मंदिर ढूंढने के लिए अब किसी मस्जिद का सर्वे नहीं...सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ने दिया ऑर्डर

रूपक प्रियदर्शी

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मंदिर-मस्जिद की  राजनीति करते हुए बीजेपी सत्ता में आई तो प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट यानी पूजा स्थल अधिनियम के खिलाफ मुहिम शुरू हुई. सरकार ने अपनी ओर से कुछ नहीं किया, लेकिन सरकार की साइड वालों ने कानून में मीनमेख निकालकर सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज कर दिया. याचिकाएं लगाई कि कानून खत्म होना चाहिए. लटकते-लटकते अब जाकर सुप्रीम कोर्ट में प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट को लेकर लगी याचिकाओं पर सुनवाई हुई तो बड़ा खेल हो गया. 

सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच के सामने आई प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट से जुड़ी याचिकाएं. सुनवाई हुई तो सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस संजीव खन्ना की बेंच ने मस्जिद-मंदिर करने वालों को बड़ा झटका दे दिया. सुप्रीम कोर्ट से आर्डर हुआ कि धार्मिक स्थलों को लेकर कोई भी नया मुकदमा दर्ज नहीं होगा. यानी मस्जिद के नीचे मंदिर ढूंढने के लिए कोई नया केस कोर्ट में नहीं आएगा. निचली अदालतों को साफ मनाही हो गई है कि सर्वे कराने जैसा कोई ऐसा आदेश नहीं देंगे. मतलब मस्जिद के नीचे मंदिर ढूंढने के लिए कोई सर्वे नहीं होगा. जिन मामलों में केस का फैसला नहीं हुआ है उनकी सुनवाई जारी रह सकती है. 

सुप्रीम कोर्ट की बड़ी बेंच के ऑर्डर से प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट में तो कोई बदलाव नहीं हुआ. बल्कि सुप्रीम कोर्ट से मंदिर-मस्जिद की राजनीति करने वालों की हवा टाइट हो गई. प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट वैसा ही रहेगा या बदला जाएगा या खत्म होगा, इस पर सुप्रीम कोर्ट का कोई जजमेंट नहीं आया है. अभी तो इसकी सुनवाई भी शुरू नहीं हुई है. 

पूर्व चीफ जस्टिस यूयू ललित ने सरकार का पक्ष मांगा था

2022 में चीफ जस्टिस रहते हुए यूयू ललित ने मोदी सरकार से प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट पर अपना पक्ष मांगा था. यूयू ललित रिटायर हो गए. चीफ चस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ भी रिटायर हो गए. तीसरे चीफ जस्टिस संजीव खन्ना भी आ गए. तब भी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को अपना स्टैंड नहीं बताया. सरकार या तो विवाद में नहीं पड़ना चाहती या चाहती है कि मस्जिद के नीचे मंदिर ढूंढने का वाला काम कोर्ट के रास्ते से ऑर्गनाइज सिस्टम की तरह चल रहे. सरकार की टाल मटोल अब नहीं चलेगी. 

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केंद्र सरकार 1 महीने में बताए अपना स्टैंड-SC 

चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ने आदेश दिया है कि केंद्र सरकार को 4 हफ्ते यानी एक महीने में अपना स्टैंड बताना पड़ेगा. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सरकार हलफनामा दाखिल करेगी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब तक केंद्र का जवाब दाखिल नहीं होता तब तक सुनवाई पूरी तरह संभव नहीं है. तब तक किसी भी तरह का नया मुकदमे भी दर्ज नहीं होगा. 

याचिकाकर्ताओं ने अलग-अलग अदालतों में चल रहे 10 मुकदमों पर रोक की मांग की थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने रोक नहीं लगाई. ऐसा मुकदमा मथुरा को लेकर भी चल रहा है. प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट के पक्ष और विपक्ष में याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में 4 साल से पेंडिंग चल रही हैं. याचिकाएं लगी कि प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट रद्द की जाए. एक याचिका बीजेपी नेता अश्विनी उपाध्याय की है जिसमें उन्होंने वर्शिप एक्ट की धाराएं 2, 3 और 4 को रद्द करने की मांग की है. तर्क ये ये धाराएं किसी व्यक्ति या धार्मिक समूह के पूजा स्थल पर दोबारा दावा करने के न्यायिक समाधान के अधिकार छीनते हैं. 

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सुनवाई की नौबत आने से पहले मंदिर-मस्जिद को लेकर कई कांड हो चुके थे. काशी, मथुरा, धार, संभल होते हुए अजमेर शरीफ तक ये मुहिम चल पड़ी थी कि मस्जिद के नीचे मंदिर होने के सबूत तलाशे जाने चाहिए. हद तब हो गई जब निचली अदालत से फरमान निकला कि संभल की जामा मस्जिद के नीचे मंदिर ढूंढा जाएगा. सर्वे शुरू हुआ तो हिंसा में चार लोगों की मौत हो गई.  

इसी के बैक टू बैक अजमेर की कोर्ट अजमेर शरीफ दरगाह के नीचे मंदिर ढूंढने के लिए सर्वे की मांग पर विचार के लिए राजी हो गया. मस्जिद के नीचे मंदिर ढूंढने के खिलाफ हल्ला तो मच ही रहा था, लेकिन संभल के बाद अजमेर शरीफ के मामले ने आग में घी का काम किया. इसी बीच सुप्रीम कोर्ट ने प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट से जुड़ी याचिकाएं सुनने की तारीख दे दी. नया ऑर्डर भी आ गया.

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प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट से अछूता था अयोध्या

अयोध्या प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट से अछूता था, लेकिन 2022 में काशी की ज्ञानवापी मस्जिद में मंदिर ढूंढने का केस जब चंद्रचूड़ की बेंच के सामने आया तो भानुमती का पिटारा खुल गया. सर्वे से काशी में मंदिर के निशान भी मिल गए और ये रास्ता भी खुल गया कि मस्जिद में मंदिर की तलाश की जा सकती है. संभल कांड के बाद चंद्रचूड़ का वही जजमेंट निशाने पर आ गया. पीवी नरसिम्हा राव जब देश के प्रधानमंत्री बने तब मनमोहन सिंह वित्त मंत्री बने थे. दोनों की जोड़ी ने देश की इकोनॉमी का कायापलट किया था. इस बात की चर्चा तो 30-32 सालों में खूब हुई. इसकी चर्चा कम हुई कि प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट भी पीवी नरसिम्हा राव की ही सोच थी. 1991 में नरसिम्हा राव की सरकार बनी. उसी साल संसद में बिल पेश हुआ जिससे धार्मिक स्थलों के लिए कानून बना था. 

कानून ये बना कि 15 अगस्त 1947 को जिस धार्मिक स्थल की स्थिति जैसी थी, वैसी ही रहेगी. बस अयोध्या के राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद को अलग रखा गया. नरसिम्हा राव की सरकार के समय बना कानून इतना परफेक्ट निकला कि जिसे बदलने के बारे में अगले 6 प्रधानमंत्रियों की अलग-अलग पॉलिटिकल लाइन वाली सरकारें बदलने की सोच नहीं पाई. 

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