कमलनाथ बोले, राजीव गांधी ने खुलवाया था राम जन्मभूमि का ताला, क्या हुआ था एक फरवरी 1986 को?

देवराज गौर

• 03:05 PM • 03 Nov 2023

मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की कमान संभाल रहे पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ का एक बयान चर्चा में है. कमलनाथ ने एक इंटरव्यू के दौरान बाबरी और राम मंदिर का जिक्र किया है.

कमलनाथ ने एक चुनावी रैली के दौरान राम मंदिर ताला खुलवाने का श्रेय राजीव गांधी दिया.

कमलनाथ ने एक चुनावी रैली के दौरान राम मंदिर ताला खुलवाने का श्रेय राजीव गांधी दिया.

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न्यूज तकः मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की कमान संभाल रहे पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ का एक बयान चर्चा में है. कमलनाथ ने एक इंटरव्यू के दौरान बाबरी और राम मंदिर का जिक्र किया है. कमलनाथ ने कहा है कि बीजेपी को भूलना नहीं चाहिए कि राम जन्मभूमि का ताला पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने खुलावाया था. कमलनाथ इस वक्त बयान को लेकर ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) सांसद असदुद्दीन ओवैसी और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के निशाने पर हैं. आइए आपको बताते हैं कि आखिर कमलनाथ इतिहास की किस घटना का जिक्र कर रहे हैं.

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ताला खुलने वाले दिन की कहानी

आजाद भारत में राम जन्मभूमि विवाद की पहली शुरुआत 23 दिसंबर 1949 को हुई मानी जाती है. इस दिन यहां रामलला की मूर्ति रख दी गई. यह धार्मिक विवाद आगे न बढ़े, इसके लिए अदालत ने यहां ताला लगवा दिया. इसके बाद मामला हाई कोर्ट में पेंडिंग रहा. जनवरी 1985 में उमेश चंद्र पांडेय नाम के वकील कोर्ट पहुंचे. उन्होंने पूजा-अर्चना के लिए इस ताले को खुलवाने की याचिका डाली. याचिका खारिज हो गई. फिर वह सेशन कोर्ट गए, जहां तत्कालीन जज केएम पांडेय ने एक फरवरी 1986 को ताला खोलने का आदेश दे दिया.

अगर कोर्ट का फैसला था तो इसका राजीव गांधी से कैसा कनेक्शन?

असल में इस अदालती आदेश को अलग-अलग वजहों से राजीव गांधी और कांग्रेस की राजनीति से जोड़ा गया. एक तो उस वक्त उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की ही सरकार थी और मुख्यमंत्री थे वीर बहादुर सिंह. दूसरा, रिपोर्ट्स का दावा है कि कोर्ट का आदेश 40 मिनट में ही लागू करा दिया गया. तीसरा, ताला खुलवाने का घटना का दूरदर्शन पर प्रसारण भी किया गया. दूरदर्शन पर प्रसारण होने पर सवाल उठे कि कहीं ये सुनियोजित तो नहीं था?

कुछ लोग इस ताला खुलने की इस घटना को शाहबानो केस से भी जोड़कर देखते हैं. मध्यप्रदेश के इंदौर की रहने वाली एक मुस्लिम महिला शाह बानो को उनके शौहर मोहम्मद अली खान ने तीन तलाक दिया था. तलाक मिलने के बाद गुजारा भत्ता को लेकर शाह बानो ने अदालतों का रुख किया. सुप्रीम कोर्ट ने 1985 में आदेश दिया कि शाह बानो को गुजारा भत्ता दिया जाए. शाह बानो पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का कुछ मुस्लिम संगठन विरोध कर रहे थे. इस विरोध को राजीव गांधी की सरकार झेल नहीं पाई. उन्होंने कानून बनाकर कोर्ट के फैसले को पलट दिया. इस फैसले के लिए तत्कालीन सरकार पर मुस्लिम तुष्टिकरण के आरोप लगे. कहा जाता है कि इसी को हिंदू सेंटिमेंट से बैलेंस करने के लिए रामजन्मभूमि का ताला खुलावाया गया.

इस थिअरी का एक दूसरा पहलू भी है

कई लोग ऐसा नहीं मानते कि ताला खुलवाने का फैसला राजीव गांधी सरकार ने शाह बानो मसले को बैलेंस करने के लिए किया. राजीव गांधी कार्यकाल में प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) में संयुक्त सचिव रहे वसाहत हबीबुल्लाह ने बीबीसी को एक इंटरव्यू में बताया था कि, ‘ऐसे दावे सरासर झूठ हैं. उन्हें (राजीव को) अदालत के आदेश के बारे में जानकारी ही नहीं थी.’

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