2024 के चुनावों के लिए आया बड़ा सर्वे, BJP, कांग्रेस को दे रहा इतनी सीट, इसके मायने समझिए

देवराज गौर

17 Dec 2023 (अपडेटेड: Dec 17 2023 7:11 AM)

पोल के मुताबिक 2024 के लोकसभा चुनावों में NDA को 323 सीटें मिल सकती हैं. INDIA को 163 सीटें मिलने का अनुमान है. NDA को 44 फीसदी वोट मिल सकता है. INDIA को 39 फीसदी वोट मिलने का अनुमान है.

Narendra Modi Rahul Gandhi

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Lok Sabha Election 2024: पांच राज्यों में चुनावों के बाद और लोकसभा चुनावों से पहले टाइम्स नाउ ईटीजी का पहला ओपिनियन पोल सर्वे आया है. इसमें बताया गया है कि भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के नेतृत्व वाले एनडीए और कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी दलों के इंडिया गठबंधन को कितनी सीटें मिलने वाली हैं. हिंदी पट्टी के तीनों राज्यो में चुनावी जीत के बाद बीजेपी के हौसले बुलंद है. दो राज्यों के गंवाने के बाद कांग्रेस यह चिंता कर रही है कि उसे लोकसभा के लिए क्या स्ट्रेट्जी अपनानी चाहिए.

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पोल के मुताबिक 2024 के लोकसभा चुनावों में NDA को 323 सीटें मिल सकती हैं. INDIA को 163 सीटें मिलने का अनुमान है. NDA को 44 फीसदी वोट मिल सकता है. INDIA को 39 फीसदी वोट मिलने का अनुमान है. अन्य के खाते में 17 फीसदी वोट के साथ 57 सीटें जा सकती हैं.

इंडिया और एनडीए के बीच में 5 फीसदी का वोट डिफरेंस दिखा रहा है. लेकिन, सीटों के नजरिये से देखें तो बहुत बड़ा गैप है. न्यूज Tak की साप्ताहिक चर्चा में इसी पर बात हुई.

इस चर्चा में शामिल हुए वरिष्ठ पत्रकार राशिद किदवई ने कहा, ‘देखिए इससे पहले जो सी-वोटर ने सर्वे किया था, तो उसमें वोट शेयर करीब 43 फीसदी यानी दोनों का बराबर था. ये 5 फीसदी का जो वोट डिफरेंस है वह विपक्ष के लिए बड़ा घातक है. यानी इतने से करीब 100 सीटों का फासला हो सकता है. राशिद कहते हैं कि अगर टाइम्स नाउ का यह सर्वे सही निकलता है तो इंडिया और एनडीए के बीच कोई मुकाबला ही नहीं होगा.’

इस पर Tak क्लस्टर के मैनेजिंग एडिटर मिलिंद खांडेकर कहते हैं कि 2009 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को जितने वोट मिले थे, उतने ही लगभग 10 साल बाद यानी 2019 में मिले थे. बीजेपी जो 2009 के चुनावों में कांग्रेस से कम थी वह 2019 के चुनावों में कांग्रेस के वोट से तीन गुना ज्यादा बढ़ गई. इन सालों में वोटरों की संख्या लगभग 25-30 करोड़ बढ़ चुकी है. इसका ज्यादातर हिस्सा BJP को गया और कांग्रेस जो है वह जहां के तहां रह गई. कांग्रेस के लिए इस समस्या को एड्रेस करना बहुत जरूरी है.

राशिद किदवई कहते हैं कि कांग्रेस की यही सबसे बड़ी समस्या है कि इसका जनाधार क्यों नहीं बढ़ पा रहा है. कांग्रेस तीन राज्यों में हारने के बाद जवाबदेही और समीक्षा करने की भी स्थित में नहीं है. वहीं बीजेपी ने प्रो इन्कंबेंसी और एंटी इन्कंबेंसी में जीत दर्ज करके अपनी धाक जमा ली है. विपक्ष को लेकर राशिद कहते हैं कि उनमें डर का माहौल हो गया है. वह अपनी जीत को लेकर आश्वस्त नहीं है.

राशिद आगे कहते हैं कि चेहरे का न होना इसका सबसे बड़ा कारण है. विपक्ष प्रधानमंत्री मोदी पर हमला करे तो नुकसान और न करे तो एक तरीके का वॉकओवर होता है. तो विपक्ष में चेहरे को लेकर एक बड़ा प्रश्न आ गया है. इंडिया अलायंस के लिए यह एक बड़ी टेड़ी खीर है. दूसरा किन मुद्दों पर चुनाव लड़ें. विभिन्न विचारधारा वाला विपक्ष क्या कोई एक राय बना पाएगा. और क्या वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नैरेटिव के आगे टिक पाएगा?

राशिद कहते हैं कि बीजेपी की स्ट्रेट्जी काफी मजबूत है. वह कहते हैं कि इन राज्यों में जहां कांग्रेस चुनाव हारी है वहां पर कांग्रेस के प्रत्याशी काफी चौकस, लोकप्रिय और मेहनती थे, तभी उन्हें इतना वोट शेयर मिला. लेकिन वह बीजेपी के आगे नहीं टिक पा रहे, क्योंकि बीजेपी का केवल कैंडिडेट ही नहीं है. उसके पास कैंडिडेट के अलावा नरेंद्र मोदी का भरोसा, उनका चेहरा, उसके अलावा केंद्रीय मंत्रियों को चुनाव लड़ाने की रणनीति और उसका फायदा है. संघ की भूमिका पर राशिद कहते हैं कि कांग्रेस का प्रत्याशी अपनी दम पर चुनाव लड़ा वहीं बीजेपी के पास उसकी तीन और चार लेयर की पूरी बैकिंग थी.

2024 के चुनावों की जब बात होती थी तो यह दलील हमेशा दी जाती थी, कि बीजेपी कई राज्यों में अपने पीक पर है. और जाहिर तौर पर अगर उसकी दो चार-दो चार सीटें भी कम होंगी तो वह गिरकर 20-25 सीटें कम हो जाएंगी. लेकिन यह सर्वे तो बता रहा है कि बीजेपी गिरने की बजाय बढ़ रही है.

टाइम्स नाउ ईटीजी के मुताबिक बीजेपी को उत्तर प्रदेश में 70-74, गुजरात में 26, एमपी में 27-29, राजस्थान में 24-25, कर्नाटक में 20-22, छत्तीसगढ़ में 10-11, दिल्ली में 6-7, हिमाचल में 4. सीटें मिलते दिख रही हैं.

क्या इस सर्वे के हिसाब से मान लिया जाना चाहिए की बीजेपी 2024 का चुनाव आराम से निकाल ले जायेगी? वैसे ये बात इतनी भी सरल नहीं है. असली चुनावी नतीजों और सर्वे कई बार मेल नहीं भी खाते. इस सर्वे के और मायने समझने के लिए यहां नीचे दी गई इस पूरी साप्ताहिक चर्चा को देखा और सुना जा सकता है.

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