मराठा आंदोलनः आरक्षण की मांग को लेकर महाराष्ट्र में मराठा सड़कों पर हैं. आंदोलन में शामिल मराठों ने सोमवार को एनसीपी (अजीत पवार गुट) के विधायक प्रकाश सोलंके के घर को आग में झोंक दिया. गुस्साई भीड़ ने जब आग लगाई तब वह घर पर ही थे. विधायक प्रकाश सोलंके ने कहा है कि परिवार के सभी सदस्य सुरक्षित हैं लेकिन संपत्ति का भारी नुकसान हुआ है. प्रदर्नकारियों ने एक और विधायक संदीप क्षीरसागर के घर को भी आग के हवाले कर दिया. वह बीड विधानसभा क्षेत्र से विधायक हैं. वहीं महाराष्ट्र सरकार में पूर्व मंत्री जयदत्त क्षीरसागर के ऑफिस को भी प्रदर्शनकारियों ने आग के हवाले कर दिया. इसके अलावा भी आगजनी, तोड़फोड़ की तमाम घटनाएं हुई हैं. यानी मराठा आरक्षण की मांग को लेकर महाराष्ट्र सुलग रहा है.
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आरक्षण की मांग को लेकर पिछले 6 दिनों से भूख हड़ताल पर बैठे मनोज जारांगे-पाटिल की मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे से फोन पर बात हुई है. शिंदे से बात करने के बाद पाटिल ने पूर्ण आरक्षण का अपना रुख एक बार फिर से दोहराया. उन्होंने कहा कि हमें आधा-अधूरा आरक्षण मंजूर नहीं है. हम पूरा आरक्षण लेकर रहेंगे.
क्या है मराठों की मांग?
मराठों की मांग है कि उन्हें राज्य में ओबीसी में शामिल किया जाए. साल 2000 में सरकार ने कुनबी कैटेगरी में रह रहे मराठों को ओबीसी कैटेगरी में शामिल कर उन्हें आरक्षण का लाभ दिया. कुछ मराठा यह भी मांग कर रहे हैं कि उन्हें भी कुनबी कैटेगरी में डालकर आरक्षण का लाभ दिया जाए. अभी महाराष्ट्र में ओबीसी को 19 फीसदी, एससी को 13, एसटी को 7 और एसबीसी (स्पेशल बैकवॉर्ड क्लास) को 13 फीसदी आऱक्षण दिया जाता है.
बढ़ सकती हैं बीजेपी-शिवसेना (शिंदे गुट) सरकार की मुश्किलें
जैसे जैसे आंदोलन तेज होता जा रहा है सरकार की मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं. महाराष्ट्र में इस समय शिवसेना (शिंदे गुट) और बीजेपी की गठबंधन की सरकार है. महाराष्ट्र में अगले साल लोकसभा चुनावों के बाद ही विधानसभा चुनाव होने हैं. ऐसे में यह सरकार के लिए बड़ी चुनौती होगी कि वह कैसे एक बड़े वोटर वर्ग को साधेगी. राज्य में मराठों की जनसंख्या करीब 33 फीसदी मानी जाती है. अगर मराठाओं को खुश करने के लिए सरकार कोई कदम उठाती है तो ओबीसी वर्ग के नाराज होने का खतरा मोल लेगी. वैसे भी देश में विपक्ष ओबीसी जातिगत जनगणना को लेकर मुखर है. एक अनुमान के मुताबिक राज्य में करीब 40 फीसदी ओबीसी हैं, जो मराठा आरक्षण के खिलाफ हैं. ऐसे में शिंदे सरकार के लिए इस मामले को लेकर कोई फैसला ले पाना टेढ़ी खीर साबित हो रहा है.
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