Center for Policy Research: केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने एक चर्चित थिंक टैंक, सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च(CPR) का FCRA यानी विदेशी अंशदान रेग्युलेशन एक्ट के तहत मिलने वाला लाइसेंस कैंसिल कर दिया है. इसका सीधा मतलब यह है कि CPR को अब विदेशों से आने वाला डोनेशन यानी विदेश से आने वाला पैसा नहीं मिल पाएगा. गृह मंत्रालय ने माना है कि ये संस्था FCRA नियमों का उल्लंघन कर रही थी. सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च पहले भी मोदी सरकार के रडार पर रहा है. इस थिंक टैंक पर इनकम टैक्स के सर्वे हो चुके हैं. पिछले साल मार्च में गृह मंत्रालय ने CPR के FCRA लाइसेंस को 180 दिनों के लिए सस्पेंड किया था. फिर इस सस्पेंशन को 180 दिनों के लिए और बढ़ाया गया. अब गृह मंत्रालय के FCRA डीविजन ने इसका लाइसेंस ही कैंसिल कर दिया.
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CPR की वर्तमान अध्यक्ष यामिनी अय्यर ने न्यूज एजेंसी ANI से कहा है कि, ‘गृह मंत्रालय ने सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च(CPR) का FCRA लाइसेंस निरस्त कर दिया है, अब संस्थान न्याय के लिए अपने विकल्पों पर विचार करेगा.’ मीडिया रिपोर्ट्स में कहा जा रहा है कि सीपीआर को अपने रजिस्टर्ड उद्देश्यों के अलावा अलग से भी विदेशी पैसा मिल रहा था. आरोप हैं कि इन पैसों का अवांछनीय उद्देश्यों के लिए उपयोग किया जा रहा है. अधिकारियों के मुताबिक CPR का FCRA नियमों का उल्लंघन गंभीर प्रकृति का है और उसकी गतिविधियों से देश के आर्थिक हित प्रभावित होने की संभावना है.
ये CPR है क्या और इसका काम क्या है?
सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च (CPR) पब्लिक पॉलिसी (सार्वजनिक नीति) की दिशा में काम करने वाला एक अग्रणी भारतीय थिंक टैंक है. 1973 में इसकी स्थापना दिल्ली में हुई. यह भारत सरकार के इंडियन काउंसिल ऑफ सोसाइस साइंस रिसर्च (ICSSR) से संबंद्ध सोशल साइंस रिसर्च इंस्टिट्यूट में से एक है. CPR भारतीय राजनीति, अर्थव्यवस्था और समाज से संबंधित मामलों में नीतियां बनाने का काम करती है. यह सरकार, सार्वजनिक क्षेत्रों और दूसरे संस्थानों को नीतिगत मामलों में सलाहकार के तौर पर सेवाएं भी देती है.
इसकी वेबसाइट के मुताबिक CPR 1973 से भारत के अग्रणी सार्वजनिक नीति थिंक टैंक के रूप में काम कर रहा है. CPR खुद को गैर-लाभकारी, गैर-पक्षपातपूर्ण, स्वतंत्र संस्थान बताते है, जिसका काम ही रिसर्च करना है. यह अकादमिक दुनिया से जुड़े लोगों को स्कॉलरशिप भी देता है. भारत के तमाम रिसर्चर, विश्लेषक और पब्लिक पॉलिसी एक्सपर्ट्स इसके साथ मिलकर काम करते हैं.
अब जानिए FCRA क्या है?
FCRA यानी फॉरेन कंट्रीब्यूशन रेगुलेशन एक्ट को साल 1976 में लाया गया था. तब देश में आपातकाल का दौर था. इस बात की आशंकाएं अक्सर खड़ी होती थीं कि विदेशी शक्तियां देश के स्वतंत्र संगठनों के माध्यम से विदेशी पैसा पंप कर भारत के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप कर सकती हैं. इस कानून में व्यक्तियों और संगठनों को मिलने वाले विदेशी दान, चंदे को रेगुलेट करने की व्यवस्था की गई ताकि भारत की संप्रभुता और राष्ट्रीय हित के विपरीत विदेशी पैसों का इस्तेमाल न किया जा सके.
2010, 2020 और 2022 में FCRA में संशोधन कर इसे बनाया गया और मजबूत
विदेशी धन से जुड़े कानून को और मजबूत करने और राष्ट्रीय हित को ध्यान में रखते हुए किसी भी हानिकारक गतिविधि में पैसों के उपयोग को प्रतिबंधित करने के लिए 2010 में FCRA एक्ट में संशोधन किया गया. साल 2020 में कानून में फिर से संशोधन किया गया , जिससे सरकार को गैर सरकारी संगठनों (NGO) के विदेशी धन लेने और उसका इस्तेमाल करने की प्रक्रिया पर सख्त नियंत्रण और जांच की शक्तियों से लैस किया गया. इसमें नवीनतम संशोधन 2022 में हुआ है. इसके मुताबिक गृह मंत्रालय ने FCRA नियमों में कई बदलाव किए. इसके तहत अपराधों की संख्या 7 से बढ़ाकर 12 कर दी गई, विदेशी रिश्तेदारों से प्राप्त 10 लाख रुपये से कम के योगदान के लिए सरकार को सूचना देने से छूट दी गई, जिसकी लिमिट पहले 1 लाख रुपये ही थी.
विदेश से पैसा लेने की प्रक्रिया और नियम क्या है?
FCRA पंजीकरण उन व्यक्तियों या संघों को दिया जाता है जो सांस्कृतिक, आर्थिक, शैक्षिक, धार्मिक और सामाजिक कार्यक्रमों से जुड़े हैं और इससे संबंधित काम कर रहे हैं. इसके लिए व्यक्ति या NGO को इस एक्ट के तहत रजिस्टर कराना होता है. ऐसे मामलों में आने वाला विदेशी पैसा सिर्फ भारतीय स्टेट बैंक की दिल्ली ब्रांच से ही हासिल किया सकता है. पैसों का इस्तेमाल उन्हीं काम में किया जा सकता है, जिसके लिए वो आया है.
यह एक्ट चुनाव में उम्मीदवारों, पत्रकारों, समाचार पत्र और मीडिया समूह की कंपनियों, न्यायाधीशों और सरकारी कर्मचारियों, विधायिका और राजनीतिक दलों के सदस्यों के साथ ही उनके पदाधिकारियों और राजनैतिक संगठनों के विदेश से पैसे लेने पर प्रतिबंध लगाता है.
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