राहुल गांधी ने क्यों छोड़ दी अमेठी की सीट? इनसाइड स्टोरी तो अब आई सामने
राशिद किदवई लिखते हैं कि, संयोग से 2019 में यह मान लिया गया था कि, राहुल अमेठी और वायनाड से जीतेंगे और प्रियंका गांधी के लिए अमेठी छोड़ देंगे. हालांकि चुनाव के नतीजे इसके उलट आ गए.
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Congress News: लंबे इंतजार के बाद आखिरकार आज जाकर अमेठी और रायबरेली को लेकर बना हुआ सस्पेंस खत्म हो गया. राहुल गांधी ने रायबरेली और किशोरी लाल शर्मा ने अमेठी से नामांकन कर दिया. अमेठी से राहुल को लेकर चल रही चर्चाओं के बीच अंत में आखिरकार उन्होंने रायबरेली से पर्चा भरा. अब इसी बात को लेकर जमकर सियासत देखने को मिल रही है. कांग्रेस तो इसे अपनी स्ट्रैटिजी बताई है लेकिन बीजेपी, पीएम मोदी और अमेठी से उम्मीदवार स्मृति ईरानी ने राहुल और कांग्रेस को जमकर घेरा है. इन्हीं सब बातों पर सीनियर पत्रकार और राजनैतिक विश्लेषक राशिद किदवई ने इंडिया टुडे में इसपर अपना ओपिनियन लेख लिखा हैं. आइए आपको बताते हैं राहुल के अमेठी छोड़ रायबरेली जाने पर राशिद किदवई का क्या है विचार.
अखिलेश की बात रखने के लिए लड़े राहुल
राजनैतिक विश्लेषक राशिद किदवई लिखते है कि, उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को 16 लोकसभा सीटें देने की पेशकश करते समय समाजवादी पार्टी के सुप्रीमो अखिलेश यादव ने एक शर्त राखी थी. शर्त ये थी कि, गांधी भाई-बहनों में से किसी एक को उत्तर प्रदेश से चुनाव लड़ना चाहिए. इसके बाद गांधी परिवार के पास मैदान में उतरने के अलावा कोई विकल्प नहीं था. सहयोगी अखिलेश यादव के इस दबाव के बाद ही राहुल गांधी ने यूपी से चुनाव लड़ने का फैसला किया.
हालांकि इसके बाद कांग्रेस पार्टी ने अपने आंतरिक सर्वेक्षणकर्ताओं से अमेठी और रायबरेली में 16 सर्वे कराए. इन सभी सर्वेक्षणों में नेहरू-गांधी परिवार के सदस्य को मैदान में उतारने पर रायबरेली में पार्टी की जीत की भविष्यवाणी की गई. वैसे अमेठी से मिले फीडबैक में भी सफलता की 50 फीसदी संभावना बताई गई थी.
कौन हैं किशोरी लाल शर्मा?
चुनाव पूर्व हुए सर्वेक्षण के निष्कर्षों को देखते हुए लंबे समय तक अमेठी-रायबरेली-सुल्तानपुर के पार्टी के प्रबंधक रहे किशोरी लाल शर्मा को अमेठी से अपना नामांकन दाखिल करने के लिए कहा गया. लुधियाना के मूल निवासी शर्मा 1983 से गांधी परिवार से जुड़े हुए हैं, जब राजीव गांधी ने अपने भाई संजय गांधी की मृत्यु के बाद अमेठी का प्रतिनिधित्व किया था. दिलचस्प बात यह है कि 2019 में अमेठी में राहुल गांधी की हार के लिए शर्मा को काफी हद तक जिम्मेदार ठहराया गया था. हालांकि सोनिया और प्रियंका गांधी ने की वजह से उनपर कोई आंच नहीं आई.
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दो दिन पहले जब शर्मा को पार्टी के मुख्यालय 10 जनपथ पर बुलाया गया और 'तैयार होने' के लिए कहा गया, तो वह अभिभूत हो गए और कथित तौर पर एक बात की गुहार लगाई. गुहार ये थी कि, गांधी परिवार उनका समर्थन करेगा और उनके लिए प्रचार करेगा. कथित तौर पर अमेठी में तीन सार्वजनिक रैलियों का वादा किया गया है. अमेठी के उम्मीदवार को लगता है कि प्रियंका, राहुल और सोनिया गांधी की मौजूदगी से उन्हें कांग्रेस के गढ़ में लड़ाई लड़ने में मदद मिलेगी.
प्रियंका गांधी पर क्या है पार्टी का रुख?
प्रियंका गांधी के चुनावी मैदान से गायब रहने को लेकर काफी सवाल पूछे जा रहे हैं. इस संदर्भ में एक प्रमुख बात ये है कि, राज्यों और क्षेत्रों में एक स्टार प्रचारक के रूप में उनकी लोकप्रिय हैं. लेकिन इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि, प्रियंका ने राहुल गांधी को 'बराबरों में प्रथम' और 2024 के लोकसभा चुनावों के केंद्र में होने पर जोर दिया. यदि राहुल वायनाड और रायबरेली दोनों जीतते हैं, तो प्रियंका बाद में उपचुनाव में कदम रख सकती हैं.
राशिद किदवई कहते हैं कि, 'किसी भी अन्य क्षेत्र की तरह, राजनीति भी एक जटिल क्षेत्र है, जिसमें काम करने के लिए बहुत सारी असंभवताएं हैं, जिसे किसी स्क्रिप्ट से निर्देशित नहीं किया जा सकता है.' हां लेकिन इन सभी बातों की पुष्टि के लिए इटली के ओरबासानो की सोनिया के जीवन पर करीब से नजर डालने की जरूरत है. वो कहते है कि, संयोग से 2019 में यह मान लिया गया था कि, राहुल अमेठी और वायनाड से जीतेंगे और प्रियंका गांधी के लिए अमेठी छोड़ देंगे. हालांकि चुनाव के नतीजे इसके उलट आ गए.
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