सत्ता में मौजूद दल उठा सकता है फायदा… इलेक्टोरल बॉन्ड पर फैसले में SC ने क्या-क्या कहा?

अभिषेक

15 Feb 2024 (अपडेटेड: Feb 15 2024 8:36 AM)

SC की पीठ ने कहा कि, इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम और संविधान के अधिनियमों में संशोधन करके लाए गए चुनावी बॉन्ड के जरिए पार्टियों को मिलने वाले राजनीतिक योगदान का खुलासा न करना असंवैधानिक है.

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Supreme Court Verdict on Electoral Bond: इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम (EB) को लेकर सुप्रीम कोर्ट(SC) ने गुरुवार को बड़ा फैसला दिया है. चीफ जस्टिस (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में बनी SC की संवैधानिक बेंच ने इलेक्टोरल बॉन्ड को असंवैधानिक करार दे दिया है. SC के इस फैसले को केंद्र सरकार के लिए एक बड़ा झटका माना जा रहा है, क्योंकि सरकार ने जब साल 2019 में इसे लाई थी, तो दावा राजनैतिक चंदे में पारदर्शिता का किया गया था. पर सुप्रीम कोर्ट सरकार की राय से सहमत नहीं हुआ और इसे रद्द करने का फैसला सुना डाला. फैसला सुनाने वाली संविधान पीठ में मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ , जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा शामिल थे.

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फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि, यह इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम उस राजनीतिक दल को मदद कर सकती है, जो सत्ता में है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इसे यह दावा करके उचित नहीं ठहराया जा सकता है कि यह राजनीति में काले धन को रोकने में मदद करेगी. शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा कि आर्थिक गैरबराबरी अलग-अलग स्तर के राजनीतिक संबंधों को जन्म देती है. इसमें लेन-देन वाले संबंध (quid pro quo) की संभावनाओं से भी इंकार नहीं किया जा सकता. सीधे शब्दों में कहें तो मतलब ये कि जो राजनीतिक चंदा देगा वह बदले में नीति निर्माण में इसका फायदा उठाने की कोशिश करेगा. अंततः यह उस दल के लिए फायदे का सौदा हो जाएगा जो सत्ता में है.

आपको बता दें कि, सुप्रीम कोर्ट में इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम की संवैधानिक वैधता और इसके सूचना के अधिकार के अंदर आने को लेकर कई याचिकाएं दायर की गई थीं. जिसपर SC की संवैधानिक पीठ ने सुनवाई के बाद 2 नवंबर 2023 को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. गुरुवार को इसपर फैसला सुनाते हुए बेंच ने कहा कि, हमारे सामने मुख्य सवाल ये था कि, क्या राजनीतिक पार्टियों को इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम से मिल रही फंडिंग सूचना के अधिकार(आरटीआई) के तहत आएगी? CJI ने फैसला सुनाते हुए बताया कि, फैसलों को लेकर हमारे दो ओपिनियन हैं. एक CJI ने लिखा है और दूसरा जस्टिस संजीव खन्ना ने लिखा है. दोनों में अपने फैसले को लेकर अलग-अलग तर्क दिए गए है लेकिन दोनों का निष्कर्ष एक ही है.

फैसला सुनाते वक्त क्या-क्या कहा बेंच ने?

इलेक्टोरल बॉन्ड पर फैसला सुना रही बेंच ने कहा कि, मतदाताओं को यह जानने का अधिकार है कि, वे किस व्यक्ति को वोट दे रहे हैं. राजनीतिक दल को मिलने वाले वित्तपोषण के बारे में जानकारी लेना मतदाताओं के लिए आवश्यक है, जिससे वे पैसे और राजनीति के बीच के संबंध को समझ सकें. बेंच ने आगे कहा कि, नागरिकों का ये कर्तव्य है कि वे वर्तमान सरकार से सवाल पूछें. इलेक्टोरल बॉन्ड योजना का मतलब केवल काले धन पर अंकुश लगाना नहीं है, इसके लिए अन्य तरीके भी हैं, काले धन पर अंकुश लगाने के लिए आरटीआई का उल्लंघन उचित नहीं है.

मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है चुनावी बॉन्ड: CJI

सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि, चुनावी बॉन्ड गुमनामी से दिए जाते हैं जो मतदाता के अधिकार का उल्लंघन करते हैं. उन्होंने ये कहा कि, चुनावी बॉन्ड स्कीम संविधान के अनुच्छेद 19(1) के तहत मिले मौलिक अधिकार सूचना के अधिकार का उल्लंघन है. CJI ने कहा, राजनीतिक योगदान से लोगों को सिस्टम से फायदा मिलता है. इस बात की जायज संभावना है कि, राजनीतिक चंदे के योगदान के बदले दूसरे तरीके से फायदा पहुंचाने की कोशिश को बढ़ावा मिलेगा. साथ ही, अगर चंदा देने वाले को गुमनामी प्रदान की जाएगी तो इसे और प्रोत्साहन मिल सकता है.

असंवैधानिक है इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम

SC की पीठ ने कहा कि, इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम और संविधान के अधिनियमों में संशोधन करके लाए गए चुनावी बॉन्ड के जरिए पार्टियों को मिलने वाले राजनीतिक योगदान का खुलासा न करना असंवैधानिक है. पीठ ने आईटी एक्ट और लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 में संशोधन को भी असंवैधानिक घोषित कर दिया. उन्होंने कहा, मतदाताओं को वोट देने के लिए आवश्यक जानकारी प्राप्त करने का अधिकार है.

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