राष्ट्रपति मुर्मु ने इमरजेंसी को बताया देश का 'काला अध्याय', कहा- देश अराजकता में डूब गया...

News Tak Desk

27 Jun 2024 (अपडेटेड: Jun 27 2024 2:00 PM)

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने गुरुवार को संसद की संयुक्त बैठक में अपने संबोधन के दौरान तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी द्वारा 1975 में लगाए गए आपातकाल को संविधान पर "सबसे बड़ा हमला" कहा और इसे देश के इतिहास का "सबसे काला अध्याय" बताया

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Droupadi Murmu: 18वीं लोकसभा का सत्र शुरू हो चुका है. सभी सांसद शपथ ले चुके हैं. ओम बिरला फिर से सदन के अध्यक्ष चुने गए हैं. लोकसभा सदस्यों के शपथग्रहण और स्पीकर के चुनाव के बाद आज राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू दोनों सदनों के संयुक्त सत्र को संबोधित किया. उन्होंने सभी नवनिर्वाचित सांसदों को बधाई दी. उन्होंने कहा कि आप सभी देश के मतदाताओं का विश्वास जीतकर यहां आए हैं. देश और लोगों की सेवा करने का यह अवसर बहुत कम लोगों को मिलता है. मुझे पूरा विश्वास है कि आप राष्ट्र प्रथम की भावना के साथ अपने कर्तव्यों का पालन करेंगे.

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'आपातकाल सविंधान पर सबसे बड़ा हमला'

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने गुरुवार को संसद की संयुक्त बैठक में अपने संबोधन के दौरान तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी द्वारा 1975 में लगाए गए आपातकाल को संविधान पर "सबसे बड़ा हमला" कहा और इसे देश के इतिहास का "सबसे काला अध्याय" बताया. राष्ट्रपति मुर्मू ने कहा कि आपातकाल के दौरान देश अराजकता में डूब गया था और कहा कि लोकतंत्र को "कलंकित" करने के प्रयासों की सभी को निंदा करनी चाहिए. उन्होंने कहा कि "लेकिन देश ऐसी असंवैधानिक शक्तियों के खिलाफ विजयी रहा." .

राष्ट्रपति ने कहा, विभाजनकारी ताकतें लोकतंत्र को कमजोर करने, देश के भीतर और बाहर समाज में खाई पैदा करने की साजिश कर रही हैं.

इंदिरा गांधी ने लगाया था आपातकाल

जून 1975 से मार्च 1977 तक लगभग दो वर्षों तक चलने वाला आपातकाल इंदिरा गांधी द्वारा लगाया गया था और संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद द्वारा सहमति व्यक्त की गई थी. आपातकाल की स्थिति इस तर्क पर घोषित की गई थी कि देश के लिए आसन्न आंतरिक और बाहरी खतरे थे.

आपातकाल लगाकर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का गला घोंटा- ओम बिरला

लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने स्पीकर बनने के बाद पहले भाषण में कहा कि आपातकाल लागू कर के भारत के लोकतांत्रिक मूल्यों को कुचल दिया गया और "अंधेरे काल" के दौरान अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का गला घोंट दिया गया. उन्होंने इस दौरान जान गंवाने वाले नागरिकों की याद में दो मिनट का मौन भी रखा, जिसके बाद विपक्ष ने जोरदार विरोध प्रदर्शन और नारेबाजी शुरू कर दी.

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