टोटल फर्टिलिटी रेट पर बोलते-बोलते ‘सेक्स एजुकेशन’ देकर ट्रोल हुए नीतीश, क्या होता है ये?

देवराज गौर

08 Nov 2023 (अपडेटेड: Nov 9 2023 11:19 AM)

बीते मंगलवार को बिहार विधानसभा में जातीय जनगणना की फुल रिपोर्ट पेश की गई. इस बीच मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जनसंख्या नियंत्रण पर ऐसा बयान दिया जिसकी वजह से बवाल हो गया.

नीतीश कुमार ने विधानसभा में सेक्स एजुकेशन पर बयान दिया है. उनका मतलब टीएफआर से था.

नीतीश कुमार ने विधानसभा में सेक्स एजुकेशन पर बयान दिया है. उनका मतलब टीएफआर से था.

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Nitish Kumar Speech on Population Control: बीते मंगलवार को बिहार विधानसभा में जातीय जनगणना की फुल रिपोर्ट पेश की गई. इस बीच मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जनसंख्या नियंत्रण पर ऐसा बयान दिया जिसकी वजह से बवाल हो गया. जनसंख्या नियंत्रण के लिए भारत सरकार ने 1980 के दशक में हम दो हमारे दो का नारा दिया था. परिवार में माता पिता और दो संतानों की बात कही गई थी. नीतीश भी बोले, लेकिन कुछ ज्यादा ही बेबाक हो गए. बवाल बढ़ता देख माफी भी मांग ली. जिस जन्मदर पर नीतीश बोल रहे थे हम उसे समझने की कोशिश करेंगे साथ ही यह भी जानेंगे कि अखिल भारतीय स्तर पर जन्मदर के मामले में बिहार कहां खड़ा है.

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कुल प्रजनन दर (टीएफआर) क्या है?

टोटल फर्टिलिटी रेट यानी टीएफआर से मतलब कि एक महिला अपने जीवन काल में कितने बच्चों को जन्म दे सकती है. इसे आप प्रति महिला पर कुल बच्चों की औसत संख्या से भी समझ सकते हैं. टीएफआर किसी क्षेत्र विशेष में एक निश्चित अवधि के दौरान प्रति महिला अपनी रिप्रोडक्टिव एज के दौरान औसतन कितने बच्चों को जन्म देती है, होता है. रिप्रोडक्टिव एज का मतलब वह आयु जिसमें महिलाएं सामान्यतः बच्चों को जन्म देती हैं. इसे आमतौर पर 19 वर्ष से 49 वर्ष तक माना जाता है, वहीं 24 वर्ष के बाद यह धीरे-धीरे गिरना शुरु हो जाती है.

भारत में टीएफआर रिप्लेसमेंट रेट यानी प्रतिस्थापन दर से भी कम हो गई है. रिप्लेसमेंट रेट का सर्वमान्य मानक विश्व में 2.1 माना जाता है. रिप्लेसमेंट रेट यानी एक पीढ़ी अगली पीढ़ी तक जनसंख्या समान रखने लायक बच्चे पैदा कर रही है या नहीं.

एक महिला अगर अपने जीवन में 2.1 बच्चों को जन्म देगी, तो न तो आबादी घटेगी और न ही बढ़ेगी यानी जितनी आबादी है उतनी ही रहेगी. लेकिन, टीएफआर अगर रिप्लेसमेंट रेट से भी नीचे चला जाता है तो आबादी घटना निश्चित तौर पर तय है. वहीं प्रति महिला 2.1 बच्चे पैदा नहीं कर रही है तो वह पीढ़ी स्वयं को समान संख्या में रिप्लेस नहीं कर रही है.

बिहार कहां खड़ा है

नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे – 5, 2019-21, के मुताबिक बिहार की टीएफआर देश में सबसे ज्यादा 2.98 है. बिहार के बाद क्रमशः मेघालय 2.91, उत्तर प्रदेश 2.35, झारखंड 2.26 और मणिपुर 2.17 है. इन राज्यों में टीएफआर देश की औसत 2.0 से ज्यादा है. वहीं सबसे कम टीएफआर दर वाले राज्यों में पंजाब सबसे कम 1.6, पश्चिम बंगाल 1.6, महाराष्ट्र 1.7, कर्नाटक 1.7 और आंध्र प्रदेश 1.7 हैं.

बढ़ती जनसंख्या का अनमेट नीड भी एक कारण

परिवार नियोजन चाहते हैं, लेकिन किसी कारणवश इसके साधन का उपयोग नहीं कर पाते हैं, ऐसी स्थिति को टोटल अनमेट नीड कहा जाता है. वर्ष 2015-16 से 2019-20 तक यानी 5 साल में बिहार में टोटल अनमेट नीड को घटाने में सफलता मिली तो मिली है, लेकिन फिर भी अशिक्षा या गर्भनिरोधक तक पहुंच के अभाव में लोग इसका इस्तेमाल नहीं कर पाते हैं. हालांकि, बिहार ने इसमें तरक्की हासिल की है. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 में बिहार की टोटल अनमेट नीड 21.2 फीसदी थी, जो राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 में घटकर 13.6 फीसदी हो गई है.

नीतीश की महिला शिक्षा का जन्मदर से क्या संबंध

नीतीश कुमार ने विधानसभा में बोलते हुए महिला के शिक्षित होने पर कम बच्चे पैदा होने की प्रवृ्त्ति की ओर भी इशारा किया. शिक्षा का हवाला दिया. नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के मुताबिक मेट्रिक पास और इंटर पास करने वाली महिलाएं कम बच्चों को पैदा करने का रुझान रखती हैं. वहीं अशिक्षित महिलाओं में ज्यादा बच्चों को पैदा करने की प्रवृत्ति देखी गई. उन्होंने कहा कि अगर महिला जितनी ज्यादा पढ़ी लिखी होगी उतनी कम प्रजनन दर होगी.

2011 की जनगणना के लिहाज से देखें तो सबसे ज्यादा जन्मदर वाले राज्यों में सबसे कम साक्षरता दर पाई गई है. बिहार में जहां 61.80 फीसदी, झारखंड में 66.41 फीसदी, यूपी 67.68 फीसदी, मध्य प्रदेश 69.32 फीसदी और राजस्थान में 66.11 फीसदी साक्षरता दर है. वहीं सबसे कम जन्मदर वाले राज्यों में सबसे ज्यादा साक्षरता दर पाई गई है. इन राज्यों में साक्षरता दर का स्तर भी बेहतर है. यानी, जिन राज्यों में लोग ज्यादा पढ़े-लिखे हैं, वहां जन्म दर कम है, वहीं कम साक्षर राज्यों में जन्म दर ज्यादा है.

टीएफआर में कमी के कई और भी कारक

प्रजनन दर में कमी की जो प्रवृत्ति देखी गई है उसके पीछे दशकों तक चलाए गए परिवार नियोजन कार्यक्रम की अहम भूमिका है. हालांकि, इसके अलावा भी शिक्षा, सीपीआर (कांट्रासेप्टिव प्रेवलेंस रेट) यानी गर्भनिरोधक तरीकों की भी भूमिका है. राष्ट्रीय स्तर पर गर्भनिरोधक प्रसार दर 54% से बढ़कर 67% हो गई है. इसके अलावा ‘रिवर्सिबल स्पेसिंग’ (बच्चों के बीच जन्म का अंतर) ने भी अपनी अहम भूमिका निभाई है.

घटती जनसंख्या की अपनी समस्याएं

जैसा कि हम पहले बता चुके हैं कि टीएफआर यदि रिप्लेसमेंट रेट से कम हो तो जनसंख्या में तेजी से गिरावट के साथ असंतुलन भी पैदा होता है. भारत में प्रजनन दर 2015-16 में 2.2 के मुकाबले 2.0 तक पहुंच गई है. जो अपने टीएफआऱ 2.0 से कम है. टीएफआर जहां शहरी क्षेत्रों में 1.6 है तो वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में 2.1 है. 1950 के दशक में कुल प्रजनन दर औसतन 6 और इससे अधिक हुआ करती थी.

इस प्रकार TFR 2 से कम (जैसा कि भारत के शहरी क्षेत्रों में है) होने की अपनी समस्याएँ होती हैं. उदाहरण के लिये घटती जनसंख्या से वृद्ध जनसंख्या में वृद्धि होगी, जैसा कि चीन में हो रहा है.

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