उत्तराखंड के UCC में क्या है? देश में इसे लागू करने का मामला कहां तक पहुंचा, अड़चनें भी जानिए

अभिषेक

13 Nov 2023 (अपडेटेड: Nov 13 2023 11:27 AM)

समान नागरिक संहिता सभी धर्मों और समुदायों के लिए एकसमान कानून करने की बात करता है. भारत विविधताओं का देश है. आदिवासी जनजातियों से लेकर विभिन्न धर्मों के अपने अलग-अलग रीति-रिवाज और प्रथाएं है.

Uttarakhand, Uniform Civil Code

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Uniform Civil Code: उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता (यूनिफॉर्म सिविल कोड- UCC) बिल लाने की तैयारी है. सूत्रों के हवाले से बताया जा रहा है की प्रदेश सरकार अगले सप्ताह विधानसभा का एक विशेष सत्र बुलाएगी. इसमें UCC बिल पास करा इसे कानूनी दर्ज दिया जाएगा. अगर ऐसा होता है तो उत्तराखंड, गोवा के बाद देश का दूसरा ऐसा राज्य होगा जहां UCC लागू होगा. भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) शासित राज्य मध्य प्रदेश और गुजरात ने भी UCC के लिए समितियां बनाई हैं. केंद्र सरकार भी UCC के संदर्भ में विधि आयोग से लगातार परामर्श कर रही है.

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क्या है समान नागरिक सहिता

भारतीय संविधान के नीति निर्देशक तत्वों के आर्टिकल 44 में देश में समान नागरिक संहिता को लेकर प्रावधान है. नीति निर्देशक तत्व वे होते हैं, जो सरकार के लिए बाध्यकारी नहीं होते हैं. वैसे ये एक तरीके से सरकार के लिए मार्गदर्शन का काम करते हैं. आर्टिकल 44 के अनुसार, राज्य/सरकार भारत के पूरे क्षेत्र में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता को लागू करने का प्रयास करेगी.’ सीधे शब्दों में कहें तो देशभर में सभी लोगों के लिए शादी, तलाक, गोद लेने और जमीन-संपत्ति के बंटवारे जैसे कानून समान होंगे. यानी UCC का मतलब धर्मों और समुदायों से ऊपर उठकर सभी के लिए एकसमान कानून बनाने से है.

उत्तराखंड में यूसीसी को लेकर अबतक क्या हुआ

उत्तराखंड में बीजेपी ने 2022 के चुनाव में वोटिंग से ठीक पहले UCC लाने का वादा किया था. सरकार बनते ही मई 2022 में UCC को लेकर एक कमेटी बनाई गई. कमेटी सेवानिवृत्त न्यायाधीश रंजना प्रकाश देसाई के नेतृत्व में बनी. इस कमेटी को 20 लाख से अधिक सुझाव मिले. मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इसकी रिपोर्ट के आधार पर प्रदेश में समान नागरिक संहिता को लागू करने की बात कही थी.

उत्तराखंड के UCC प्रस्ताव में क्या-क्या है?

इंडियन एक्स्प्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, UCC के लिए गठित समिति ने रिपोर्ट में बेटियों के लिए लैंगिक समानता और पैतृक संपत्तियों में समान अधिकार की बात की गई है. महिलाओं के विवाह की उम्र 18 साल को बरकारार रखा गया है. इससे पहले ऐसी अटकलें लग रही थीं की महिलाओं के लिए शादी की उम्र को बढ़ाकर 21 वर्ष किया जा सकता है. यह रिपोर्ट मुख्यतया व्यक्तिगत कानूनों जैसे शादी, तलाक, संपत्ति के अधिकार और बच्चों के गोद लेने आदि के लिए एकसमान कानून पर फोकस्ड है. रिपोर्ट में धार्मिक रीति-रिवाजों और प्रक्रियाओं को एक समान करने को लेकर कोई जिक्र नहीं है.

बीजेपी UCC को लागू कराने के लिए लंबे समय से प्रयासरत रही है. लोकसभा चुनावों में बीजेपी के घोषणापत्र में यही एक बड़ा मुद्दा है जिसे अभी तक लागू नहीं कराया गया है. कश्मीर से धारा 370 हटाने, राममंदिर बनाने जैसे वादे बीजेपी पहले ही पूरा कर चुकी है.

क्या है UCC को लेकर विवाद, अड़चनें?

समान नागरिक संहिता सभी धर्मों और समुदायों के लिए एकसमान कानून करने की बात करता है. भारत विविधताओं का देश है. आदिवासी जनजातियों से लेकर विभिन्न धर्मों के अपने अलग-अलग रीति-रिवाज और प्रथाएं है. अगर सभी के लिए एक समान कानून बनेगा तो आदिवासियों और ऐसी जनजातियां जो विलुप्ति की कगार पर हैं, उन्हें एकसाथ लाना बड़ी चुनौती है. देश में मुसलमानों की बड़ी आबादी है. जिनके अपने अलग नियम और कायदे हैं. ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के असदुद्दीन ओवैसी जैसे मुस्लिम समुदाय के नेताओं का कहना है की बीजेपी की हिंदुवादी सरकार हमें टारगेट कर रही है. ओवैसी का तर्क है कि यूसीसी के जरिए बहुसंख्यक यानी हिंदुओं के विचारों को थोपने की कोशिश हो रही है. ओवैसी उत्तराखंड में यूसीसी की कवायद को भी असंवैधानिक बता चुके है.

देश के पूर्वोत्तर (नॉर्थ ईस्ट) के प्रदेशों में भी बहुत विविधता है, वहां से पहले ही विरोध के सुर देखने को मिलें है. मिजोरम विधानसभा इस साल फरवरी में यूसीसी लागू करने के किसी भी कदम का विरोध करने का प्रस्ताव पास किया है. नागालैंड विधानसभा में भी सितंबर में प्रस्ताव पेश हो चुका है कि प्रदेश को यूसीसी से छूट मिले. नागा समुदाय को लगता है की यूसीसी उनके परम्परागत सामाजिक कानूनों के लिए चुनौती है. यानी कुल मिलाकर देखें तो यूसीसी लागू करने की राह में समाज के कई तबकों की तरफ से अपनी अपनी आपत्तियां मौजूद हैं.

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