रिटायर्ड प्रोफेसर की बेटियों के साध्वी बनाने के बाद फंसे 'सद्गुरु' कौन हैं? पत्नी की समाधि का क्या है मामला?

कीर्ति राजोरा

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तस्वीर: इंडिया टुडे.
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न्यूज़ हाइलाइट्स

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सद्गुरु ने एक महिला से प्यार किया फिर शादी की.

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शादी के बाद बेटी हुई जिसकी धूमधाम से उन्होंने शादी की.

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सद्गुरु की पत्नी की समाधि भी विवादों में रही.

सद्गुरु जग्गी वासुदेव जाने जाते हैं सद्वचनों के लिए.  देश के बहुत सारे बाबा हिंदी में प्रवचन देते हैं. सद्गुरु अंग्रेजी में प्रवचन देने वाले सबसे हिट बाबा हैं. देश का पढ़ा-लिखा, इंटलेक्चुअल इलीट क्लास सद्गुरु की भक्ति करता है. सद्गुरु के साथ सेलिब्रिटीज, पावरफुल लोग भी दिखते हैं और कभी-कभी प्रधानमंत्री भी. सबको बाबा से इंस्पायर होना होता है. 

ये बाबा जो संन्यासी दिखते हैं, वे  केवल संन्यासी हैं नहीं है बल्कि इश्क किया. अफेयर किया. फिर घर बसाया. बेटी को जन्म दिया. परिवार और गृहस्थ जीवन बिताते हुए आध्यात्म का प्रचार-प्रसार करते रहे. कौन है सद्गुरू और क्या है उनके जीवन की पूरी कहानी? बताएंगे चर्चित चेहरा के इस खास एपिसोड में. साथ ही बताएंगे कि क्यों उनका नाम उनकी पत्नी की मौत से जोड़ा जाता रहा है.
 
सद्गुरु की जिंदगी विवादों से भरी है. नए विवाद में फिर उनके परिवार का जिक्र हुआ है. आरोप लगा अपनी बेटी और दूसरी बेटियों से भेदभाव करने का. सवाल ये है कि आपने अपनी बेटी की शादी करके सैटल कर दिया. दूसरे की बेटी को संन्यासी क्यों बना रखा है. जिस बेटी के चक्कर में सद्गुरु से ये सुप्रीम सवाल हुआ वो बेटी भी किसी गरीब घर की नहीं. एक रिटायर्ड प्रोफेसर की बेटियां हैं. 

मद्रास हाईकोर्ट पहुंचे पिता

प्रोफेसर अपनी बेटी के लिए दर-दर की ठोकरें खाते हुए पहुंच गए हाई कोर्ट. सद्गुरु जग्गी वासुदेव ईशा फाउंडेशन नाम का आध्यात्मिक संगठन चलाते हैं. रिटायर्ड प्रोफेसर ने सद्गगुरू पर गंभीर आरोप लगाया कि उनकी बेटियों को ईशा फाउंडेशन के आश्रम में बंधक बनाकर रखा है. शिकायत मिलने पर मद्रास हाईकोर्ट ने आश्रम के खिलाफ जांच का आदेश दिया. इसी हफ्ते मद्रास हाईकोर्ट के आदेश के बाद 150 पुलिसकर्मियों की टीम जांच के लिए ईशा फाउंडेशन पहुंची थी. हाईकोर्ट ने इस मामले में सुनवाई करते हुए कहा था कि जब सदगुरु की बेटी शादीशुदा हैं तो वह दूसरी लड़कियों को संन्यासी बनने के लिए क्यों कहते हैं?

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विवाद इतना बढ़ा कि मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा. सुप्रीम कोर्ट ने 3 अक्टूबर, 2024 को तमिलनाडु के कोयंबटूर में आध्यात्मिक गुरु जग्गी वासुदेव के ईशा फाउंडेशन आश्रम की जांच रुकवा दी. सुनवाई के दौरान जब मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़, जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने दोनों बेटियों से वीडियो कॉल पर बात की. प्रोफेसर की दोनों बेटियों ने सुप्रीम कोर्ट से कह दिया कि वो अपनी मर्जी से रह रही हैं. यही बात मद्रास हाईकोर्ट को भी बता चुकी हैं. केस खत्म नहीं हुआ है. बेटियां जहां थी वही हैं. अब केस की अगली डेट है 18 अक्तूबर को. 

विवादों में रहा पत्नी की समाधि का मामला

इससे पहले विवाद में रहा उनकी पत्नी की समाधि का मामला, आरोप लगता है कि सद्गुरू की पत्नी विजयकुमारी की मौत के पीछे उनका हाथ था. इसे लेकर वो सवालों के घेरे में रहे. सद्गुरु का स्टैंड रहा है कि उनकी पत्‍नी विज्‍जी ने अपनी मर्जी से 33 साल की उम्र में प्राण त्‍याग दिए थे. कहा जाता है कि वो भी अपने पति की तरह आध्‍यात्‍म की राह पर चल रही थीं. अध्यात्म और योग की दुनिया में जाने के करीब दो साल बाद एक लंच प्रोग्राम में उनकी मुलाकात विजयकुमारी से हुई. विजयकुमारी एक बैंक में काम करती थीं. यह दोनों की पहली मुलाकात थी.

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पहले प्रेम फिर शादी

इसके बाद कुछ समय तक दोनों के बीच थोड़ी और बातें हुईं. एक दूसरे को चिट्ठियां लिखी गईं. प्रेम पनपा और फिर साल 1984 में महाशिवरात्रि वाले दिन जग्गी वासुदेव और विजयकुमारी ने शादी कर ली. विजयकुमारी को सद्गुरु प्यार से विज्जी कहते थे. शादी के बाद विज्जी भी अपने पति के साथ कार्यक्रमों में जाया करती थीं. 

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शादी के 6 साल बाद बेटी का जन्म हुआ

शादी के 6 साल बाद 1990 में सद्गुरु और विज्जी के घर बेटी राधा का जन्म हुआ. जुलाई, 1996 में एक दिन सद्गुरु ध्यानलिंग की प्रतिष्ठा करने जा रहे थे. बकौल सद्गुरु- तब विज्जी ने तय कर लिया था कि लिंग की प्राण प्रतिष्ठा होते ही, वह अपना देह त्याग देंगी. विज्जी ने सार्वजनिक ऐलान कर दिया एक निश्चित पूर्णिमा को इस संसार से विदा ले लेंगी. सद्गुरु बताते हैं कि ध्यान में जाने के आठ मिनट बाद, बिना किसी प्रयत्न के, सहज भाव से, मुस्कुराते हुए विज्जी ने अपने प्राण त्याग दिए. आरोप तो लगे, लेकिन आगे कुछ हुआ नहीं.

सद्गुरु जग्गी वासुदेव का जन्म 03 सितंबर 1957 को कर्नाटक के मैसूर में एक संपन्न तेलुगु परिवार में हुआ. इनका पूरा नाम जगदीश जग्गी वासुदेव है. उनके पिता का नाम बीवी वासुदेव और माता का नाम सुशीला वासुदेव था. उनके पिता मैसूर रेलवे अस्पताल में नेत्र रोग विशेषज्ञ थे और उनकी मां एक हाउसवाइफ थीं. जग्गी 5 भाई-बहनों में सबसे छोटे थे. 12 वीं के बाद उन्होंने अंग्रेजी साहित्य में मैसूर विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन किया. पढ़ाई पूरी करने के बाद सद्गुरु ने बिजनेस शुरू किया और एक सफल बिजनेसमैन भी बने. उन्होंने पोल्ट्री फार्म, ब्रिकवर्क्स और कंसट्रक्शन बिजनेस का काम किया.

कुछ रिपोर्ट्स के मुताबिक सद्गुरु जब 25 साल के थे तब उनके जीवन में ऐसी घटना घटी, जिसके बाद उन्होंने आध्यात्मिक जीवन को पूरी तरह चुन लिया.. वो एक दिन मैसूर के चामुंडी हिल गए, जहां बैठे हुए धीरे-धीरे वे समाधि में चले गए. समाधि की अवस्था ऐसी अवस्था होती है, जिसमें व्यक्ति को होश तो रहता है लेकिन दिमाग और मन में विचार शून्य हो जाते हैं. जब सद्गुरु समाधि की अवस्था से बाहर आए तो उन्हें ऐसा लगा कि 10 मिनट बीत चुके हैं. लेकिन उन्होंने इस अवस्था में 4 घंटे बिता दिए थे. 

इसके बाद सद्गुरु एक बार फिर से समाधि अवस्था में गए और जब वह समाधि की अवस्था से बाहर आए, तब उनके चारों ओर बहुत सारे लोग बैठे हुए थे और गले में फूलों की मालाएं थी. सद्गुरु के मुताबिक, उन्हें समाधि में गए हुए 25 मिनट हुए थे. लेकिन उन्हें पता चलता है कि, उन्हें समाधि की अवस्था में गए पूरे 13 दिन हो बीत चुके थे. इसके बाद सद्गुरु ने अपना बिजनेस भी छोड़ दिया और इस अनुभव का ज्ञान लोगों में बांटने लगे. इसके लिए उन्होंने 1983 में पहली बार योग की क्लास शुरू की.

सद्गुरू राजनीतिक चर्चाओं में भी रहे हैं. सद्गुरू को लेकर अक्सर कहा जाता रहा है कि वो प्रो बीजेपी हैं, उन्हें कई बार राजनीतिक कार्यक्रमों में भी देखा जाता रहा. इससे पहले CAA-NRC पर अपनी बात रखते हुए उन्होंने सरकार का पक्ष लिया था. उनकी इस वीडियो को खुद पीएम मोदी ने सोशल मीडिया पर शेयर किया था. 

फिलहाल सद्गुरू अपने आश्रम में रहने वाली दो बेटियों के चक्कर में सवालों के घेरे में हैं. अगली सुनवाई 18 अक्टूबर को होनी है. इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाईकोर्ट के आदेश के तहत हो रही ईशा फाउंडेशन आश्रम की जांच रुकवा दी थी. अब देखना होगा इस मामले में आगे क्या नया होता है. 

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