जब रूस ने पूर्व PM नेहरू को तोहफे में दी गाय, PAK युद्ध के दौरान भेजी नौसेनिक मदद

News Tak Desk

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PM Modi Visit Russia: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दो दिवसीय रूस दौरे पर हैं. उनके इस दौरे की काफी चर्चा हो रही है. उस दौरे के साथ रूस भी भारतीय मीडिया और सोशल मीडिया पर छाया हुआ है. ऐसे में रूस और भारत के बीच मजबूत रिश्तों की कई कहानियां सामने आ रही हैं. ऐसी ही एक कहानी है भारत के पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और एक गाय से जुड़ी जिस कहानी के बारे में काफी कम लोगों को ही जानकारी होगी.

नेहरू को तोहफे में मिली गाय

भारत में रूसी दूतावास की वेबसाइट के अनुसार, देश के पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने जब रूस का दूसरी बार दौरा किया था उन्हें सोवियत सरकार ने एक गाय तोहफे में दी थी. एक आर्काइव फोटो में नेहरू तत्कालीन सोवियत राजदूत इवान बेनेडिक्टोव और उनकी पत्नी के बगल में खड़े नजर आ रहे हैं. नेहरू गाय को कुछ भूसा खिलाते हुए दिखाई दे रहे हैं.

सोवियत सरकार की ओर से ये भेंट काफी उल्लेखनीय इसलिए भी मानी गई क्योंकि उस समय भारत अकाल और खाद्य असुरक्षा से तबाह होकर भोजन और दूध कि किल्लत से जूझ रहा था. उस समय एक बात और गौर करने वाली थी कि तत्कालीन सोवियत राजदूत इवान बेनेडिक्टोव भारत में तैनात होने से पहले दूसरे विश्व युद्ध के दौरान कृषि के लिए पीपुल्स कमिसार थे और उन्होंने 19 वर्षों तक USSR के कृषि मंत्री के रूप में कार्य किया था.

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सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार, भारत में दूध की कमी इतनी थी कि साल 1950 की शुरुआत में हर साल 55,000 टन दूध पाउडर का आयात करना पड़ता था. एक समय पर ऐसा किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि दूध की कमी से जूझ रहा भारत 1998 में अमेरिका को पछाड़कर दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक बन जाएगा और 2018 में वैश्विक दूध उत्पादन का 22% का भारी उत्पादन करेगा. यह वर्गीस कुरियन और उनका ऑपरेशन फ्लड ही था जो श्वेत क्रांति में तब्दील हुआ जो परिवर्तन लाया. ऑपरेशन फ्लड 1970 में शुरू किया गया था.

1971 में भारत-पाक युद्ध और सोवियत समर्थन

ऑपरेशन फ्लड के ठीक एक साल बाद 1971 में पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में सेना की हत्या और बलात्कार को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध छिड़ गया. प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने रूस के साथ जो मैत्री संधि की थी और उसकी समय पर मदद से दोनों देशों के बीच दोस्ती मजबूत हुई.

9 अगस्त 1971 को भारत और सोवियत संघ ने शांति, मित्रता और सहयोग की संधि पर हस्ताक्षर किए. ये एक ऐतिहासिक समझौता साबित हुआ. संधि ने यह सुनिश्चित किया कि सोवियत संघ भारत को सैन्य और राजनीतिक सहायता प्रदान करेगा, जो कि यूएसए का मुकाबला करने में काफी प्रभावी साबित होगा, जो उस समय पाकिस्तान का समर्थन कर रहा था.

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सोवियत से मिली मदद

बांग्लादेश स्वतंत्र होना चाहता था. इस दौरान यूएसए ने भारत के खिलाफ चीन को सैन्य अभियान शुरू करने के लिए आग्रह करने लगा. व्हाइट हाउस के अनुसार यूएसए ने इस काम के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार हेनरी किसिंजर को चुना.

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दुनिया के सबसे बड़े परमाणु संचालित एयरक्राफ्ट कैरियर ने दिसंबर 1971 में बंगाल की खाड़ी में प्रवेश किया. एयरक्राफ्ट कैरियर एचएमएस ईगल के नेतृत्व में यूके की नौसेना ने भी आगे बढ़ना शुरू कर दिया. भारत अपने पूर्वी तटों की ओर एक बड़े खतरे का सामना कर रहा था.

इस दौरान भारत ने सोवियत संघ से मदद मांगी और सोवियत संघ ने तुरंत प्रतिक्रिया देते हुए अमेरिकी और ब्रिटिश नौसैनिकों की उपस्थिति का मुकाबला करने के लिए एडमिरल व्लादिमीर क्रुग्लाकोव के नेतृत्व में रूस के सुदूर-पूर्व में व्लादिवोस्तोक से एक परमाणु-सशस्त्र फ़्लोटिला (एक छोटा बेड़ा) तैनात कर दिया. रूसी बेड़े में दो कार्य समूह शामिल थे. जिनमें परमाणु-सशस्त्र जहाज, परमाणु पनडुब्बियां, क्रूजर और विध्वंसक शामिल थे.

इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के अनुसार ब्रिटिश कमांडर ने अमेरिकी समकक्ष से कहा, "सर, हमें बहुत देर हो चुकी है. यहां रूसी परमाणु काफी सारी पनडुब्बियां और युद्धपोत हैं." समय पर रूसी कदम ने अमेरिकी और ब्रिटिश सेनाओं को भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध में आगे हस्तक्षेप करने से प्रभावी ढंग से रोक दिया. चेलानी ने इसपर कहा कि भारत-यूएसएसआर समझौते के सुरक्षा प्रावधानों ने चीन को भारत के खिलाफ मोर्चा खोलने से रोकने में मदद की.

काफी हदतक बदल गई है तस्वीर

1971 में कमजोर भारत को अलग-थलग करने के अमेरिकी कोशिशों के खिलाफ यूएसएसआर द्वारा सहायता दिए जाने के लगभग पांच दशक बाद काफी हद तक तस्वीर बदल गई है. भारत अब रूस की तुलना में अमेरिका के अधिक करीब है. वहीं रूस और चीन के बीच अच्छी दोस्ती है. हालाँकि अब भारत पश्चिमी दबाव को नज़रअंदाज़ कर रूस से कच्चा तेल खरीद रहा है, जिससे भारत को आर्थिक जीवनरेखा मिल रही है. रूस अभी भी भारत को सबसे बड़े हथियार देने वाले देशों में से एक बना हुआ है. प्रधानमंत्री मोदी की मॉस्को की महत्वपूर्ण यात्रा से स्पष्ट रूप से पता चलता है कि भारत कैसे रूस को अपना करीबी भागीदार मानता है और पश्चिमी देशों द्वारा उसे अलग-थलग करने की कोशिशों के बीच उस तक पहुंच रहा है.

रिपोर्ट- इंडिया टुडे

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