Haryana Elections 2024: हरियाणा चुनाव का रण सज चुका है. वोटिंग में अब कुछ ही समय बचा है. मगर इस बीच बॉलीवुड एक्टर राजकुमार राव की हरियाणा विधानसभा चुनाव को लेकर चर्चा हो रही है. बता दें कि इस चर्चा की वजह वे खुद नहीं बल्कि उनके बहनोई हैं. मालूम हो कि राजकुमार राव के बहनोई सुनील राव इस बार अटेली विधानसभा सीट से अपनी किस्मत अजमाने जा रहे हैं. इस बार सुनील राव आम आदमी पार्टी के टिकट से मैदान में उतरे हैं. मालूम हो कि चुनाव से ठीक पहले सुनील राव सत्ताधारी भाजपा का दामन छोड़ अरविंद केजरीवाल की नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी में शामिल हुए थे. इस बीच सुनील राव के बार में जानने के लिए लोग उत्सुक हैं. न्यूज तक की इस खास रिपोर्ट में विस्तार से जानिए कौन हैं सुनील राव.
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कौन हैं सुनील राव?
सुनील राव 2014 में बीजेपी से रेवाड़ी के जिला उपाध्यक्ष रहे. इसके बाद पार्टी ने उन्हें राष्ट्रीय कार्यकारिणी में किसान मोर्चा का नेशनल एग्जीक्यूटिव मेंबर के बाद प्रदेश संयोजक बनाया. लेकिन सुनील राव को उम्मीद थी कि उन्हें इस बार हरियाणा चुनाव में अटेली से मैदान में उतारा जा सकता है पर उन्हें टिकट ना मिलने के कारण उन्होंने पार्टी से इस्तीफा दे दिया. चुनाव से ठीक पहले उन्होंने आप का दामन थामा. AAP ने उन्हें अटेली विधानसभा से टिकट दिया है.
10 सितंबर को उन्होंने AAP की सदस्यता ग्रहण की. इस दौरान उन्होंने बीजेपी पर हमला बोला, कहा कि ये लड़ाई विचारधारा की है, मेरी लड़ाई पूरे हरियाणा के साथ साथ पूरे अहीरवाल को बचाने की है. इस बार अहीरवाल में बीजेपी का एक भी उम्मीदवार नहीं जीत रहा है.
राव इंद्रजीत के बेटी से होगा मुकाबला
सुनील राव का ये चुनाव मुकाबला आसान नहीं होगा. क्योंकि बीजेपी ने केंद्रीय राज्य मंत्री इंद्रजीत राव की बेटी आरती सिंह को अटेली विधानसभा से मैदान में उतारा है. इनके अलावा सुनील राव के सामने कांग्रेस की अनीता यादव है और इनेलो-बसपा के ठाकुर अतर लाल हैं. कांग्रेस की अनीता 2009 में यहां से विधायक रही हैं. लेकिन पिछले 2 बार के चुनाव में उन्हें शिकस्त का सामना करना पड़ा था. अनीता और आरती भी सुनील की तरह अहीर समुदाय से हैं.
फिलहाल इस सीट पर कुछ क्लियर नहीं है कि कौन मैदान मार रहा है. क्योंकि कांग्रेस-आप-बीजेपी तीनों के उम्मीदवार अहीर समुदाय से आते हैं. सुनील को राजकुमार के बहनोई होने का फायदा मिल सकता है लेकिन आरती राव को भी अपने पिता के तीन बार के केंद्रीय राज्य मंत्री होने का लाभ हो सकता है. वहीं अनीता को पिछले 2 चुनाव हारने के बाद लोगों की सहानुभूति मिल रही है. अब देखना होगा कि इस त्रिकोणीय मुकाबले में किसकी जीत होती है.
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