Loksabha Elections: जेल में बंद अमृतपाल और राशिद जीते, लेकिन क्या वे शपथ ले सकेंगे? क्या हैं नियम?

News Tak Desk

06 Jun 2024 (अपडेटेड: Jun 6 2024 5:01 PM)

Loksabha elections 2024: डिब्रूगढ़ जेल में बंद खालिस्तान समर्थक अमृतपाल सिंह खडूर साहिब से चुनाव जीता, जबकि शेख अब्दुल राशिद ने बारामूला लोकसभा सीट से निर्दलीय रहते हुए ही नेशनल कॉन्फ्रेंस के कद्दावर नेता उमर अब्दुल्ला को हराया.

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Amritpal Singh: लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजे आ चुके हैं. अब सरकार बनाने के लिए बैठकों का दौर चल रहा है. इस इलेक्शन ने कई मामलों में चौंकाया, जिसमें जेल में बैठे उम्मीदवारों का चुनाव लड़ना और जीतना भी शामिल है. खालिस्तान समर्थक नेता अमृतपाल सिंह के अलावा आतंकवादी गतिविधियों के चलते पांच सालों से तिहाड़ में बंद कश्मीरी नेता अब्दुल राशिद ने भी जीत पाई. अब एक अनोखी स्थिति बन गई है, जिसमें सवाल ही सवाल हैं. 

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डिब्रूगढ़ जेल में बंद खालिस्तान समर्थक अमृतपाल सिंह खडूर साहिब से चुनाव जीता, जबकि शेख अब्दुल राशिद ने बारामूला लोकसभा सीट से निर्दलीय रहते हुए ही नेशनल कॉन्फ्रेंस के कद्दावर नेता उमर अब्दुल्ला को हराया. दोनों ही आतंकवादी गतिविधियों के लिए अलग-अलग राज्यों से, अलग जेलों में बंद हैं. कानून को देखें तो अपराध काफी गंभीर हैं. लेकिन चूंकि संविधान जेल में बैठे लोगों को चुनाव लड़ने की अनुमति देता है तो वे जीत गए. अब सवाल है कि आगे क्या? 

- क्या वे शपथ ले सकेंगे?
- क्या इसके लिए उन्हें जेल से छोड़ा जाएगा?

नियम क्या बताते हैं?

रिप्रेजेंटेशन ऑफ पीपल एक्ट 1951 के अनुसार 18 साल की उम्र का सही दिमागी सेहत वाला कोई भी भारतीय चुनावी प्रोसेस का हिस्सा बन सकता है. जेल या लीगल कस्टडी में रहते हुए कैदी भी इस श्रेणी में आते हैं. जबतक आरोप साबित ना हुए हों.

2013 में सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा था?

सांसद और विधायक अगर अपराध के दोषी पाए जाएंगे तो उन्हें तुरंत अपना पद छोड़ना होगा. इस फैसले ने रिप्रेजेंटेशन ऑफ पीपल एक्ट की धारा 8(4) को एक तरफ से रद्द कर दिया, जो दोषी सांसदों को अपनी सजा के खिलाफ अपील करने के लिए तीन महीनों का समय देती थी.

किसपर क्या आरोप?

राशिद गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (UAPA) के तहत जेल में हैं. साल 2019 में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने टैरर फंडिंग के आरोप में राशिद को गिरफ्तार कर लिया. देश के इतिहास में वो पहले लीडर थे, जिनपर आतंकी गतिविधियों का आरोप लगा. इसी तरह से खालिस्तान सपोर्टर अमृतपाल सिंह, राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (NSA) के तहत जेल में बंद हैं. दोनों ही देश की सुरक्षा को तोड़ने जैसे अपराध हैं, जो साबित हुए तो मुश्किल हो सकती है. 

क्या शपथ ले सकेंगे

जेल में बंद निर्वाचित प्रतिनिधियों को शपथ लेने के लिए अक्सर अस्थाई रूप से जमानत या पैरोल पर रिहाई मिलती रही है. ऐसे कई उदाहरण हैं. जैसे साल 2020 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने बसपा नेता अतुल राय को संसद सदस्य की शपथ लेने के लिए पैरोल दी थी. साल 2022 में यूपी में विधान सभा के शपथ ग्रहण के लिए सपा विधायक नाहिद हसन को जमानत पर रिहा कर दिया गया. पुरानी मिसालें देखें तो अमृतपाल और राशिद दोनों को ही अस्थाई रिलीज मिल सकती है ताकि वे लोकसभा सदस्य के तौर पर शपथ ले सकें. 

तो क्या जेल से ड्यूटी कर सकते हैं ये नेता

क्या सांसद और विधायक ऐसा कर सकते हैं, ये सवाल थोड़ा पेचीदा है. वैसे कई तरीके हैं, जिनकी मदद से ऑनलाइन बैठकें हो सकती हैं और फैसले लिए जा सकते हैं. जेल में बैठे विधायक या सांसद अपनी पार्टी के सीनियर सदस्यों, लीगल टीम और परिवार के लोगों के जरिए जमीनी समस्याएं सुन-समझ सकते हैं. लेकिन-  पार्लियामेंट के सेशन में वे हिस्सा नहीं ले सकते. इसके अलावा ये दिक्कत भी होगी कि वे जनता से सीधा संवाद नहीं कर सकते. 

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