1949 में रामलला की जो मूर्ति ‘प्रकट’ हुई थी वो कहां गई? दिग्विजय सिंह ने पूछा था सवाल मिला ये जवाब

News Tak Desk

05 Jan 2024 (अपडेटेड: Jan 5 2024 5:50 AM)

रामलला की मूर्ति की कहानी 74 साल पहले 1949 से शुरू हुई थी. तब भी अयोध्या में विवाद था राम मंदिर और बाबरी मस्जिद को लेकर. 22-23 दिसंबर 1949 की रात मस्जिदनुमा गुंबद के ठीक नीचे राम के बाल स्वरूप की मूर्ति देखी गई.

Ram Mandir

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Ram Mandir: सालों से टेंट में विराजमान रामलला के लिए अब अयोध्या में भव्य राम मंदिर तैयार हो रहा है. मंदिर में रामलाल की प्राण प्रतिष्ठा 22 जनवरी को पीएम मोदी की मौजूदगी में होगी. अनुमान ऐसा था कि जो रामलला टेंट में विराजते थे उनको ही नए भव्य मंदिर में स्थापित किया जाएगा, लेकिन अब चर्चा है कि मंदिर में नई-नई मूर्तियां लगने वाली है. राम मंदिर को लेकर अबतक अलग-अलग एंगल से राजनीतिक विवाद होते रहे हैं. अब रामलला की मूर्ति को लेकर भी सियासी विवाद शुरू हो गया है. नई मूर्तियां लगाने की चर्चा के बीच कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने ये सवाल उठाया है कि रामलला की वो मूर्ति कहां है जिस पर सारा झगड़ा हुआ, वो मूर्ति क्यों नहीं स्थापित हो रही हैं? नई मूर्ति की जरूरत क्यों पड़ रही है?

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विश्व हिंदू परिषद के अंतर्राष्ट्रीय कार्याध्यक्ष आलोक कुमार ने न्यूज तक के कार्यक्रम मंच में नए राम मंदिर को लेकर कई सवालों के जवाब दिए. मूर्ति के बारे में ऐसे ही पूछे गए सवाल पर आलोक कुमार ने स्थिति साफ की कि, रामलला की पुरानी मूर्ति ही नए मंदिर में होगी. पुरानी मूर्ति गर्भगृह में होगी लेकिन भक्तों के दर्शन के लिए बड़ी मूर्ति भी लगाई जाएगी.

आलोक कुमार ने बताया कि नए राम मंदिर में तीन फ्लोर होंगे. तीनों फ्लोर पर भगवान श्रीराम की अलग-अलग मूर्तियां लगने वाली हैं. गर्भगृह में राम लला बाल स्वरूप में विराजेंगे. वहीं राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट की ओर से ये बताया गया है कि, अलग-अलग तरह के पत्थरों पर 3 मूर्तियां बन रही है. कौन सी मूर्ति किस फ्लोर पर लगेगी, ये तय होना अभी बाकी है. वहीं चर्चा ये भी है कि रामलला की दो मूर्तियां काले पत्थर की और एक संगमरमर की बन रही है. नई मूर्तियों में भगवान राम के दर्शन माता सीता, लक्ष्मण के साथ होंगे.

अब रामलला की मूर्ति का इतिहास जानिए

रामलला की मूर्ति की कहानी 74 साल पहले 1949 से शुरू हुई थी. तब भी अयोध्या में विवाद था राम मंदिर और बाबरी मस्जिद को लेकर. 22-23 दिसंबर 1949 की रात मस्जिदनुमा गुंबद के ठीक नीचे राम के बाल स्वरूप की मूर्ति देखी गई. हिंदुओं ने कहा रामलला प्रकट हुए. मुस्लिम पक्ष ने कहा कि चुपचाप किसी ने मूर्ति रख दी.

अगली सुबह भारी भीड़ जमा होने पर ढांचे को विवादित घोषित करके सरकारी ताला लगा दिया गया. 1950 में हिंदू पक्ष ने भगवान के दर्शन और पूजा का अधिकार मांगने के लिए कोर्ट में याचिका लगाई. फैजाबाद के सिविल जज ने रखी गई मूर्तियां हटाने पर रोक लगाने के साथ हिंदुओं को बंद दरवाजे के बाहर से दर्शन की इजाजत दे दी.

 तब से 35-36 साल तक ऐसे ही चलता रहा. 1986 में कोर्ट ने ताला खोलने का आदेश दिया. ताला खुलवाने की इसी घटना का क्रेडिट राजीव गांधी को दिया जाता है, जो तब देश के प्रधानमंत्री थे. उसी वक्त विश्व हिंदू परिषद ने पास की जमीन पर गड्ढा खोदकर शिला पूजन भी किया. विश्व हिंदू परिषद के अंतर्राष्ट्रीय कार्याध्यक्ष आलोक कुमार ने कहा कि क्रेडिट राजीव गांधी का नहीं, कोर्ट का था.

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