यायालय के उन फैसलों पर प्रकाश डाला, जिनमें कहा गया था कि पतियों पर बलात्कार का आरोप नहीं लगाया जा सकता. उन्होंने कहा- 'ये इंग्लैंड और वेल्स, दक्षिण अफ्रीका, अमेरिका, आयरलैंड और नेपाल की अदालतों के फैसलों के ये विपरीत है. नेपाल की सर्वोच्च अदालत ने माना है कि वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित करने से विवाह संस्था मजबूत होती है. अगर कोई महिला मना करती है, तो उसका सम्मान किया जाना चाहिए.' 

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हालांकि, केंद्र सरकार की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने याचिकाओं का विरोध करते हुए कहा- "हम यहां विश्व भ्रमण पर हैं, जबकि भारतीय संदर्भ अलग है." शीर्ष अदालत ने कहा कि वह पहले अपवाद वाले खंड की संवैधानिक वैधता की जांच करेगी और फिर इस बात पर सुनवाई करेगी कि नए आपराधिक कानून भारतीय न्याय संहिता में वैवाहिक बलात्कार अपवाद को बरकरार रखा जाना चाहिए या नहीं. मामले में अगली सुनवाई 22 अक्टूबर को जारी रहेगी. 

क्या है कानून जिसे बदलने की हो रही मांग

भारतीय न्याय संहिता की धारा 63 के अपवाद 2 के मुताबिक मैरिटेल रेप को अपराध की श्रेणी में नहीं रखा गया है. यानी पति-पत्नी के बीच सहमति या गैर सहमति से संबंध बनते हैं तो वो रेप नहीं माना जाता है. 

इसे हटाने के तीन तर्क

मैरिटल रेप को अपराध नहीं मानना विवाहित और अविवाहित महिलाओं के बीच अंतर पैदा करता है. कानून में यह प्रावधान संविधान लागू होने से पहले जोड़ा गया था. अब इसकी कोई जरूरत नहीं है. यह समानता, गरिमापूर्ण जीवन और सेक्सुअल-पर्सनल जीवन में स्वतंत्रता के अधिकारों के खिलाफ है. 

मामले पर केंद्र सरकार का ये है रुख

मामले पर केंद्र सरकार ने अपने जवाब में कहा है कि संवैधानिक वैधता के आधार पर भारतीय न्याय संहिता की धारा 63 के अपवाद 2 को खत्म करने से विवाह संस्था पर दूरगामी प्रभाव पड़ेगा. इसके लिए सख्त कानूनी दृष्टिकोण के बजाय व्यापक दृष्टिकोण की जरूरत है. केंद्र ने जोर देकर कहा कि जब तक विधायिका द्वारा अलग से उपयुक्त रूप से तैयार दंडात्मक उपाय प्रदान नहीं किया जाता है, तब तक इसमें हस्तक्षेप नहीं किया जाना चाहिए. 

 ये कैसे साबित होगा कि सहमति से संभोग था या नहीं?

केंद्र के हलफनामे में कहा गया है, "तेजी से बढ़ते और लगातार बदलते सामाजिक और पारिवारिक ढांचे में संशोधित प्रावधानों के दुरूपयोग से भी इनकार नहीं किया जा सकता है. यह साबित करना मुश्किल और चुनौतीपूर्ण होगा कि सहमति थी या नहीं. केंद्र ने कहा है कि वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित करने से वैवाहिक संबंध पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है और विवाह संस्था में गंभीर गड़बड़ी हो सकती है.

इनपुट: कनु शारदा

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