Prashant Kishore: चुनावी रणनीतिकार और जनसुराज अभियान के सूत्रधार प्रशांत किशोर ने एक बड़ा ऐलान कर दिया है. पीके ने कहा है कि वह 2 अक्टूबर को महात्मा गांधी की जयंती पर अपनी पार्टी लॉन्च करेंगे. इसके साथ ही उन्होंने 2025 में होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव में प्रदेश की सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ने की बात कही है जिनमें से 75 सीटों पर मुस्लिमों को मैदान में उतारेंगे. आपको बता दें कि, पीके ने पार्टी बनाने का ऐलान बिहार में उनकी यात्रा शुरू होने के ठीक दो साल बाद की है.
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इंडियन एक्स्प्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, जन सुराज के संयोजक ने कहा कि वह पार्टी मामलों को संभालने के लिए 21 नेताओं का एक पैनल स्थापित करने पर विचार कर रहे हैं. पीके ने यह दावा किया है कि, जन सुराज के लिए उनका उद्देश्य राज्य में अपनी पार्टी के लिए एक ऐसा निर्वाचन क्षेत्र बनाना है, जो देश में सबसे पिछड़े राज्यों में से एक है. उन्होंने दलितों और मुसलमानों से जाति और धार्मिक आधार पर मतदान बंद करने और 'अपने बच्चों के भविष्य' को ध्यान में रखने की अपील की है.
बिहार में सभी पार्टियां लोगों की आंखों में झोंकती रही है धूल: पीके
पीके ने नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली महागठबंधन सरकार के किए गए जाति सर्वेक्षण को 'राजनीतिक स्टंट' बताया था. नीतीश ने इस विषय पर अपना अभियान चलाया जब वह INDIA ब्लॉक के साथ थे लेकिन बाद में NDA में शामिल हो गए. चाहे राजद हो या जदयू, ये पार्टियां पिछले तीन दशकों से लोगों की आंखों में धूल झोंकती रही हैं. उन्हें लोगों को बताना चाहिए कि OBC, EBC और SC की स्थिति में सुधार क्यों नहीं हुआ है.
मुसलमानों के लिए भी उनका संदेश इसी तर्ज पर है. हाल ही में किशनगंज में एक सभा में उन्होंने घोषणा की कि जन सुराज पार्टी 2025 के विधानसभा चुनावों में मुस्लिम EBC सहित 75 उम्मीदवारों को मैदान में उतारेगी. उन्होंने कहा, आप डर के मारे असामाजिक तत्वों को वोट देना कब बंद करेंगे और अपने बच्चों के भविष्य के लिए मतदान कब करेंगे. उन्होंने बताया कि, मुस्लिम राज्य की आबादी का 17 फीसदी हैं जो यादवों से 3 फीसदी अधिक है लेकिन उनके पास पूरे बिहार का कोई नेता नहीं है.
पीके ने नीतीश कुमार की JDU से ली थी सियासत में इंट्री
प्रशांत किशोर का राजनीति में पहला प्रवेश जनता दल यूनाइटेड से हुआ था. JDU में शामिल होने के तुरंत बाद नीतीश कुमार ने उन्हें वरिष्ठ पद पर नियुक्त किया था. हालांकि जब उनका रिश्ता टूट गया तब पीके को एहसास हुआ कि, नीतीश कुमार की जाति की राजनीति की अपील विकास की पिच के साथ बहुत बढ़ गई है.
राजनीतिक विश्लेषक संजय कुमार बताते है कि, 'पीके को पता है कि, ऊंची जाति के ब्राह्मण के रूप में उनकी अपनी जाति की पहचान और खुद को एक नेता के रूप में अत्यधिक प्रचारित करने से चीजें शुरू होने से पहले ही खराब हो सकती हैं. इसलिए वह जातियों, धर्मों के साथ-साथ पेशेवर पृष्ठभूमि से ऊपर उठकर एक इंद्रधनुषी गठबंधन की बात करते हैं जिसमें 'प्रतिभा पूल, अच्छी संख्या में शिक्षक और बुद्धिजीवी शामिल हैं'.
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