बाल ठाकरे और उनकी वाली शिवसेना के बनने और फिर टूट कर दो हो जाने की कहानी

देवराज गौर

17 Nov 2023 (अपडेटेड: Nov 17 2023 4:53 PM)

पार्टी के मुखपत्र सामना में प्रकाशित संपादकीय में बाल ठाकरे ने बिहारियों को ‘गोबर का कीड़ा’ कहा था. उन्होंने बिहारियों के लिए ‘एक बिहारी सौ बीमारी’ जैसी संज्ञा का इस्तेमाल भी किया था.

Bal Thackeray

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Life of Bal Thackeray: शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे का आज ही के दिन 2012 में निधन हुआ था. बाल ठाकरे के बाद उनकी पार्टी दो भागों में बंट चुकी है. 16 नवंबर को बाल ठाकरे के बेटे उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना (यूबीटी) और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की शिवसेना के समर्थक एक-दूसरे से भिड़ गए. शिवाजी पार्क स्थित बाल ठाकरे के स्मारक पर दोनों गुटों के समर्थक नारेबाजी करने लगे. घटना तब घटी जब महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे अपने समर्थकों के साथ शिवाजी पार्क बाल ठाकरे को श्रद्धांजलि देने पहुंचे.

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पिछले साल पार्टी नेतृत्व के खिलाफ शिंदे के नेतृत्व में विद्रोह के बाद मूल शिवसेना दो गुटों में बंट गई थी. इसके साथ ही उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महा विकास आघाड़ी (एमवीए) सरकार गिर गई थी. चुनाव आयोग ने बाद में शिंदे के नेतृत्व वाले गुट को असली शिवसेना के रूप में मान्यता दी और उसे ‘‘धनुष और बाण’’ चुनाव चिन्ह आवंटित करने का आदेश दिया. उद्धव ठाकरे को अपने गुट के लिए शिव सेना (यूबीटी) नाम मिला.

कार्टूनिस्ट बाल ठाकरे

बाल ठाकरे का जन्म 23 जनवरी 1926 को महाराष्ट्र के पुणे में हुआ था. ठाकरे मध्यप्रदेश के मराठी बोलने वाले कायस्थ परिवार से आते थे.

ठाकरे को जो सरनेम मिला वह उनका खुद का नहीं है. बाल ठाकरे के पिताजी केशव ठाकरे “वैनिटी फेयर” के लेखक विलियम मेकपीस “थैकरे” के बड़े प्रशंसक (एडमायरर) थे. विलियम मेकपीस थैकरे के सम्मान के तौर पर केशव ठाकरे ने अपना सरनेम बदलकर ठाकरे कर लिया.

ठाकरे जीवन के शुरुआती दौर में पेशे से पत्रकार और कार्टूनिस्ट थे. साल 1954 में ठाकरे ने फ्री प्रेस जर्नल में काम करना शुरू किया. देश के मशहूर और जाने माने कार्टूनिस्ट आर के लक्ष्मण भी उसी अखबार में काम किया करते थे. टाइम्स ऑफ इंडिया में भी ठाकरे के कार्टून छपा करते थे. 1959 में फ्री प्रेस जर्नल में दक्षिण भारतीय लोगों के प्रभुत्व होने के कारण उनके रिश्ते बिगड़ते चले गए और उन्हें नौकरी छोड़ देनी पड़ी. 1989 में अपनी पार्टी शिवसेना की विचारधारा को आगे बढ़ाने के लिए उन्होंने अपना अखबार “सामना” निकाला.

“मार्मिक” से होकर जाता है शिवसेना का रास्ता

उसके बाद 1960 में ठाकरे ने अपने छोटे भाई श्रीकांत के साथ मिलकर कार्टून साप्ताहिक “मार्मिक” की शुरूआत की. मार्मिक में ठाकरे अपने कार्टूनों, व्यंग्यों और स्तंभों से मराठी लोगों की आवाज उठाते रहते थे. इससे उन्हें ख्याति मिलनी शुरू हुई. रोजगार के लिहाज से अन्य राज्यों के लोग भी महाराष्ट्र में बड़ी संख्या में बढ़ रहे थे. ठाकरे उसमें भी सबसे पहले मराठी मानुष की बात करते. लोग उनसे मिलने आने लगे. वे उनसे दक्षिण भारतीयों द्वारा भेदभाव की शिकायत करते. इसी को लेकर उनके पिताजी केशव ठाकरे ने उन्हें राजनीतिक दल के गठन का विचार दिया. ताकि संगठित रूप से आवाज उठाई जा सके. 19 जून 1966 को पार्टी बनाई गई, नाम दिया गया शिवसेना. यह शिवसेना भगवान शंकर के नाम पर नहीं बल्कि छत्रपति शिवाजी महाराज के नाम पर बनाई गई.

कम्युनिस्ट विरोधी से कांग्रेस से दोस्ती और फिर बीजेपी के साथ तक

शिवसेना ने अपना पहला चुनाव ठाणे नगर निगम का लड़ा था. जिसमें उसे 40 में से 17 सीटें मिली थीं. दिलचस्प बात यह है कि 1960-70 के दशक में मुंबई में शिवसेना की जड़ें जमाने में कांग्रेस की बड़ी भूमिका थी. शिवसेना के शुरुआती दौर में मुंबई के सरकारी निगमों पर कम्युनिस्टों का राज माना जाता था. कांग्रेस ने अपने विकल्प के तौर पर शिवसेना को कम्युनिस्टों से लड़ने के लिए आगे किया. साल 1974 में मुंबई सेंट्रल सीट पर हुए लोकसभा चुनावों में शिवसेना ने कम्युनिस्ट उम्मीदवार के खिलाफ कांग्रेस प्रत्याशी का समर्थन किया.

1975 में बाल ठाकरे ने इंदिरा गांधी की लगाई इमरजेंसी का भी समर्थन किया. शिवसेना 1980 तक कांग्रेस का समर्थन करती रही, उसके बाद दोनों के रिश्तों में दूरियां बढ़ना शुरू हुईं. 1985 में मुंबई के नगर निकाय चुनावों में शिवसेना को अपनी पार्टी का सिंबल तीर-कमान मिला. 1989 के लोकसभा चुनाव बीजेपी और शिवसेना ने गठबंधन में लड़ा. 2014 में यह गठबंधन भी टूट गया.

मराठी अस्मिता और मराठी मानुष के अधिकारों से हिंदुत्व की राजनीति तक

बाल ठाकरे महाराष्ट्र में सरकारी नौकरियों और रोजगार पर मराठी मानुष का पहला हक कहते थे. बाहरी राज्यों से रोजगार के लिए महाराष्ट्र गए लोगों पर उनकी टिप्पणियां जग-जाहिर हैं.

पार्टी के मुखपत्र सामना में प्रकाशित संपादकीय में बाल ठाकरे ने बिहारियों को ‘गोबर का कीड़ा’ कहा था. उन्होंने बिहारियों के लिए ‘एक बिहारी सौ बीमारी’ जैसी संज्ञा का इस्तेमाल भी किया था.

धीरे-धीरे ठाकरे ने अपना जनाधार बढ़ाने के लिए हिंदुत्व को अपनी ढाल बनाना शुरू किया. एक इंटरव्यू में बाबरी मस्जिद पर पूछे सवाल पर उन्होंने कहा था कि उसे तोड़ने में मेरा हाथ नहीं मेरा पांव है.

बाल ठाकरे की शादी मीना ठाकरे से हुई थी. ठाकरे दंपत्ति के तीन बेटे हुए. बिंदुमाधव, जयदेव और उद्धव ठाकरे. 1996 में पत्नी मीना और बड़े बेटे बिंदुमाधव का निधन हो गया.

लंबी बीमारी के बाद बाल ठाकरे ने 17 नवंबर 2012 को मुंबई के अपने घर मातोश्री में आखिरी सांस ली.

इसके बाद उद्धव ठाकरे ने शिवसेना की कमान संभाली. उद्धव के नेतृत्व में शिवसेना ने लंबे अरसे से चल रही कांग्रेस के विरोध की राजनीति को छोड़ दिया. नवंबर 2019 में उद्धव ने एनसीपी और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाई. ठाकरे परिवार से पहला शख्स महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बना. पर उद्धव पार्टी को एकजुट नहीं रख पाए. शिंदे ने पार्टी तोड़ दी और जून 2022 में उद्धव सरकार गिर गई.

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