‘5 सवाल’: अब विपक्ष ने की VVPAT की सारी पर्ची गिनने की मांग, EVM विवाद को शुरू से समझिए

अभिषेक

04 Jan 2024 (अपडेटेड: Jan 5 2024 4:33 AM)

VVPAT एक प्रिंटिंग मशीन है जो EVM से कनेक्ट होती है. जब EVM में वोट डाला जाता है, तो VVPAT मशीन से एक पर्ची प्रिंट होती है जिसमें उम्मीदवार का नाम और सिंबल प्रिंटेड होता है.

EVM VVPAT Controversy

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5 Question on EVM- VVPAT: इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इंक्लूसिव अलायंस (INDIA) गठबंधन ने लोकसभा चुनाव से ठीक पहले EVM पर सवाल खड़े कर दिए हैं. पिछले महीने गठबंधन की 28 पार्टियों ने प्रस्ताव पारित किया कि VVPAT की सभी पर्चियों को अलग से गिना जाए. ये मतपत्रों की गिनती के पुराने तरीक़े जैसा होगा. चुनाव आयोग अभी हर विधानसभा क्षेत्र की किसी भी पांच बूथ की पर्चियों को गिनता है. News Tak के खास शो ‘5 सवाल’ में मैनेजिंग एडिटर मिलिंद खांडेकर से EVM, VVPAT के इतिहास, काम के तरीके, इससे जुड़े विवाद को समझने की कोशिश की गई है. आइए विस्तार से बताते हैं.

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EVM क्या है?

EVM यानी इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन. भारत में साल 2000 से ही हर विधानसभा और लोकसभा का चुनाव EVM से ही हो रहा है. उससे पहले बैलट पेपर से मतदान होते थे. देश में इसका सबसे पहले इस्तेमाल साल 1983 में केरल विधानसभा चुनाव में हुआ था. EVM को भारत सरकार ही दो कंपनियां भारत इलेक्ट्रॉनिक्स और इलेक्ट्रॉनिक्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया बनाती है.

VVPAT क्या है?

जब कोई भी मतदाता EVM पर वोट देने के लिए बटन दबाता था तो ये पता नहीं चलता था कि, बटन जिस पर दबाया है क्या उसी को वोट जा रहा है. तत्कालीन विपक्षी पार्टी बीजेपी ने इसका खूब विरोध किया. इसी को ध्यान में रखते हुए 2010 में VVPAT यानी वोटर वेरिफाएबल पेपर ऑडिट ट्रेल लाया गया. VVPAT एक प्रिंटिंग मशीन है जो EVM से कनेक्ट होती है. जब EVM में वोट डाला जाता है, तो VVPAT मशीन से एक पर्ची प्रिंट होती है जिसमें उम्मीदवार का नाम और सिंबल प्रिंटेड होता है. वोट डालने के 7 सेकंड तक वो पर्ची दिखाई देती है फिर पर्ची सीलबंद बॉक्स में गिर जाती है. पर्ची वोटर को ये दिखा देती है कि उसका वोट किस उम्मीदवार को गया है.

साल 2013 में पहली बार इसका प्रयोग हुआ था. 2019 के लोकसभा चुनाव में इसका पूरा इस्तेमाल हुआ. अब जो भी चुनाव होता है उसमे EVM के साथ VVPAT को अनिवार्य कर दिया है.

EVM का विरोध क्यों?

2014 से पहले बीजेपी भी ईवीएम का विरोध कर चुकी है. आज अब विवाद EVM से आगे बढ़कर VVPAT तक आ पहुंचा है. कांग्रेस नेता सैम पित्रोदा ने VVPAT को लेकर सवाल खड़े किये हैं. सैम पित्रोद को देश में टेलिकॉम क्रांति लाने वाला माना जाता है. उन्होंने VVPAT पर ये आरोप लगाया है कि मशीन में ही दिक्कत है. VVPAT का केबल EVM से कनेक्ट होती है, उसी में दिक्कत है. उन्होंने कहा है कि अब ये स्टैन्ड अलोन डिवाइस नहीं रही है. पिछले दिनों INDIA अलायंस ने एक रेसोल्यूशन जारी करते हुए VVPAT की पर्चियों की गिनती करने की मांग उठाई है.

सुप्रीम कोर्ट ने 2019 में VVPAT को लेकर आदेश पारित किया था. आदेश ये था कि हर विधानसभा या लोकसभा क्षेत्र में अलग-अलग पांच बूथों के VVPAT पर पड़े वोटों की गणना की जाए और उनका मिलान EVM में पड़े वोटों से किया जाए. चुनाव आयोग ने 2019 के बाद हुए चुनाव पर करीब 38000 बूथों पर पड़े वोटों की गिनती की गई. गिनती में EVM और VVPAT पर पड़े वोटों की गिनती एकसमान पाई गई.

EVM की हैकिंग क्या है?

EVM की हैकिंग का आरोप पहली बार नहीं लगा है. बीजेपी जब सत्ता में नहीं थी तब वो उसका विरोध करती थी अब कांग्रेस इसका विरोध कर रही है. अब चुनाव आयोग ने इसपर अपना जवाब दिया है. EVM को लेकर चुनाव आयोग का तर्क है कि-

1- EVM में वन टाइम प्रोग्रामिंग होती है. उसमे अगर कोई छेड़खानी करता है तो मशीन काम करना बंद कर देती है.

2- चुनाव से पहले किसी को ये पता नहीं होता है कि कौनसी मशीन किस बूथ पर जाएगी.

3- वोटिंग से पहले उम्मीदवारों के पोलिंग एजेंट को मशीन टेस्ट कर के दिखाई जाती है.

4- EVM किसी नेटवर्क से जुड़ी नहीं होती है, जैसे Bluetooth या Wi Fi.

5- हर मशीन का अलग सीरियल नंबर होता है जिसे वोटिंग के बाद बदल नहीं सकते हैं.

आज चुनावों में इतनी बड़ी संख्या EVM मशीनें प्रयोग होती है और वो किसी नेटवर्क से जुड़ी नहीं होती.तब मैनुअल तरीके से इतनी बड़ी संख्या में मशीनों को हैक करना संभव नहीं लगता. वैसे भी अब झगड़ा EVM नहीं बल्कि VVPAT का है. INDIA अलायंस ने भी VVPAT में एकत्रित मतपत्रों की जांच की मांग की है.

बैलट से चुनाव की क्या संभावना है?

वर्तमान समय में बैलट पेपर से चुनाव कराने की संभावना शून्य के बराबर है. इसका कारण ये है कि EVM और VVPAT को लेकर कई हाई कोर्ट में मामला चला. कई टेक्निकल कमेटियां भी बनीं, लेकिन सभी ने EVM में किसी प्रकार की गड़बड़ी को खारिज कर दिया. वैसे बैलट पेपर से चुनाव कराने को लेकर निर्णय लेना चुनाव आयोग के हाथ में नहीं है. इसके संबंध में अंतिम फैसला देश की संसद करेगी. हमारे देश का चुनाव 1951 के जन प्रतिनिधित्व एक्ट के तहत होता है. इस एक्ट में साल 1988 में EVM को लेकर एक सेक्शन जोड़ते हुए एक कानून बनाया गया. अब जबतक उस कानून में संसोधन नहीं किया जाता तबतक EVM से ही मतदान होगा. अब बीजेपी सत्ता में है और उसी के पास संसद में बहुमत है. यानी वो जबतक कानून बदलना नहीं चाहेगी तबतक ये संभव नहीं है.

आज के जमाने में बैलट पेपर से चुनाव करना भी सेफ नहीं है. हम पहले के जमाने में देखते थे की बूथ कैप्चरिंग हो जाती थी. दबंग बूथों पर एक साथ कई वोट मार देते थे. EVM में 1 मिनट में कुछ लिमिटेड वोट ही डाले जा सकते हैं. इससे एकसाथ कई वोट फर्जी तरीके से डालना संभव नहीं है. यानी बैलट पेपर से मतदान में धांधली की संभावना ज्यादा होती हैं. बैलट पेपर से मतों की गणना में भी बहुत समय लगता था. आज EVM से मतगणना बहुत आसान हो गई है.

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